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Last Modified: शनिवार, 28 सितम्बर 2019 (10:55 IST)

डॉक्टर कफ़ील मामले की जांच पूरी नहीं हुई तो कैसे फैली 'क्लीन चिट' की ख़बर?

डॉक्टर कफ़ील मामले की जांच पूरी नहीं हुई तो कैसे फैली 'क्लीन चिट' की ख़बर? - How news of Clean cheat to Dr Kafeel spread
समीरात्मज मिश्र
गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में दो साल पहले ऑक्सीजन की कमी से हुई बच्चों की मौत के मामले में क्या उत्तर प्रदेश सरकार ने बाल रोग विभाग के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डॉक्टर कफ़ील ख़ान को क्लीन चिट दे दी है? शुक्रवार को दिनभर मीडिया में ये ख़बर छाई रही।
 
डॉक्टर कफ़ील ख़ान ने बीबीसी से बातचीत में यह दावा किया कि उन्हें विभाग की तरफ से क्लीन चिट मिल चुकी हैं। साथ ही उन्होंने 'वास्तविक दोषियों को सज़ा दिलाने' की सरकार से मांग भी की। मगर सम्बन्धित विभाग का कहना है कि अभी जांच पूरी नहीं हुई है और किसी तरह की 'क्लीन चिट' के बारे में कोई बयान नहीं आया है।
 
इस मामले की जांच के लिए राज्य सरकार ने तत्कालीन प्रमुख सचिव, खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग को जांच अधिकारी बनाया था।
 
डॉक्टर कफ़ील ने बताया कि अप्रैल महीने में जांच अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी और गुरुवार को बीआरडी मेडिकल कॉलेज की ओर से उन्हें ये रिपोर्ट दी गई है।
 
क्या है डॉक्टर कफ़ील का दावा?
हालांकि डॉक्टर कफ़ील जिस रिपोर्ट का हवाला दे रहे थे उसमें जांच अधिकारी का नाम हिमांशु कुमार बताया गया है और उन्हें स्टांप विभाग का प्रमुख सचिव बताया गया है।
 
रिपोर्ट का हवाला देते हुए डॉक्टर कफ़ील ने बीबीसी को बताया, 'जांच अधिकारी यानी प्रमुख सचिव हिमांशु कुमार को यूपी के चिकित्सा शिक्षा विभाग ने 18 अप्रैल को 15 पन्नों की रिपोर्ट सौंपी थी। रिपोर्ट में साफ़ कहा गया है कि कफ़ील लापरवाही के दोषी नहीं थे और उन्होंने 10-11 अगस्त 2017 की रात को स्थिति को नियंत्रित करने की काफ़ी कोशिश की। रिपोर्ट में इस बात का भी ज़िक्र है कि डॉक्टर कफ़ील ने अपने वरिष्ठ सहयोगियों को ऑक्सीजन की कमी से अवगत कराया था और अपनी व्यक्तिगत क्षमता से कई ऑक्सीजन सिलेंडर भी दिए थे।'
 
डॉक्टर कफ़ील का ये बयान प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में छाया रहा। डॉक्टर कफ़ील की ओर से उपलब्ध कराई गई आठ पन्ने की रिपोर्ट भी वॉट्सऐप के ज़रिए लोगों तक घूमती रही, जबकि वास्तविक रिपोर्ट ख़ुद उन्हीं के मुताबिक 15 पन्नों की है।
 
'पूरी नहीं हुई है जांच'
वहीं जब सम्बन्धित विभाग के अधिकारियों से इस बारे में सवाल हुआ तो पता चला कि 'क्लीन चिट' के बारे में कोई आधिकारिक बयान न तो आया है और न ही अभी जांच पूरी हुई है। बाद में शासन की ओर से एक बयान जारी हुआ। इसमें जानकारी दी गई है कि बीआरडी मेडिकल कॉलेज गोरखपुर में ऑक्सीजन की कमी से हुई बच्चों की मौत के मामले में डॉक्टर कफ़ील के ख़िलाफ़ चल रही विभागीय जांच और प्राइवेट प्रैक्टिस के मामले की जांच में अंतिम फ़ैसला नहीं हुआ है।
 
अगस्त 2017 में बच्चों की ऑक्सीजन की कमी से मौत के बाद डॉक्टर कफ़ील पर प्राइवेट प्रैक्टिस करने, 100 बेड एईएस वार्ड का नोडल प्रभारी होने सहित चार मामलों में जांच की जा रही है। शासन स्तर से कराई गई इस जांच में उन्हें दो मामलों में दोषी पाया गया है जिस पर अंतिम कार्रवाई अभी बाक़ी है जबकि दो मामलों में उन्हें निर्दोष बताया गया है।
 
जिन दो मामलों में उन्हें शासन के स्पष्टीकरण में दोषी पाया गया है, वो हैं प्राइवेट प्रैक्टिस का मामला और प्राइवेट अस्पताल यानी नर्सिंग होम संचालित करने का मामला।
 
इस बात का ज़िक्र डॉक्टर कफ़ील ने भी किया है। हालांकि दोनों ही रिपोर्ट ये कहती हैं कि घटना के एक साल पहले यानी अगस्त 2016 के बाद वो प्राइवेट प्रैक्टिस नहीं कर रहे थे।
 
सरकार का दावा, ख़बरें सही नहीं
डॉक्टर कफ़ील पर दो अन्य मुख्य आरोप लापरवाही और ऑक्सीजन की कमी की सूचना वरिष्ठ लोगों को न देने के संबंध में थे। शासन की ओर से मिले स्पष्टीकरण में भी इन दोनों मामलों में उन्हें दोषमुक्त बताया गया है। डॉक्टर कफ़ील भी दोषमुक्त होने की बात जब कह रहे हैं तो वो ख़ासतौर से इन्हीं दो आरोपों का ज़िक्र कर रहे हैं।
 
शासन की ओर से आए स्पष्टीकरण में साफ़तौर पर कहा गया है कि मीडिया में डॉक्टर कफ़ील को विभागीय जांच में क्लीन चिट दिए जाने संबंधी समाचार सही नहीं हैं और उनके विरुद्ध चल रही विभागीय कार्रवाई में कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है।
 
यह भी कहा गया है कि चार आरोपों में से दो में वो दोषी पाए गए हैं, इसके अलावा अनुशासनहीनता की कार्रवाई भी उन पर होगी क्योंकि उन्होंने मीडिया में भ्रामक ख़बरें फैलाई हैं।
 
यही नहीं, शासन की ओर से जारी किए स्पष्टीकरण के अनुसार निलंबन के दौरान डॉक्टर कफ़ील ने बहराइच ज़िला चिकित्सालय के बाल रोग विभाग में 22 सितंबर 2018 को ज़बरन घुसकर मरीजों का इलाज करने का प्रयास किया, जिससे वहां अफ़रा-तफ़री मच गई और मरीज़ बच्चों का जीवन संकट में पड़ गया। वहीं चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधिकारी इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं।
 
आधिकारिक रूप से बीआरडी मेडिकल कॉलेज के भी अधिकारी कुछ नहीं कह रहे हैं लेकिन एक उच्चाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि मेडिकल कॉलेज की ओर से डॉक्टर कफ़ील को कोई कागज़ या रिपोर्ट या दस्तावेज़ नहीं दिए गए हैं। अधिकारी के मुताबिक, 'उन्हें ये दस्तावेज़ कैसे मिले, ये भी जांच का विषय है।
 
कैसे वायरल हुई ये ख़बर?
सबसे बड़ा सवाल ये कि सिर्फ़ कफ़ील ख़ान के बयान के आधार पर उन्हें 'दोषमुक्त' बता देने की ख़बरें कैसे मीडिया में वायरल हो गईं? इस बारे में सरकारी पक्ष शायद ही कहीं दिखा हो।
 
वरिष्ठ पत्रकार शरद प्रधान कहते हैं, 'दरअसल, वॉट्सऐप वाली पत्रकारिता टीवी चैनलों से चलकर वेब पोर्टलों के रास्ते अख़बारों तक आ गई है। ख़बरों की अपने स्तर पर पड़ताल करने या फिर सम्बन्धित पक्षों से उसकी सच्चाई और उनका पक्ष जानने की ज़रूरत नहीं महसूस की जाती।'
 
शरद प्रधान दावा करते हैं कि यही वजह है कि ज़्यादातर वेब पोर्टलों पर एक ही तरह की कहानी छपी रहती है। हालांकि शासन की ओर से आए स्पष्टीकरण और कफ़ील ख़ान की ओर से दिखाए जा रहे जांच अधिकारी के दस्तावेज़ और उनके निष्कर्षों में कोई बहुत अंतर नहीं है लेकिन ये कहना भी पूरी तरह से ठीक नहीं है कि जांच कमेटी ने उन्हें दोषमुक्त कर दिया। वो भी तब, जबकि सरकार के अनुसार जांच प्रक्रिया अभी पूरी भी नहीं हुई है।
 
गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 10 अगस्त 2017 को ऑक्सीजन की कमी के चलते सत्तर बच्चों की मौत हो गई थी।
 
शुरुआत में अख़बारों और सोशल मीडिया में डॉक्टर कफ़ील को हीरो बताया गया क्योंकि उन्होंने बाहर से सिलेंडर मांगकर कई बच्चों की जान बचाई लेकिन कुछ ही दिन बाद उन्हें लापरवाही बरतने और तमाम गड़बड़ियों के आरोप में मेडिकल कॉलेज से सस्पेंड कर दिया गया। बाद में उन्हें गिरफ़्तार करके जेल भेज दिया गया। डॉक्टर कफ़ील क़रीब आठ महीने तक जेल में रहे। 
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