नितिन श्रीवास्तव, बीबीसी संवाददाता
इसी साल 18 जून को कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत के सरे में ख़ालिस्तान समर्थक नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या हुई थी। इसके बाद देश के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने संसद में इस हत्या के पीछे भारतीय एजेंसियों के हाथ होने की आशंका ज़ाहिर की थी।
भारत ने इस तरह के सभी आरोपों को निराधार बताया है और इस हत्या में किसी भी तरह की भूमिका होने से इनकार किया है। लेकिन ये पहली बार नहीं है जब किसी देश पर एक दूसरे देश में किसी ख़ुफ़िया ऑपरेशन को अंजाम देने का आरोप लगा है।
अमेरिका, रूस, इसराइल, चीन और ब्रिटेन जैसे देशों पर पहले भी इस तरह के आरोप कई दफ़ा लग चुके हैं। भारत और पाकिस्तान भी एक दूसरे पर कई बार ख़ुफ़िया मिशन के तहत कई कारनामे अंजाम देने के आरोप झेल चुके हैं।
इस तरह के मिशन की बात हो और इसराइल की ख़ुफ़िया एजेंसी मोसाद का ज़िक्र न हो ये तो संभव ही नहीं है। इसलिए पढ़ते हैं मोसाद द्वारा अंजाम दिए गए 5 टॉप मिशन्स के बारे में:
1960 का ऑपरेशन फ़िनाले
1957 में पश्चिम जर्मनी के हेस राज्य के प्रमुख अभियोक्ता और यहूदी नस्ल के जर्मन नागरिक फ़्रिट्स बॉएर ने इसराइल की ख़ुफ़िया एजेंसी मोसाद से संपर्क स्थापित करके बताया था कि एडोल्फ़ आइकमन जीवित हैं और अर्जेंटीना में किसी गुप्त ठिकाने पर रह रहे हैं।
लेफ़्टिनेंट कर्नल एडोल्फ़ आइकमन लंबे समय तक एडोल्फ़ हिटलर की बदनाम स्टेट सीक्रेट पुलिस गेस्टापो में यहूदी डिपार्टमेंट के प्रमुख रहे थे। उनके कार्यकाल में सबसे ज़्यादा अत्याचार करने वाले फ़ाइनल सॉल्यूशन नाम का प्रोग्राम लॉन्च किया गया था।
इस प्रोग्राम के तहत जर्मनी और आसपास के मुल्कों में रह रहे हज़ारों यहूदी नागरिकों को अपने घरों से कॉनसेंट्रेशन कैंप्स ले जाकर सिलसिलेवार तरीक़े से उनकी हत्या की गई थी।
इसे 'होलोकॉस्ट' के नाम से जाना जाता है, जो नाज़ी जर्मन शासन और उसके सहयोगियों द्वारा क़रीब 40 लाख यूरोपीय यहूदियों का व्यवस्थित, राज्य-प्रायोजित उत्पीड़न और हत्या थी जो 1933 और 1945 के बीच पूरे यूरोप में हुई।
दूसरे विश्व युद्ध में जर्मनी की हार के बाद एडोल्फ़ आइकमन को तीन बार पकड़ा गया लेकिन वो हर बार गिरफ़्त से भाग निकले।
फ़्रिट्स बॉएर को आइकमन के अर्जेंटीना में रहने की ख़बर वहाँ रहने वाले एक यहूदी से मिली, जिसकी बेटी और आइकमन के बेटे में रोमांस चल रहा था।
हालाँकि इसराइली ख़ुफ़िया एजेंसी ने शुरुआत में इस सूचना को बहुत गंभीरता से नहीं लिया था लेकिन बाद में उन्होंने अपने तरीक़े से जाँच करने पर इसे सही पाया।
द कैप्चर एंड ट्रायल ऑफ़ एडोल्फ़ आइकमन' नामक किताब में चार्ल्स रिवर लिखते हैं, “आइकमन भले ही लेफ़्टिनेंट कर्नल रैंक के अफ़सर रहे हों लेकिन नाज़ी जर्मनी में एक समय में उनका रुतबा किसी जनरल से कम नहीं था। इस दौरान वे सीधे हिटलर की कोर टीम को रिपोर्ट करते थे।”
आइकमन के अर्जेंटीना में छुप कर रहने की ख़बर पुख़्ता होने के बाद इसराइल की मोसाद के प्रमुख ने रफ़ी ऐतान को उस मिशन का कमांडर बनाया, जिसके तहत एजेंट्स उन्हें ज़िंदा पकड़ कर इसराइल वापस लाने की कोशिश करेंगे।
मोसाद की टीम ने ब्यूनस आयर्स में एक घर किराए पर लिया, जिसे कोडनेम 'कासेल' दिया गया। इस बीच पता चला कि 20 मई को अर्जेंटीना अपनी आज़ादी की 150वीं वर्षगाँठ मनाएगा।
तय हुआ कि इसराइल भी शिक्षा मंत्री अब्बा इबन के नेतृत्व में अपना एक प्रतिनिधिमंडल अर्जेंटीना भेजेगा। इसको ले जाने के लिए इसरायली एयरलाइंस एलाई ने एक ख़ास विमान 'विस्परिंग जायंट' उपलब्ध कराया।
प्लान यही था कि बिना इसराइली शिक्षा मंत्री को जानकारी दिए हुए, आइकमन को किडनैप करके इसी विमान से बाहर निकाल दिया जाए।
आइकमन हर शाम सात बज कर 40 मिनट पर बस नंबर 203 से घर लौटते थे और थोड़ी दूर पैदल चल कर अपने घर पहुँचते थे। योजना बनी कि इस ऑपरेशन में दो कारें हिस्सा लेंगी और एक कार में उन्हें किडनैप किया जाएगा।
बस से उतरते ही आइकमन को पकड़ लिया गया। 20 मई की रात आइकमन को इसराइली एयरलाइंस वर्कर की ड्रेस पहनाई गई। उनकी जेब में ज़ीव ज़िकरोनी के नाम से एक झूठा आई-कार्ड रखा गया और अगले दिन उनके विमान ने तेल अवीव में लैंडिंग की।
उनके इसराइल पहुँचने के दो दिन बाद इस ख़बर को दुनिया के सामने रखा गया। महीनों चले मुक़दमे में से 15 मामलों में दोषी पाए जाने पर उनके फाँसी की सज़ा सुनाई गई।
ऑपरेशन रॉथ ऑफ़ गॉड
बात साल 1972 की है और जर्मनी में म्यूनिख ओलंपिक गेम्स चल रहे थे। पाँच सितंबर की रात को इसराइल के एथलीट म्यूनिख ओलंपिक विलेज के अपने फलैट्स में सो रहे थे कि एकाएक पूरा अपार्टमेंट मशीन गनों की आवाज़ों से गूंज उठा।
फ़लस्तीनी ब्लैक सेपटेंबर लिबरेशन ऑर्गेनाइज़ेशन के आठ लड़ाके खिलाड़ियों की पोशाक पहन कर अपार्टमेंट में घुस अंधाधुंध फ़ायरिंग कर रहे थे, जिसमें 11 इसराइली खिलाड़ियों और एक जर्मन पुलिसकर्मी की हत्या हुई थी।
घटना के दो दिन बाद ही इसराइल ने सीरिया और लेबनान में पीएलओ के 10 ठिकानों को बमबारी करके नष्ट कर दिया।
कई साल बाद जारी हुई एक इसराइली संसदीय समिति की रिपोर्ट में इस बात का ज़िक्र है कि उस समय इसराइल ने क्या करने को सोचा था।
रिपोर्ट के मुताबिक़, “प्रधानमंत्री गोल्दा मेयर ने शीर्ष सरकारी अधिकारियों वाली कमिटी X बनाई थी, जिसका उद्देश्य उन निर्मम हत्याओं का बदला लेना था। जवाबी कार्रवाई की कमान सम्भालने वाले मोसाद के तत्कालीन प्रमुख ज़्वी ज़मिर थे”।
साइमन रीव की किताब वन डे इन सेप्टेम्बर में इस बात का ज़िक्र है कि कैसे इसराइल ने एक लंबा समय इस ऑपरेशन की तैयारी में लगाया, जिससे दुनिया के किसी भी हिस्से में छुपे हुए म्यूनिख हमलावरों को ढूँढ निकाला जाए।
साइमन रीव लिखते हैं, “16 अक्टूबर, 1972 को एजेंटों ने पीएलओ इटली के प्रतिनिधि अब्दल-वैल ज़ावैतर को रोम में उनके घर में घुस कर गोलियां मारीं और ये लंबे समय तक चलने वाले कथित इसराइली बदले की शुरुआत थी।”
इसके बाद 9 अप्रैल, 1973 को मोसाद ने बेरूत में एक संयुक्त अभियान शुरू किया, जिसमें इसराइली कमांडो मिसाइल नौकाओं और गश्ती नौकाओं से लेबनान के एक ख़ाली समुद्री तट पर रात को पहुँचे।
अगले दिन दोपहर तक ब्लैक सेपटेंबर लिबरेशन ऑर्गनाइज़ेशन चलाने वाली फ़तह की ख़ुफ़िया शाखा के प्रमुख मोहम्मद यूसुफ़ या अबू-यूसुफ़, कमल अदवान और पीएलओ प्रवक्ता कमल नासिर की मौत हो चुकी थी। कुछ जानकारों का ये भी मानना है कि इसराइल ने इस ऑपरेशन को अगले पाँच साल तक जारी रखा था।
सीरिया में मोसाद की पकड़ (1962-65)
1960 के दशक में सीरिया और इसराइल के संबंध ख़ासे ख़राब थे। गोलन हाइट्स पर सीरियाई फ़ौज से इसराइल की उत्तरी सीमा पर रहने वाले समुदायों को बार-बार धमकी मिल रही थी, जिससे इसराइल में बेचैनी बढ़ रही थी।
सीरिया में इसराइल के ख़िलाफ़ बनने वाले ख़ुफ़िया राजनीतिक और फ़ौजी मनसूबों को भाँपने और सही ख़बर निकालने के लिए सीरिया के अंदर एक एजेंट की आवश्यकता थी। एली कोहेन के रूप में उन्हें इस काम के लिए एक व्यक्ति मिला।
एली कोहेन का जन्म मिस्र में हुआ था और वे सीरियाई मूल के यहूदियों के बेटे थे, जिन्होंने पहले भी इसराइली ख़ुफ़िया एजेंसी में नौकरी पाने की कोशिश की थी लेकिन दोनों बार रिजेक्ट कर दिए गए थे।
बहराल, 1960 में मोसाद ने एली कोहेन को जासूस के रूप में भर्ती करने का फ़ैसला किया और उन्हें सीरिया में जाकर जासूसी करने की ट्रेनिंग शुरू कर दी।
इसके बाद एली कोहेन को सीरियाई माता-पिता से पैदा हुए एक सफल व्यवसायी के रूप में अपनी नई पहचान बनाने के लिए अर्जेंटीना भेजा गया।
वहां उन्होंने खुद को सीरियाई प्रवासियों की कई संस्थाओं और गुटों में शामिल करवा लिया।
राजनयिकों, राजनेताओं और बड़े फ़ौजी अफ़सरों से दोस्ती के अलावा उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति से भी दोस्ती गाँठ ली जो बाद में सीरिया के राष्ट्रपति बने।
1962 में सीरिया में बाथ पार्टी ने सरकार बनाई और कोहेन इसी मौक़े की तलाश में थे।
अर्जेंटीना में अपने संपर्क का बख़ूबी इस्तेमाल करते हुए वे सीरिया में रहते हुए कई आला अफ़सरों के विश्वासपात्र बन गए।
“द मोसाद: सिक्स लैंडमार्क मिशन्स” नाम की किताब में लेखक मार्क इ वार्गो लिखते हैं, “एक समय में तो कोहेन को उप रक्षा मंत्री का उम्मीदवार भी माना जाता था और दमिश्क में वे किसी भी तरह की बिज़नेस डील या करार करवा सकते थे। यही वो दौर था जब उन्होंने सीरियाई अफ़सरों को महँगे तोहफ़े और महँगी शराब गिफ़्ट करते-करते उनसे तमाम ख़ुफ़िया जानकारियाँ जुटाईं और मोसाद को पास-ऑन कीं।”
एली कोहेन ने 1964 में इसराइली सरकार को ख़बर दी कि सीरिया जॉर्डन नदी के पास एक बड़ी नहर बनाकर इसराइल की पानी सप्लाई काटने की योजना बना रहा है।
मोसाद ने जानकारी सरकार तक पहुँचाई और तुरंत ही इसराइली विमानों ने पानी मोड़ने वाले भारी उपकरणों और कैंपों पर तगड़ी बमबारी करके प्लान को विफल कर दिया।
एली कोहेन ने सीरियाई सरकार में इस कदर पैठ बना ली थी कि एक बार वे कई दिनों के साथ शीर्ष फ़ौजी अफ़सरों के बग़ल में बैठ कर सीरिया-इसराइली सीमा के निरीक्षण पर भी गए थे। सीमा की सुरक्षा और फ़ौज की असल तादाद और शक्ति का पूरा ब्योरा फिर मोसाद के हाथों ख़ुफ़िया तरीक़े से इसराइल पहुँच गया।
ख़ुफ़िया जानकारी लीक होने से बौखलाए हुए सीरिया के ख़ुफ़िया तंत्र ने सहयोगी सोवियत संघ के अधिकारियों की मदद ली।
1965 में एली कोहेन को सीरियाई और सोवियत अधिकारियों ने अति-संवेदनशील पहचान उपकरण का उपयोग करते हुए पकड़ा था, जब वे एक ख़ुफ़िया संदेश इज़राइल भेज रहे थे।
कोहेन को मौत की सज़ा सुनाई गई और राजधानी दमिश्क के बीचोंबीच उन्हें फाँसी पर लटका दिया गया। इसराइल में आज भी कोहेन को बतौर एक देशभक्त हीरो याद किया जाता है।
मिशन ईरान
इसराइल और ईरान के संबंध हमेशा से तीखे रहे हैं। ख़ासतौर से ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर।
लेकिन साल 2012 में प्रकाशित हुई किताब 'मोसाद: द ग्रेटेस्ट मिशन्स ऑफ़ द इसराइली सीक्रेट सर्विस' में न सिर्फ़ ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर इसराइली रोक-थाम की ख़ुफ़िया कोशिशों का ज़िक्र किया गया है बल्कि ये भी दर्शाया है कि कैसे इस एजेंसी ने जेम्स बॉन्ड फ़िल्मों की तरह असल ज़िंदगी में ख़तरनाक मिशन्स को अंजाम दिया।
इस किताब के लेखक माइकल बर-ज़ोहर और निस्सिम मिशल के मुताबिक़, “ईरान को परमाणु हथियार बनाने से रोकने के लिए इसराइल ने उनके सेंट्रीफ्यूज में तोड़फोड़ की कोशिश की। इसके लिए मोसाद ने पूर्वी यूरोपीय फ्रंट कंपनियों की स्थापना की, जिन्होंने कथित तौर पर ईरान को दोषपूर्ण इन्सुलेशन बेच दिए। इनके संयुक्त इस्तेमाल की वजह से ईरान के नए सेंट्रीफ्यूज बेकार हो गए”।
“मोसाद: द ग्रेटेस्ट मिशन्स ऑफ़ द इसराइली सीक्रेट सर्विस” में इस बात का भी ज़िक्र है कि जनवरी 2010 में ईरान के परमाणु कार्यक्रम के एक सलाहकार की "उनकी कार के पास खड़ी मोटरसाइकिल में छिपाकर रखे गए विस्फोटक से हत्या कर दी गई"।
न्यूयॉर्क टाइम्स अख़बार में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक़, “2011 में ईरानी परमाणु परियोजना प्रमुख अपनी कार में कहीं जा रहे थे और तभी उनकी बगल चल रहे एक मोटरसाइकिल चालक ने कार की पिछली विंडशील्ड पर एक छोटी सी डिवाइस चिपका दी। चंद सेकंड बाद ही उस डिवाइस से विस्फोट हुआ, जिससे उस 45 वर्षीय न्यूक्लियर वैज्ञानिक की मौत हो गई और उसकी पत्नी घायल हो गईं।”
ज़्यादा पुरानी बात नहीं है, जब 2021 में एक ईरानी परमाणु ठिकाने में यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम को एक बड़ा झटका लगा, जब एक बड़े विस्फोट के कारण साइट पर बिजली गुल हो गई थी, जिससे यूरेनियम को समृद्ध करने वाले सेंट्रीफ्यूज ठप पड़ गए थे।
जानकारों का मत है कि “बिजली कटौती मोसाद का काम था भले ही संगठन ने कोई आधिकारिक जिम्मेदारी नहीं ली।”
हमास से बदला
क़रीब साल भर तक चली अपनी जाँच के बाद फ़लस्तीनी संगठन हमास ने इसराइल की मोसाद एजेंसी पर ट्यूनीशिया में रह रहे अपने एक कमांडर मुहम्मद अल-ज़्वारी की हत्या का आरोप लगाया था।
दरअसल, 15 दिसंबर 2016 के दिन मुहम्मद अल-ज़वारी को ट्यूनीशिया के स्फ़ैक्स में उनके आवास के पास चलती हुई कार से दागी गई गोलियों से भून दिया गया था।
ज़्वारी एक पेशेवर एरोनॉटिकल इंजीनियर थे, जिन्होंने हमास के लिए और कथित तौर पर हिज़्बुल्लाह के लिए कई तरह के ड्रोन का डिज़ाइन और निर्माण किया था।
कुछ अपुष्ट रिपोर्टों के मुताबिक़ उन्होंने एक मानवरहित नौसैनिक जहाज भी डिज़ाइन किया था जो पानी के नीचे से अन्य समुद्री जहाजों पर हमला कर सकता था।
हत्यारों की पहचान करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं मिल सका था और जो कुछ मिला भी वो मोबाइल फ़ोन सिम और एक किराए की कार थी जो किसी तीसरे व्यक्ति के नाम दर्ज थी।
हमास के हाई-टेक हथियार विशेषज्ञों की हत्या पहले के ऑपरेशनों से अलग इसलिए बताई जा रही थी क्योंकि मोसाद ने कथित तौर पर अब न सिर्फ़ हमलावारों बल्कि उनके पीछे के सपोर्ट-सिस्टम को भी निशाना बनाना शुरू कर दिया था।