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Written By BBC Hindi
Last Modified: गुरुवार, 14 अप्रैल 2022 (07:25 IST)

क्या यूपी का मुसलमान एक नए राजनीतिक विकल्प की तलाश में है?

क्या यूपी का मुसलमान एक नए राजनीतिक विकल्प की तलाश में है? - are Muslim searching new political option in UP
अनंत झणाणें, बीबीसी संवाददाता
समाजवादी पार्टी के क़द्दावर नेता और पार्टी के मुसलमान चेहरा आज़म ख़ान के मीडिया सलाहकार के नाराज़गी भरे बयान ने उत्तर प्रदेश के मुसलमानों से जुड़ी राजनीति में एक नई बहस छेड़ दी है। सवाल यह उठ रहा है कि आज़म ख़ान के मीडिया सलाहकार खुलेआम अखिलेश यादव पर निशाना क्यों साध रहे हैं?
 
और इससे अगला सवाल यह भी पैदा होता है कि अखिलेश यादव को लगभग एक तरफ़ा वोट देने वाले मुसलमान मतदाता क्या वाक़ई में उनसे अब नाराज़ हो गए हैं? आज़म ख़ान के ख़िलाफ़ 80 से ज़्यादा मुक़दमे हैं और पिछले ढाई साल से वो जेल में हैं।
 
उनके बेटे अब्दुल्लाह आज़म को ठीक चुनाव से पहले ज़मानत मिली और दोनों पिता-पुत्र भारी मतों से जीत विधायक बने।
 
क्यों ख़फ़ा है आज़म ख़ान का ख़ेमा?
आज़म ख़ान के करीबी और मीडिया सलाहकार फ़साहत अली ख़ान ने रामपुर में खुले मंच से अखिलेश यादव से सवाल किया, "वाह राष्ट्रीय अध्यक्ष जी वाह! हमने आपको और आपके वालिद साहब (मुलायम सिंह) को चार बार प्रदेश का मुख्यमंत्री बनवाया। आप इतना नहीं कर सकते थे कि आज़म ख़ान साहब को नेता विपक्ष बना देते? हमारे कपड़ों से बू आती है राष्ट्रीय अध्यक्ष जी को। स्टेजों पर हमारा नाम नहीं लेना चाहते हैं।"
 
फ़िलहाल यह साफ़ नहीं है कि क्या यह फ़साहत अली ख़ान के व्यक्तिगत विचार हैं या फिर यह सब आज़म ख़ान के कहने पर हुआ। लेकिन यह जग ज़ाहिर है कि वो आज़म ख़ान के सबसे क़रीबी लोगों में से एक हैं।
 
नेता प्रतिपक्ष नहीं बनाना नाराज़गी की वजह?
इस बारे में पश्चिम उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और लम्बे समय से नवभारत टाइम्स से जुड़े हुए शादाब रिज़वी कहते हैं, "आज़म ख़ान विधायक का चुनाव शायद इसलिए लड़े थे कि सरकार आ जाएगी और उन्हें आसानी से ज़मानत मिल जाएगी। अब जब ये नहीं हुआ तो उनकी एक बड़ी ख्वाहिश यह थी कि नेता विपक्षी दल बना दिया जाये। अगर वो नेता विपक्ष बनते तो उन पर क़ानूनी शिकंजा, सरकार का शिकंजा कम हो सकता है।"
 
शादाब रिज़वी आगे कहते हैं, "आज़म ख़ान मुसलामानों के एक बड़े चेहरे हैं तो अगर आप उनको कुछ देंगे तो मुसलमान आपके साथ जुड़ा रहेगा। तो मुझे लगता है कि उनके ख़फ़ा होने की असली वजह यही है।"
 
शादाब रिज़वी के अनुसार विधान सभा में नेता विपक्ष बनने के बाद अपने भाषण में अखिलेश यादव ने भाजपा के नेताओं को सम्मान तो दिया लेकिन आज़म ख़ान का ज़िक्र करना भूल गए। उनके मुताबिक़ आज़म ख़ान के समर्थकों में यह भी कसक है कि वो आज़म ख़ान को समय-समय पर याद नहीं करते हैं।
 
आज़म ख़ान से अखिलेश यादव जेल में मिलने भी तब गए जब असदउद्दीन ओवैसी और कांग्रेस के इमरान प्रतापगढ़ी ने आज़म ख़ान से जेल जाकर मिलने की पेशकश की।
 
पार्टी करे मुसलमानों का शुक्रिया अदा: सपा सांसद बर्क़
अखिलेश यादव पर दबाव सिर्फ़ आज़म ख़ान का ही नहीं है। समाजवादी पार्टी के संभल से सांसद और उसके संस्थापक सदस्यों में से एक शफ़ीक़-उर-रहमान बर्क़ ने भी सपा के मुसलमानों के प्रति रवैये के बारे में कहा, "सवाल यह है कि मुसलमानों की क़ुर्बानी किसी से छुपी नहीं है। मुसलमानों ने इस चुनाव में अपनी जान खपा दी और बिलकुल एकतरफ़ा रोल अदा किया, समाजवादी को ही वोट दिया। समाजवादी पार्टी को मुसलमानों का शुक्रिया अदा करना चाहिए।"
 
शुक्रिया कैसे अदा किया जाये, इस सवाल के जवाब में शफ़ीक़-उर-रहमान बर्क़ कहते हैं, "शुक्रिया का मतलब यह है कि पार्टी महसूस करे कि किसने कितनी क़ुर्बानी दी है। मायावती ने भी कहा है कि मुसलामानों ने सपा को वोट दिया, तो क्या हमारी पार्टी नहीं मानेगी इसको? लोग शिकायत करते हैं कि हमने इतनी बड़ी कुर्बानी दी, आज तक पार्टी ने दो लफ्ज़ भी ना कहे हमारे लिए।"
 
तो क्या अखिलेश यादव शुक्रिया करने से चूक रहे हैं?
इस बारे में बर्क़ कहते हैं, "वो अखिलेश यादव का मामला है, उस पर मैं कोई तब्सरा (बयान) नहीं कर सकता हूँ। उनका काम अपनी जगह है। मेरी राय अपनी जगह है। मैं अपनी राय का इज़हार कर सकता हूँ। मैं अहसास दिला सकता हूँ।"
 
अखिलेश के लिए मुसलमानों के मुद्दे उठाना हुआ मुश्किल?
पिछले हफ़्ते उत्तर प्रदेश के सीतापुर में एक कथित धर्मगुरु बजरंग मुनि ने मुस्लिम महिलाओं के बारे में भड़काऊ भाषण दिया जिसमें उन्होंने मुसलमान बहू- बेटियों को अग़वा कर उनके साथ बलात्कार करने की आपत्तिजनक बात की थी।
 
यह वीडियो वायरल हुआ और पुलिस ने मामले में एफ़आईआर दर्ज की। लेकिन सपा प्रमुख अखिलेश यादव इस पूरे मामले पर अब तक चुप हैं।
 
लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार परवेज़ अहमद कहते हैं, "मुसलमान को ऐसा लग रहा है कि उसे पूरी तरह से ठग लिया गया है। क्योंकि 97 फ़ीसद मुसलमानों ने आँख बंद कर (सपा को) वोट दिया। सरकार (योगी की) बनने के बाद आक्रोश में, सत्ता में आने की ख़ुशी में कई घटनाएं हो गयीं, जैसे सीतापुर भड़काऊ भाषण की घटना, मेरठ में बिरयानी का ठेला पलटने की घटना। लेकिन समाजवादी पार्टी चुप है। अखिलेश यादव ने एक ट्वीट भी नहीं किया।"
 
सपा के नवनिर्वाचित मुसलमान विधायकों के ख़िलाफ़ कार्रवाई के बारे में पत्रकार परवेज़ अहमद कहते हैं, "जो विधायकों पर शुरूआती कारवाईयाँ हुईं, मैं उनका बचाव नहीं करता हूँ। बरेली के शहजिल इस्लाम ने कहा था कि उनकी बंदूक से धुआं नहीं गोली निकलेगी। हो सकता है कि उनका पेट्रोल पंप ग़लत हो, लेकिन उसमें जल्द एक्शन हो कर बुलडोज़र चला। कैराना के सपा विधायक नाहिद हसन पर भी कार्रवाई हो गयी। यह दूध के धुले लोग नहीं हैं, गड़बड़ लोग हैं। लेकिन जिस तरह से उन पर सख़्ती से कार्रवाई हो रही है, उस पर सपा की चुप्पी ने मुसलमानों को बहुत छटपटाहट में ला दिया है।"
 
2022 विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान भाजपा ने लगातार अखिलेश यादव पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाया था। चुनाव ख़त्म होने के बाद भी यह आरोप प्रदेश के मौजूदा माहौल में ज़िंदा है।
 
इसे समझाते हुए पत्रकार शादाब रिज़वी कहते हैं, "जब भी अखिलेश यादव मुसलामानों के किसी मुद्दे को प्रमुखता से उठाते हैं तो भाजपा उसे बहुत जल्दी से पकड़ लेती है। और उसका इस्तेमाल कर हर एंगल से हमला करती है, और अपने हिन्दू-मुस्लिम एजेंडे को ऊपर ले आती है। आप इसे अखिलेश यादव की मजबूरी या रणनीति समझ सकते हैं कि भले ही अखिलेश यादव दिल से और मन से मुसलमानों के मुद्दों के साथ हैं लेकिन वो मुद्दों को प्रमुखता से उठाने से बचते हैं।"
 
शादाब रिज़वी के मुताबिक़ मुसलमानों में मुख्य कसक यह है कि जब मुसलमानों पर हमले हो रहे हैं, वहां पर तो अखिलेश यादव बोल सकते हैं, उससे मुसलमानों की नाराज़गी थोड़ी कम हो सकती है। मुसलमान यह सोचता है कि भई हमारा तो कोई नेता है ही नहीं, हमारी लड़ाई लड़ने वाले तो ग़ैर-मुसलमान ही हैं।"
 
शादाब रिज़वी आगे कहते हैं, "भाजपा के अलावा जो भी दल हैं वही तो मुसलमानों की आवाज़ उठाते हैं। तो फिर अखिलेश यादव क्यों नहीं उठा रहे हैं? हम तो वोट भी दे रहे हैं, हम पैसा भी दे रहे हैं, हम तुम्हारे साथ मुक़दमे भी झेल रहे हैं, हम जेल भी जा रहे हैं, और तुम मुसलमानों की बात भी ना करो?"
 
क्या मुसलमान विधायक बनाएंगे अपना राजनीतिक दल?
2022 के विधानसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में 34 मुसलमान विधायक चुन कर आये हैं। 2017 में यह संख्या 24 थी। इसमें 21 विधायक पश्चिम उत्तर प्रदेश से, छह मध्य उत्तर प्रदेश से और सात पूर्वांचल से जीते हैं। 34 में से 31 विधायक सपा के हैं, दो उसकी सहयोगी दल आरएलडी और एक सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का, जो भी सपा गठबंधन का हिस्सा है।
 
तो क्या यह 34 विधायक मिल कर एक पार्टी बना कर मुसलमानों की राजनीति कर सकते हैं?
 
पत्रकार शादाब रिज़वी कहते हैं, "कहीं न कहीं यह बात उठ रही है, लेकिन अभी इसका कोई मूल मंच नहीं बना है। मुसलमान जो अंदर ही अंदर बात करते हैं, वो कहते हैं कि मुसलमानों का कोई भी नेता कभी मुसलमान नहीं बना है। कभी मुलायम सिंह हमारे नेता बने, कभी मायावती। ओवैसी पर ठप्पा लग गया है कि वो भाजपा को फ़ायदा पहुँचाने वाली राजनीति करते हैं। तो कहीं ना कहीं यह बात उठ रही है कि इन्हें इकठ्ठा होकर अपनी आवाज़ बुलंद करनी चाहिए। उसकी अगुवाई कौन करेगा, यह एक दीर्घकालीन मामला है।"
 
सपा से नाराज़ होकर कहाँ जायेंगे मुसलमान? इस सवाल के जवाब में शादाब रिज़वी कहते हैं, "भाजपा में न तो मुसलमानों का मन मिलेगा, ना बात मिलेगी। हो सकता है कि इतनी तादाद में भाजपा की ओर मुसलमान ना जा पाएं। हो सकता है यह लोग कांग्रेस का रुख़ करें। और ऐसा नहीं तो वो अपनी पार्टी भी बना सकते हैं। किसी दल में जाते हैं तो दूसरी बात है, लेकिन अगर पार्टी बनाते हैं तो वो बड़ा परिवर्तन होगा।"
 
क्या आज़म ख़ान के पक्ष में मुसलमानों की गोलबंदी हो सकती है? इस सवाल पर शादाब रिज़वी कहते हैं, "आज़म ख़ान की 35-36 सालों की जो राजनीति रही है, उसमें मुसलमानों ने उन्हें अपने नेता के रूप में नहीं स्वीकारा है। वो समाजवादी पार्टी का मुस्लिम चेहरा तो थे, लेकिन वो मुस्लिम नेता कभी नहीं थे। आज़म ख़ान की जो उम्र है, जो उनके मुक़दमे हैं, उसकी वजह से मुसलमान उनका नेतृत्व स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है।"
 
तो क्या उम्मीद रखी जा सकती है कि मुसलमानों में से कोई नेता उभर कर सामने आएगा?
 
पत्रकार परवेज़ अहमद कहते हैं, "मुसलमानों के जो हालात हैं, उसमें वो लीडरशिप की भूमिका में नहीं हैं। वो किसी की स्थिति सुधार तो सकता है लेकिन ख़ुद लीड करने की हालत में नहीं है। क्योंकि लोकतंत्र में आप 20 प्रतिशत वोटों से सत्ता में नहीं आ सकते हैं।"
 
मुसलमान विधायकों का अपना अलग राजनीतिक दल बनाने की चर्चा पर सपा सांसद शफ़ीक़-उर-रहमान बर्क़ कहते हैं, "ऐसी कोई बात अभी नहीं है। और ना ही कोई इस तरह का ख़याल है।"
 
क्या है समाजवादी पार्टी का कहना?
हमने समाजवादी पार्टी के कुछ मुसलमान विधायकों से इन सभी मुद्दों पर उनकी राय जानने की कोशिश की पर फ़िलहाल सभी इस पर बात करने से कतरा रहे हैं।
 
बहस ज़रूर छिड़ी है, लेकिन यह मुद्दा अखिलेश यादव के लिए कितना बड़ा सियासी सिरदर्द बनेगा, यह अभी कहना मुश्किल है।
 
लेकिन चाचा शिवपाल यादव और आज़म ख़ान, दोनों का एक साथ नाराज़ होना अखिलेश यादव के लिए नए राजनीतिक संकट का संकेत है।
 
आज़म ख़ान के मीडिया सलाहकार के बयानों के बारे में सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी कहते हैं, "वो पर्सनल बयान है तो वो आज़म ख़ान साहब की राय नहीं हो सकती है। आज़म साहब सपा के बड़े नेता हैं, उन्होंने संघर्ष किया है, और समाजवादी पार्टी उनके साथ हमेशा रही है। वो पार्टी के साथ हमेशा रहे हैं। अभी बातचीत नहीं हुई है कि किस सन्दर्भ में ऐसा कहा गया है।"
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