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Written By BBC Hindi
Last Modified: शुक्रवार, 11 नवंबर 2022 (07:56 IST)

पोरबंदर में कितने बचे हैं 'गांधी', कस्तूरबा गांधी का पड़ोसी होना कैसा लगता है?

पोरबंदर में कितने बचे हैं 'गांधी', कस्तूरबा गांधी का पड़ोसी होना कैसा लगता है? - kasturba gandhi and porbandar
रजनीश कुमार, बीबीसी संवाददाता, पोरबंदर
रात के नौ बज रहे हैं। गुजरात में पोरबंदर के मानेक चौक पर सोनी बाज़ार इलाक़े में जूलरी की दुकानें धीरे-धीरे बंद हो रही हैं। इन दुकानों की पतली गलियों से आगे बढ़ा तो कस्तूरबा गांधी का घर मिला।
 
इसी घर में कस्तूरबा गांधी (बा) का जन्म हुआ था और यहीं वो पली-बढ़ी थीं। कस्तूरबा गांधी के घर के पड़ोस के दरवाज़े पर दो महिलाएं बैठी हैं जो आपस में बात कर रही हैं। मैंने उनसे कहा, "अभी 'बा' दरवाज़ा खोलकर आएंगी और आपसे हालचाल पूछेंगी।" ये सुनकर दोनों महिलाएं हंसने लगीं।
 
इनमें से एक महिला का नाम पारुल मेहता है। 'बा' और पारुल के घर को अलग करने वाली दीवार एक ही है। इस इलाक़े के लगभग सभी घर पुराने हैं।
 
पारुल मेहता कहती हैं, "गर्मियों में हम लोग छत पर सोते हैं। 'बा' के घर की छत और मेरी छत सटी हुई है। कई बार हम लोग हंसते हुए कहते हैं कि 'बा' अभी साड़ी में आएंगी और कहेंगी कि आज बहुत गर्मी है।"
 
कस्तूरबा गांधी का पड़ोसी होना
पारुल मेहता से मैंने पूछा कि बा का पड़ोसी होना उन्हें कैसा लगता है? वह बताती हैं, "मैं इस घर में पिछले 25 सालों से हूँ। मैं मराठी हूँ। यह घर मेरे पति के पूर्वजों का है। दुनिया भर से लोग यहां आते रहते हैं। मुझे तो अच्छा ही लगता है। हमारा घर पुराना हो गया है। दीवार से रेत गिरती रहती है, दरवाज़े भी हिलते हैं। लेकिन मरम्मत के लिए हमें गांधीनगर से अनुमति लेनी होती है। इस लिहाज़ से देखिए तो मुश्किल भी है।"
 
'बा' का घर महात्मा गांधी के घर के ठीक पीछे है। मुश्किल से तीन-चार घर बाद। 'बा' के पिता गोकुलदास कपाड़िया नगर सेठ थे और गांधी के पिता करमचंद गांधी राजकोट के दीवान थे। उस दौर की बात करें तो दोनों परिवार बहुत अमीर थे।
 
कस्तूरबा और मोहन दास करमचंद गांधी की शादी जिस वक्त हुई उस वक्त दोनों की उम्र 13 साल थी। मोहन दास को महात्मा गांधी बनाने में 'बा' की भी अहम भूमिका मानी जाती है।
 
पारुल मेहता कहती हैं, "प्रधानमंत्री से लेकर राहुल और सोनिया गांधी तक बापू का घर देखने आते हैं, लेकिन वो 'बा' के घर में नहीं आते हैं। 'बा' का घर मुश्किल से 30 क़दम पीछे है। गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी आते हैं तो मेरे घर में आकर बैठते हैं।"
 
कस्तूरबा गांधी के घर के आसपास लोहाना-ठक्कर और मछुआरों का घर है। लोहाना-ठक्कर कारोबार करने वाली जाति होती है। 
 
पारुल से मैंने पूछा कि वह गांधी के बारे में क्या जानती हैं? उनका जवाब था, "हमलोगों का इनसे कोई संबंध नहीं था। ये तो पटेल थे। हम लोग लोहाना-ठक्कर हैं। इसके अलावा गांधी के बारे में कुछ और पता नहीं है।"
 
ज़ाहिर है कि महात्मा गांधी का जन्म पटेल परिवार में नहीं बल्कि बनिया परिवार में हुआ था। गुजरात में गांधी की जाति को मोढ-वानिया कहते हैं।
 
पारुल तो 'बा' की पड़ोसी हैं और उन्हें गांधी के बारे में पता है कि यह पटेल परिवार था। लेकिन बाक़ी के पोरबंदर का भी यही हाल है।
 
गांधी के घर को छोड़ दें तो यहां उनकी मौजूदगी भारत के बाक़ी इलाक़ों से ज़्यादा नहीं है। पूरे शहर में घूमते हुए ऐसा लगता है कि गांधी या तो ख़ुद ही दूर चले गए हैं या यहां के लोगों ने उन्हें भुला दिया है।
 
गांधी अपने पैतृक घर में भी इतने खुले और विस्तार से नहीं हैं कि उन्हें समझने में मदद मिले। कस्तूरबा गांधी के घर के बाहर केवल नेमप्लेट लगा है। घर के भीतर 'बा' की मौजूदगी उतनी ही है, जितनी पोरबंदर के लोगों के मन में।
 
'बा' के घर में लकड़ी की सीढ़ियां, दरवाज़ें, बंद खिड़कियां और दीवारें हैं। 'बा' और बापू के घर के बीच के फ़ासले बहुत कम हैं, लेकिन इन दोनों से शहर के लोगों के फ़ासले ज़्यादा बढ़ गए हैं।
 
सात बजते ही 'बा' और गांधी का घर बंद हो जाता है। गांधी के घर में तो रात में रोशनी भी होती है, लेकिन 'बा' का घर गुमनामी के अंधेरे में डूबा लगता है। 'बा' और बापू शाकाहारी थे, लेकिन उनके घर में समंदर की मछलियों की महक कहें या बदबू फैली रहती है।
 
तुषार गांधी कहते हैं, 'बा' उदास होती थीं तो अपने घर की छत पर अकेले बैठकर घंटों समंदर की तरफ़ निहारती रहती थीं। आज के पोरबंदर को देखकर ऐसा लगता है कि 'बा' और बापू की विरासत आख़िरी सांस ले रही है।
 
गांधी की विरासत की अनदेखी
पोरबंदर गांधी का जन्म स्थान है और वहां अब भी उनका पुराना घर मौजूद है। इसके अलावा यहां गांधी से जुड़ा कुछ भी नहीं है।
 
इस शहर में गांधी के बारे में कोई ढंग से बात कर सके, ऐसा व्यक्ति खोजने पर भी नहीं मिलेगा। इस बारे में पूछने पर कई लोगों ने नरोत्तमभाई पालण का नाम लिया, लेकिन वह 90 साल के हो चुके हैं और उन्हें बात करने में दिक़्क़त होती है। पोरबंदर में एक ऐसा पुस्तकालय तक नहीं है, जहां गांधी से जुड़े दस्तावेज़ मिलते हों।
 
अर्जुन मोढ़वाडिया कांग्रेस के नेता हैं और यहां से 10 सालों तक विधायक रहे हैं। उनसे पूछा कि पोरबंदर में गांधी कितने बचे हैं? उनका जवाब था, ''गांधी तो उस रूप में पूरे भारत में नहीं बचे हैं और पोरबंदर इससे अलग नहीं है। हिन्दुत्व की राजनीति ने गांधी की विचारधारा को बहुत कमज़ोर किया है।
 
हमारे पास इसका काउंटर करने के लिए एक मज़बूत रणनीति होनी चाहिए थी, लेकिन हम कर नहीं पाए। इन्होंने गांधी को छोटा करने के लिए पटेल की लंबी मूर्ति बना दी जबकि पटेल भी इनके नहीं थे।"
 
मोढ़वाडिया कहते हैं, "इस बात को लेकर मुझे भी चिंता रहती है कि पोरबंदर में गांधी की विरासत जितनी समृद्ध और संपन्न होनी चाहिए थी, उतनी बिल्कुल नहीं है।
 
मैंने एक बार सोनिया गांधी से भी कहा था कि जिस तरह से तमिलनाडु में अन्नादुरई की विरासत है और पश्चिम बंगाल में रविंद्रनाथ टैगोर की वैसी विरासत गांधी की नहीं है। सोनिया गांधी ने भी इससे सहमति जताई थी।"
 
"हमने 2005 में सोनिया गांधी के नेतृत्व में साबरमती आश्रम से दांडी तक मार्च निकाला था। तब गांधी से जुड़ी कई चीज़ों को ज़मीन पर उतारने की योजना थी लेकिन गोपालकृष्ण गांधी कई मामलों में असहमत थे।"
 
पोरबंदर के युवाओं से बात कीजिए तो ऐसा लगता है कि वो अनमने ढंग से गांधी का नाम ले रहे हैं। ऐसा लगता है कि उन्हें गांधी के बारे में ठीक से बताया नहीं गया है या फिर गांधी के पोरबंदर के होने से इन्हें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है।
 
गांधी के घर के सामने शाहनवाज़ नाम के युवा से मैंने पूछा कि 'क्या वह गांधी से ख़ुद को कनेक्ट करते हैं?' इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, "मैं तो गांधी का घर देखने कभी नहीं गया। हालांकि विदेशों से भी लोग गांधी का घर देखने आते हैं, लेकिन मैं इस शहर का होने के बावजूद देखने नहीं गया। टाइम ही नहीं मिलता है।"
 
शाहनवाज़ गांधी के बारे में ज़्यादा कुछ नहीं बता पाए, हालांकि उन्होंने कहा, "पोरबंदर के लोगों को टाइम मिलता है तो तीन जगह जाते हैं- कमला बाग़, चौपाटी (समुद्र तट) और रिवर फ़्रंट। किसी के पास टाइम नहीं है, गांधी का घर देखने के लिए।"
 
गांधी और बीजेपी
तुषार गांधी कहते हैं कि गांधी पर लंबे समय से हमला किया जा रहा था और अब जब बीजेपी सत्ता में है तो वह अपने हिसाब से गांधी का दुरुपयोग कर रही है।
 
तुषार गांधी कहते हैं, "कांग्रेस ने भी गांधी की विरासत की जड़ें मज़बूत करने के लिए बहुत कुछ नहीं किया और उसे इसका ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ रहा है। मैं भी जब पोरबंदर जाता था तो बापू के घर से होकर ही चला जाता था। बाद में पता चला कि यहां 'बा' का भी घर है।"
 
गुजरात के जाने-माने समाज विज्ञानी अच्युत याग्निक कहते हैं, "जिस तरह से जिन्ना पाकिस्तान की मजबूरी हैं, उसी तरह से गांधी भी बीजेपी के लिए मजबूरी हैं। बीजेपी ने बहुत चालाकी से गांधी को अपने हिसाब से अपना लिया और अपने हिसाब से छोड़ दिया।"
 
वो कहते हैं, "विदेशों में गांधी को बेचना होता है तो गांधी-गांधी करते हैं और देश के भीतर हिन्दुत्व की राजनीति के लिए सावरकर को आदर्श मानकर चलते हैं। उसी तरह जिन्ना का व्यक्तित्व कट्टरपंथी इस्लाम के बिल्कुल उलट था। जिन्ना तो सूअर का मांस तक खाते थे। वह सुन्नी भी नहीं थे। लेकिन वह पाकिस्तान के क़ायद-ए-आज़म बने इसलिए उनकी मजबूरी हैं।"
 
लेकिन बीजेपी नेता इन आरोपों को ख़ारिज करते हैं। पोरबंदर शहर के भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्यक्ष सागर मोदी कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गांधी के सपनों का भारत बनाने की कोशिश की है।
 
सागर मोदी कहते हैं कि पीएम मोदी ने स्वच्छ भारत को मिशन की तरह लिया और इसमें गांधी के चश्मे को प्रतीक बनाया।
 
पोरबंदर अरब सागर के तट पर है। अरब सागर को बंगाल की खाड़ी की तुलना में शांत माना जाता है। रात के 12 बज रहे हैं और पोरबंदर के लोग समंदर की ऊंची उठती और गिरती लहरें देख रहे हैं। शाम से ही लहरों का दबाव बढ़ने लगता है और देर रात तक अपने शबाब पर होता है।
 
सुबह होते-होते लहरें शांत हो जाती हैं। हर सुबह की तरह आज भी विनोद नौ बजे कस्तूरबा गांधी के घर का ताला खोल रहे हैं।
 
विनोद आठ हज़ार रुपये की तनख़्वाह पर हर दिन इस घर में आने वाले लोगों को 'बा' के बारे में बताते हैं। इतने पैसे से उनका घर नहीं चलता है, लेकिन पोरबंदर 'बा' और बापू को छोड़ आगे बढ़ चुका है।
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