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Written By संजीव श्रीवास्तव

मैं वर्तमान में जीता हूँ-सुब्रत राय

मैं वर्तमान में जीता हूँ-सुब्रत राय -
सहारा समूह के अध्यक्ष ‘सहाराश्री’ सुब्रत रॉय सहारा का मानना है कि मैं वर्तमान में जीने वाला आदमी हूँ और कोशिश करता हूँ कि वर्तमान में जो कुछ भी कर रहा हूँ उसमें कोई भूल न हो। वर्तमान अगर सही रहेगा तो आने वाला भविष्य भी अच्छा होगा।

उत्तरप्रदेश के एक बहुत ही छोटे शहर से अपने करियर की शुरुआत करने वाले ये शख्स बहुत से लोगों के लिए रोल मॉडल भी हो सकते हैं। आज उनके साथ लगभग आठ-दस लाख लोग सीधे काम करते हैं, जो भारत और दक्षिण एशिया की किसी भी कंपनी के लिए सबसे अधिक हैं।

बीबीसी एक मुलाकात कार्यक्रम में सुब्रत राय सहारने अपने जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर बीबीसी हिंदी के भारत संपादक संजीव श्रीवास्तव से खुलकर चर्चा की। प्रस्तुत है उसी बातचीत के प्रमुख अंश-

आप बहुत रोमांटिक हैं?
वो तो मैं हूँ। जो भी व्यक्ति भावुक होगा वो रोमांटिक भी होगा। आप अपने काम को लेकर भी रोमांटिक हो सकते हैं। रोमांटिक होना किसी एक क्षेत्र से जुड़ी चीज नहीं है। जीवन बहुत अच्छा हो जाता है और आप बहुत आशावादी हो जाते हैं। हर पल बहुत खूबसूरत लगता है।

सहाराश्री आजकल किसके दीवाने हैं?
वैसे मुझे वहीदा रहमान बहुत अच्छी लगती थीं। उनका बहुत असर मेरे ऊपर था, लेकिन मैं उनसे तब मिला जब उनके सारे बाल सफेद हो चुके थे। मैंने अपनी भावना उनको बताई।

कहाँ ढूँढा अपने सपनों की रानी को?
हैदराबाद से। घूमते-टहलते पहुँच गए। वहीं एक परिवार में उनसे मुलाकात हुई। हमारा प्रेम-प्रसंग छह साल तक चला।

पत्नी को प्रपोज कैसे किया?
मुझे याद है कि मैंने उन्हें घर की छत पर प्रपोज किया था। दोनों खड़े थे। मैं कई दिनों से परेशान था। उन्हें देखकर मैं और परेशान हो जाता क्योंकि उनके रवैये से कुछ अहसास ही नहीं होता था कि उन्हें भी प्यार है कि नहीं। लेकिन अपनी बात बताना और उसकी बात निकालना बहुत अधिक जरूरी था। मैंने उसका हाथ पकड़कर बोलना शुरू किया।

हमने सुना है कि इन छह सालों में उन्होंने आपको अँग्रेजी भी सिखाई?
हाँ मेरी अँग्रेजी बहुत कमजोर थी। मेरी भाषा ही कमजोर थी। वो अँग्रेजी में पत्र लिखती थीं। मुझे खराब लगता था और मैं भी अँग्रेजी में लंबे-लंबे पत्र लिखने लगा। फिर शादी के बाद एक दिन मैं घर पहुँचा तो देखा कि उन्होंने बिस्तर पर सभी पत्र फैला दिए हैं। मैंने सोचा कि कोई रोमांटिक बात सामने आने वाली है, लेकिन उन्हें बताया कि वो मेरे लिखे पत्रों में भाषा का सुधार कर रही थीं।

अब तक के जीवन का सफर कैसा रहा?
बहुत सुंदर। हर पल बहुत अच्छा गुजरा। जीवन में बहुत आनंद लिया है। आपने किस्मत की बात कही। अगर ऐसा कुछ होता है तो मैं बहुत किस्मत वाला हूँ। ईश्वर का बहुत आशीर्वाद रहा है। जीवन अगर समझ में आ जाए तो यह बहुत सुंदर है। लोग समझ नहीं पाते।

कुछ अंदाज था कि इतना बड़ा काम खड़ा हो जाएगा?
आज यहाँ से पीछे के बारे में सोचूँ तो कहूँगा कि जब 1978 में काम शुरू किया था तो कभी नहीं सोचा था कि यहाँ तक पहुँच सकूँगा। मैंने दो हजार रुपए से अपना काम शुरू किया था। आज हम लोगों की सम्पत्ति करीब 50 हजार करोड़ से अधिक की है।

मैं कभी सपने देखने वाला नहीं था। हमेशा वर्तमान में जीता था। अगर आप मुझसे आज के बारे में पूछिए तो मैं सब कुछ बता दूँगा कि हम लोग क्या कर रहे हैं, लेकिन आप अगर 10 साल बाद की योजना पूछेंगे तो मैं कुछ नहीं बता पाऊँगा। ऐसी बातें मैं नहीं सोचता।

आज जो उभरता हुआ भारतीय है, जो आगे बढ़ने और बड़ा आदमी बनने के सपने देख रहा है, उसके लिए आपका क्या कहेंगे?
देखिए दो चीजें होती हैं, एक पाने की तमन्ना और दूसरा देने की चाहत। जो सिर्फ पाने की तमन्ना लिए आगे बढ़ता है, वो बहुत आगे नहीं जा पाता। जीवन में देने की चाहत होनी चाहिए। मैं आपको कुछ देना चाहता हूँ यह मेरे हाथ में है। मैं आपसे कुछ पाना चाहता हूँ यह मेरे हाथ में नहीं है।

व्यक्ति में महत्वाकांक्षा होनी चाहिए। महत्वाकांक्षा का मतलब होता है महत्वपूर्ण आकांक्षाएँ, जिसमें सिर्फ एक का नहीं बल्कि अनेक लोगों का हित हो। जब आप दूसरे के बारे में सोचेंगे तो ऊपर वाला आपके बारे में सोचेगा।

कई लोगों का ऐसा मानना है कि आप व्यावहारिक तौर पर ऐसे हैं, लोगों की दिल खोलकर मदद करते हैं?
हम जो भी कर रहे होते हैं उसका लाभ अपने को ही मिलता है, लेकिन अगर यह सोचकर ही देंगे कि लाभ लेना है तो ठीक नहीं होगा। यह सोचना चाहिए कि देकर ही मुझे संतुष्टि पहुँचेगी।

बच्चन परिवार से आपके बहुत अच्छे संबंध हैं। बहुत से लोग ऐसा कहते हैं कि आपने उनको सहारा दिया?
बच्चन साहब इतनी बड़ी शख्सियत हैं कि उनके बारे में सहारा देने जैसी बातें नहीं करनी चाहिए। मैं तो कहूँगा कि अगर उन्हें सहारा देने का मौका भी मिला तो यह भी खुशनसीबी की बात है।

ये सच है कि मैं जब बच्चन साहब से मिला उस समय उनका खराब समय चल रहा था। मुझे इस बात की बहुत संतुष्टि है कि मैंने उनके सुख-दुख और परेशानियों को बाँटा। मैंने अपनी तरफ से उन्हें तकलीफों से उबरने में पूरी सहायता पहुँचाई, लेकिन मैंने सहारा दिया ऐसा कहना ठीक नहीं होगा।

जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी?
जब मैं पिता को खोया। मैं पागल-सा हो गया था। लोगों ने मुझे रोक दिया। पता नहीं क्या-क्या करने वाला था मैं। हर महीने आज भी सपने में वो आते हैं।

कोई मित्र जिसकी कोई बात आपको बहुत याद आती हो?
एक बुजुर्ग शख्सियत थीं, जिन्हें मैं दोस्त तो नहीं कह सकता, लेकिन श्रद्धा बहुत रखता हूँ। वो हैं मदर टेरेसा। पता नहीं क्यों वो मुझे बहुत मानती थीं। एक बार मैं कोलकाता गया था। वो बिस्तर पर लेटी थीं। हमेशा की तरह हाथ पकड़कर गॉड ब्लेस यू माई चाइल्ड कहा। जब वो छूती थीं तो एक अलग तरह की सिहरन होने लगती थी पूरे शरीर में। बहुत सुंदर अनुभूति होती थी। उन्होंने कहा कि उनके बाद हम उनके बच्चों का ध्यान रखें।

आने वाले सालों में ‘सहाराश्री’ को किस रूप में देखेंगे?
बहुत कुछ करना है। अभी तो सभी लोग संस्था को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं। काम आगे बढ़ रहा है, लेकिन मैं बहुत शांति से नहीं मर पाऊँगा। अगर अच्छी तरह से देश के लिए कुछ कर न सकूँ। जहन में बहुत सी बातें हैं, जो मैं देश के लिए करना चाहता हूँ।

कुछ समय के लिए रुका हूँ और इंतजार कर रहा हूँ। पहले संस्था को एक स्तर तक पहुँचा दें। फिर देश के लिए बहुत सक्रिय रूप से कुछ करना चाहता हूँ, लेकिन राजनीतिक रूप से नहीं, बस सार्वजनिक जीवन में कुछ करना चाहता हूँ। उसके बिना मैं चैन से मर नहीं पाऊँगा।

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