सीटू तिवारी पटना से, बीबीसी हिन्दी के लिए
35 साल के संदीप यादव 14 मई की शाम 6 बजे पिता बने। लेकिन वो बिहार सरकार से ख़ासे नाराज़ हैं।
गोपालगंज सदर अस्पताल के आइसोलेशन वॉर्ड में रह रहे संदीप की परेशानी उनकी आवाज़ में घुली हुई है। वो और उनकी पत्नी रेखा देवी ख़ुद गोपालगंज ज़िले में हैं लेकिन उनकी 8 और 6 साल की दो बच्चियां सुपौल के बलहा क्वारंटीन सेंटर में अकेली हैं।
गाँव से पैसा मंगाकर किराया दिया
संदीप नोएडा के सेक्टर 122 में सड़क पर ही बीते 6 साल से मसाले (खाने वाले) की छोटी सी दुकान लगाते हैं। वो बताते हैं कि 21 मार्च को प्रशासन ने दुकानें बंद करा दीं। जिसके बाद उन्होंने डेढ़ महीना लॉकडाउन ख़त्म होने का इंतजार किया। लेकिन जब लॉकडाउन ख़त्म होने का कोई आसार नहीं दिखा तो 12 मई को अपनी गर्भवती पत्नी रेखा देवी और बच्चों को लेकर बिहार के लिए निकल पड़े।
उन्होंने बीबीसी को फ़ोन पर बताया, "मकान मालिक ने सरकार के कहने पर एक महीने का किराया माफ़ कर दिया था लेकिन इस तरह बिना काम किए कैसे खाते पीते? मैंने गाँव में पिताजी से पैसा मंगाया और हमारे ज़िले के ही 30 लोगों ने मिल कर एक ट्रक फिक्स किया जिसने हम पति-पत्नी का 5000 रुपए किराया लिया। बच्चों का किराया ट्रक वाले ने नहीं लिया। ट्रक को रास्ते में दो-तीन जगह पुलिसवालों ने रोका जिसमें से एक जगह कुछ लोगों ने खाने-पीने का सामान दिया।"
9 माह की गर्भवती, 7 किलोमीटर पैदल चली
नोएडा से गोपालगंज का 900 किलोमीटर से ज़्यादा का सफ़र संदीप और रेखा के परिवार ने ट्रक से तय किया। लेकिन ट्रक वाले ने पकड़े जाने के डर से यूपी-बिहार की गोपालगंज सीमा से तकरीबन 7 किलोमीटर पहले ही इन सभी लोगों को उतार दिया।
बिहार के सुपौल ज़िले की बलहा पंचायत के रहने वाले संदीप बताते हैं, "ट्रक वाले ने कहा कि बॉर्डर बस एक किलोमीटर दूर है। रात दो बजे उसने हम सबको उतार दिया। मेरी बीबी का नौवां महीना है, वो सात किलोमीटर बहुत दर्द सहते हुए चली। बॉर्डर पर पहुंचे तो उन्होंने तापमान जांच का ठप्पा लगा दिया। पत्नी के पेट में बहुत दर्द हो रहा था, इसलिए हम सबसे पहले 100 रुपए का खाना ख़रीद कर बीबी-बच्चों को खिलाए।"
इस बीच गोपालगंज सीमा पर पहुंचने से पहले भी संदीप के मुताबिक़ वो एक छोटे से अस्पताल में गए थे। जिसमें उन्हें ये कह कर भगा दिया कि ''दिल्ली वाला मरीज़ यहां लेकर क्यों आए हो?''
बस से सोशल डिस्टेंसिंग फेल
संदीप के मुताबिक़ बॉर्डर पर उनसे सुपौल ज़िला जाने वाली बस में बैठने को कहा गया। लेकिन जब उन्होंने बस के अंदर देखा तो उसमें लोगों को ठूंसा गया था।
वो बताते हैं, "सोशल डिस्टेंसिंग बस में फेल थी। किसी को कोरोना ना भी हो, लेकिन वो अगर बस का सफ़र कर ले तो उसे कोरोना होने का ख़तरा था। तो हम लोगों ने एक गाड़ी ठीक की। जो गाँव पहुंचा दे। लेकिन पत्नी को बहुत दर्द होने लगा तो उसे गोपालगंज सदर अस्पताल ले गए।"
सरकारी अस्पताल ने किया इनकार
सरकारी अस्पताल में भी प्रसव पीड़ा से कराह रही 30 साल की रेखा देवी को एडमिट करने से इनकार कर दिया। बाद में वरिष्ठ अधिकारियों के हस्तक्षेप के बाद अस्पताल ने रेखा को भर्ती किया। जहां उनकी नॉर्मल डिलिवरी हुई और उन्होंने एक बच्ची को जन्म दिया। नोएडा में डॉक्टरों ने उन्हें डिलिविरी की तारीख़ 26 मई दी थी।
सदर अस्पताल के हेल्थ मैनेजर अमरेंद्र कुमार ने बीबीसी को बताया, "बच्ची और मां दोनों ही स्वस्थ हैं। उम्मीद है कि उन्हें जल्द डिस्चार्ज कर दिया जाएगा। लेकिन वो अपने घर यानी सुपौल सुरक्षित वापस लौटें, ये भी हमारी चिंता है।"
पहले से ही चार बच्चियों के पिता हैं संदीप
संदीप और रेखा की ये पांचवीं बच्ची है। उनकी पहले से ही चार बेटियां हैं। जिसमें से सदर अस्पताल में नवजात बच्ची के साथ-साथ फ़िलहाल ढाई साल की बच्ची उनके साथ रह रही है। दो बच्चियां बलहा के क्वारंटीन सेंटर में हैं जबकि चार साल की एक बच्ची अपने नाना-नानी के साथ रहती है।
हर महीने औसतन 13 हज़ार रुपए कमाने वाले पांचवीं पास संदीप से जब मैंने बच्चियों के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, "गांव से मां-बाबूजी का दबाव रहता है लड़के के लिए। सब कहते हैं कि इस बार लड़की हो गई, लेकिन अगली बार लड़का हो जाएगा। अब बताइए इतनी लड़की हो गई हैं, इनको खिलाना और पढ़ाना मुझ जैसे ग़रीब के लिए बहुत बड़ी समस्या है।"
संदीप का परिवार अपने गांव वापस जाने को बेताब है। नोएडा में 3500 रुपए के किराए के घर में रहने वाले संदीप अपनी सारी गृहस्थी नोएडा में ही छोड़ आए हैं। वो कहते है, "जब लॉकडाउन टूटेगा, वापस जाएंगे। यहां बिहार में कोई रोज़गार नहीं है।"