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Written By DW
Last Updated : मंगलवार, 12 सितम्बर 2023 (14:43 IST)

किस ओर बढ़ रहे हैं भारत और सऊदी अरब के रिश्ते

India-Middle East-Europe Economic Corridor
चारु कार्तिकेय
प्रिंस सलमान भारत के तीन दिन के राजकीय दौरे पर हैं। शनिवार नौ सितंबर और रविवार को उन्होंने जी20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया और सोमवार को उनकी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ कई विषयों पर बातचीत हुई। प्रिंस सलमान का राष्ट्रपति भवन में स्वागत किया गया और वो भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से भी मिले।
 
मोदी और सलमान मिल कर भारत-सऊदी अरब स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप काउंसिल की दोनों देशों के नेताओं के स्तर पर होने वाली पहली बैठक की अध्यक्षता करेंगे। इस परिषद की शुरुआत 2019 में की गई थी।
 
भारत-सऊदी अरब संबंध
इसके तहत राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और सुरक्षा संबंधी विषयों पर नेताओं और अधिकारियों के बीच अलग अलग उप-समितियों में चर्चा होती है।
 
दोनों देशों के कूटनीतिक रिश्ते बहुत पुरानेहैं। कूटनीतिक रिश्तों की स्थापना 1947 में ही हो गई थी और तब से दोनों देशों के शीर्ष नेता लगातार दोनों देशों की यात्राओं पर जाते रहे हैं। इन यात्राओं की शुरुआत 1955 में किंग सऊद बिन अब्दुलअजीज अल सऊद की 17 दिनों की भारत यात्रा से हुई थी।
 
मोदी खुद अपने कार्यकाल के दौरान दो बार रियाद जा चुके हैं। सलमान भी इससे पहले एक बार फरवरी, 2019 में भारत आ चुके हैं। अप्रैल, 2016 में मोदी की सऊदी यात्रा के दौरान सलमान के पिता किंग सलमान बिन अब्दुलअजीज अल सऊद ने उन्हें देश के सबसे ऊंचे नागरिक सम्मान से नवाजा था।
 
दोनों देशों के बीच पुरानी व्यापारिक साझेदारी है और सऊदी अरब भारत का चौथा सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है। लेकिन यह व्यापार सऊदी अरब की तरफ काफी ज्यादा झुका हुआ है। 2022 में भारत ने सऊदी अरब को करीब 549 अरब रुपयों का सामान निर्यात और उसके मुकाबले करीब 1,875 अरब रुपयों का सामान आयात किया था।
 
सऊदी अरब दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादन करने वाला देश हैऔर भारत के कुल आयातित तेल का करीब 18 प्रतिशत सऊदी अरब से आता है। भारत सऊदी अरब को चावल, इंजीनियरिंग सामान, रिफाइंड पेट्रोलियम उत्पाद, केमिकल, टेक्सटाइल जैसी चीजें निर्यात करता है।
 
सऊदी अरब की जरूरतें
पूर्व राजनयिक और अरब देशों के जानकार जिक्रुर रहमान मानते हैं कि यह बहुत महत्वपूर्ण यात्रा है जिसके दौरान यह नजर आएगा कि भारत और सऊदी अरब के बीच कई क्षेत्रों में सहयोग हो रहा है। उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा कि भारत मध्य एशिया में अपनी एक खास जगह बना चुका है।
 
आर्थिक और सामरिक मामलों के जानकार और 'सऊदी अरेबिया इन अ मल्टीपोलर वर्ल्ड' किताब के लेखक डॉक्टर जाकिर हुसैन का मानना है कि सऊदी अरब खुद को ग्लोबलाइज कर रहा है। बहुध्रुवीय दुनिया में वो अपनी जगहतलाश कर रहा है और किसी भी एक ध्रुव पर निर्भर नहीं होना चाहता। 
 
हुसैन ने डीडब्ल्यू से कहा, "सऊदी अरब पोस्ट-आयल दुनिया की तैयारी कर रहा है। ऐसी दुनिया में आर्थिक रूप से विविधीकरण कैसे होगा, जिसमें तेल के अलावा दूसरे क्षेत्रों में उसका निर्यात बढ़े और उसके पैसों का सुरक्षित और गारंटीड निवेश हो, वो ऐसे सवालों के जवाब तलाश रहा है।"
 
उन्होंने आगे  कहा, "दूसरी तरफ सऊदी अरब यह भी देख रहा है कि आर्थिक आकर्षण शक्ति पश्चिम से पूर्व की तरफ जा रही है और उसमें भारत और चीन दो ऐसे बड़े शक्ति के केन्द्र हैं जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।"
 
हुसैन यह भी मानते हैं कि ऊर्जा के मोर्चे पर किसी भी दूसरे स्रोत को तेल की जगह लेने में कम से कम 20-25 सालों का समय लगेगा और इस दौरान भारत की भी खपत बढ़ेगी।
 
उनका अनुमान है कि अभी भारत एक दिन में 25 से 30 लाख बैरल तेल की खपत करता है, जो 15 सालों में बढ़कर अस्सी लाख हो जाएगा। सऊदी अरब इतने बड़े बाजार को छोड़ कर नहीं रह सकता।   
 
बदलते सामरिक रिश्ते
लेकिन दोनों देशों के सामरिक रिश्ते ऐतिहासिक रूप से पेचीदा रहे हैं। सऊदी अरब दशकों से पाकिस्तान का मित्र देश रहा है और वह कश्मीर विवाद में पाकिस्तान के रुख का समर्थनकरता रहा है। पाकिस्तान और सऊदी अरब दोनों इस्लामी देशों के संगठन (ओआईसी) के संस्थापक सदस्यों में से थे।
 
ओआईसी में सऊदी काफी वजन रखता है। संगठन का मुख्यालय सऊदी अरब के शहर जेद्दाह में है। ओआईसी भी लगातार कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान की स्थिति का समर्थन करता रहा है। संगठन का ताजा बयान भी इसी रुख को दिखाता है।
 
अगस्त, 2023 में ओआईसी ने मांग की कि भारत "अधिकृत जम्मू और कश्मीरमें" पांच अगस्त, 2019 को और उसके बाद उठाये गए सभी "अवैध और एकतरफा कदमों" को वापस ले और वहां "सुनियोजित और व्यापक रूप से हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन को बंद करे।"
 
लेकिन भारत के साथ रिश्तों को गहरे करने के सऊदी अरब के प्रयास यह दिखाते हैं कि यह स्थिति अब बदलाव की तरफ बढ़ रही है। सलमान की भारत यात्रा से पहले खबरें आई थीं कि वो जी20 सम्मेलन से पहले पाकिस्तान भी जाएंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इसे उनका पाकिस्तान को एक इशारामाना जा रहा है।
 
हुसैन कहते हैं कि ओआईसी को सऊदी अरब को छोड़ नहीं सकता लेकिन वो ओआईसी और भारत दोनों के बीच संतुलन बनाने की कोशिशकर रहा है। साथ ही, उनका मानना है कि "पाकिस्तान भाई है और भारत दोस्त" की सऊदी अरब की पुरानी समझ अब कुछ फीकी हुई है।