रविवार, 21 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. Jammu and Kashmir
Written By BBC Hindi

कश्मीर : क्या अनुच्छेद 370 हटाना ही एकमात्र विकल्प था? - नज़रिया

कश्मीर : क्या अनुच्छेद 370 हटाना ही एकमात्र विकल्प था? - नज़रिया - Jammu and Kashmir
- राणा बनर्जी
जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को ख़त्म कर दिया गया है। सरकार के इस फ़ैसले ने देश-दुनिया को चौंकाया है। इस फ़ैसले के साथ ही जम्मू-कश्मीर को दो भागों में बांट दिया गया। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख। दोनों केंद्र शासित प्रदेश होंगे। अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद सरकार के इस फ़ैसले की कोई प्रशंसा कर रहा है तो कोई आलोचना।

विरोध करने वाले सवाल कर रहे हैं कि क्या अनुच्छेद 370 को ख़त्म करने से कश्मीर समस्या का समाधान हो गया है? मैं नहीं मानता कि समाधान इतना सहज है। अगर ऐसा होता तो इसे बहुत पहले ही ख़त्म कर दिया जाता, लेकिन ये ज़रूर है कि अनुच्छेद 370 और 35-ए हटाने की बात सत्ताधारी पार्टी की सरकार बहुत पहले से कर रही थी।

कश्मीर की स्थिति में एक ठहराव सा आ गया था। न कोई बात आगे बढ़ती थी और न कोई बात पीछे जाती थी। कुछ मायनों में सत्ताधारी पार्टी का समझना है कि 370 के हटाने से बहुत सारे मामले खुद ब खुद ख़त्म हो जाएंगे। जगमोहन साब ने अपनी किताब 'माय फ्रोज़ेन टर्बुलेंस इन कश्मीर' में भी इस बात का जिक्र किया है और मुझे लगता है कि इस बात में दम है।

अंतिम विकल्प?
लेकिन सवाल यह भी किया जा रहा है कि क्या 370 हटाना ही सरकार के पास अंतिम विकल्प था? इतिहास के देखें तो कई दूसरे रास्ते अपनाए गए थे। जैसे, दो मुल्कों के बीच 2007-08 तक जो बातचीत हुई थी, उस वक़्त कश्मीर समस्या के हल होने की संभावना दिखी थी। लेकिन उसके बाद से पाकिस्तान पीछे हट गया और सीमा पार से आतंकवाद को बढ़ावा देना शुरू कर दिया। जब तक सीमा पार से आतंकवाद बंद नहीं होता है, दूसरा कोई विकल्प समझ नहीं आ रहा था।

सवाल यह भी किया जा रहा है कि फ़ैसले के बाद कश्मीरियों की स्थिति कमजोर हुई है। मैं मानता हूं कि इस फ़ैसले से स्थानीय नेताओं की स्थिति ज़रूर कमजोर हुई है। भविष्य में वो निष्क्रिय हो सकते हैं। यह भी कहा जा रहा है कि वहां के आम लोग, जो भारत का समर्थन करते हैं, वो अलग-थलग पड़ जाएंगे पर मैं ऐसा नहीं मानता हूं।

मैं इस मामले में निराशावादी नहीं हूं। मैं समझता हूं कि कश्मीरी के लोगों को यह समझने की ज़रूरत है कि इसमें उनकी भलाई है। शायद वो वक़्त के साथ समझ भी जाएंगे। वहां आतंकवाद से जुड़ी कई समस्याएं रही हैं। कितने युवा मारे गए हैं। ऐसे में कश्मीर की माएं यह बात समझती हैं कि उनके बच्चों को हताशवाद की स्थिति से यह फ़ैसला निकाल पाएगा।

लंबी प्रक्रिया
कई यह भी सवाल कर रहे हैं कि फ़ैसले के 20 दिन हो गए हैं और कठोर प्रतिबंध जारी है, क्या यह अनंतकाल तक चलेगा? मैं समझता हूं कि यह बात सही है कि कठोर प्रतिबंध हमेशा के लिए नहीं लगाए जा सकते हैं। वहां के प्रशासन को कुछ न कुछ सोचना होगा कि छूट का दायरा धीरे-धीरे बढ़ाया जाए। लेकिन यह सबकुछ कश्मीर के लोगों की तरफ़ से आने वाली प्रतिक्रियाओं और प्रतिरोध पर निर्भर करता है। ज़ाहिर सी बात है फ़ैसले का स्वागत होता है तो कुछ लोग इसका विरोध भी करते हैं।

अगर विरोध शांतिपूर्ण रहे तो मैं समझता हूं कि माहौल धीरे-धीरे बदलेगा और स्थितियां सामान्य हो जाएंगी। मेरी समझ से राजनीतिक प्रक्रिया भी शुरू होनी चाहिए। वहां चुनाव भी होने हैं। अगर सबकुछ शांतिपूर्वक रहा तो जम्मू-कश्मीर को अन्य राज्यों की तरह दर्जा दिया जा सकेगा। कश्मीरियों को हमारी संस्थाओं और व्यवस्थाओं पर यक़ीन करना होगा, जब तक ऐसा नहीं होता है, कुछ असंतोष का माहौल बना रहेगा।

लेकिन प्रशासन और सरकार को उनका दिल जीतने के लिए कदम उठाने होंगे। यह एक लंबी प्रक्रिया होगी, जिस पर प्रशासन और सरकार को परखा जाएगा। भारत सरकार के फ़ैसले के बाद पाकिस्तान की प्रतिक्रिया तीखी रही है। उसके पास कोई अन्य रास्ता भी नहीं था। पाकिस्तान को यह मालूम था कि ऐसा एक न एक दिन होगा लेकिन फिर भी वो चकित हुआ।

मेरे हिसाब से भारत की सरकार ने भी अनुच्छेद 370 को हटाने से पहले पर्याप्त तैयारियां की थी। घाटी में जो आतंकवाद का नेटवर्क था, उसे रोकने के लिए कार्रवाई की गई। सरकार के इस फैसले का विरोध कर रहे लोगों से मैं यही कहना चाहूंगा कि आशावादी होकर चलना चाहिए और कश्मीर की जनता को भी खास तौर पर सोचना चाहिए कि शायद भारत सरकार ने ऐसा फैसला उनकी भलाई के लिए लिया है।
ये भी पढ़ें
परिवारवाद के रास्ते लोकतंत्र में गद्दी पाने वाले नेता