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Written By BBC Hindi
Last Modified: बुधवार, 29 जून 2011 (14:42 IST)

अमिताभ की फिल्मों की 'डिक्शनरी'

- वंदना

अमिताभ बच्चन डिक्शनरी
BBC
बुड्ढा शब्द का जिक्र आते ही इन दिनों लोग ये जुमला इस्तेमाल करते हुए मिल जाएंगे कि 'बुड्ढा होगा तेरा बाप'। ये अमिताभ बच्चन की नई फिल्म है। कहा जा रहा है कि इसमें वो फिर से एंग्री मैन जैसे किरदार में दिखेंगे जैसे वो 70-80 के दशक में करते थे।

अमिताभ बच्चन के प्रशंसकों के लिए उनकी फिल्में एक सामाजिक दस्तावेज की तरह हैं जिन्हें देखकर कई बच्चे जवान हुए तो जवान बूढ़े और समय का पहिया ऐसा कि आज के बच्चे और युवा भी उनकी फिल्मों से वाबस्ता हैं।

उनकी कई फिल्में, डायलॉग, गाने और दृश्य बहुत मशहूर हैं। मसलन फिल्म अग्निपथ का ये संवाद- ‘विजय दीनानाथ चौहान।। पूरा नाम, बाप का नाम दीथानाथ चौहान, माँ का नाम सुहासिनी चौहान, गांव मांडवा, उम्र 36 साल, नौ महीना, आठ दिन, 16वां घंटा चालू है।’

साल दर साल उनके चाहनेवालों ने ऐसे संवादों, गानों को समेट कर अपनी एक अलग शब्दावली बना ली है और रोजमर्रा की जिंदगी में इस्तेमाल भी करते हैं। कुछ ऐसे ही विचारों को समेटती नई किताब आई है 'अमिताभ लेक्सिकन'..जिसे अमिताभ बच्चन की फिल्मों और दृश्यों की डिक्शनरी कहा जा सकता है।

इस तरह की किताब लिखने के पीछे सोच के बारे में लेखिका भावना सोमाया बताती हैं, 'एक बार ऐसा हुआ कि हम दोस्त लोग बैठे हुए थे और किसी ने अमिताभ बच्चन का एक डायलॉग इस्तेमाल कर अपनी बात कही। बदले में सामने वाले ने भी अमिताभ बच्चन के ही डायलॉग में जवाब दिया और एक सिलसिला सा शुरू हो गया। तभी मैंने सोच लिया कि बच्चन जी पर एक डिक्शनरीनुमा किताब लिखूंगी।'

शब्दों का खेल : किताब उन लोगों की पसंद की है जो अमिताभ प्रशंसक हैं। ये पुस्तक एक अंताक्षरी या किसी गेम की तरह है जहां आप कोई पन्ना खोलिए और एक शब्द चुनिए और फिर अपनी कल्पना के जाल से उस शब्द के इर्द-गिर्द अमिताभ की फिल्मों, संवादों, गानों, दृश्यों का ताना-बाना बुनिए और अमिताभ प्रशंसकों के पास इन चीजों का खजाना है।

जैसे कीड़ा (worm) शब्द आते ही याद आता है फिल्म 'हम' का ये संवाद- ‘इस दुनिया में दो तरह का कीड़ा होता है, एक वो जो कचरे से उठता है, और दूसरा वो जो पाप की गंदगी से उठता है’… जब कोई नाम (name) पूछता है तो जहन में आता है 'शोले' का 'जय' जो पूछता है 'तेरा नाम क्या है बसंती?'

किताब में अलग-अलग शब्दों को अमिताभ की फिल्मों के यादगार दृश्यों से भी जोड़ा गया है। मिसाल के तौर पर सिक्का शब्द (coin) याद दिलाता है ‘शोले’ का वो सिक्का जो दोनों ओर से एक जैसा है और उसे उछाल कर 'जय', 'वीरु' को 'गब्बर' के आदमियों से दूर भेज देता है और खुद मौत को गले लगा लेता है।

इन जाने-पहचाने दृश्यों के अलावा कई शब्द ऐसे हैं जो सहजता से बिग बी से जुड़ी किसी चीज की याद नहीं दिलाते बल्कि आपको यादों का पिटारा टटोलना पड़ता है...गाड़ी (cab) से याद आता है फिल्म ‘खुद्दार’ का सीन...फिल्म में अमिताभ को अपनी टैक्सी से बेहद प्यार है, लेकिन कर्जा चुकाने के लिए उसे बेचना पड़ता है...बेचने से पहले एक भावुक दृश्य में वे किसी परिवार के सदस्य की तरह गाड़ी से माफी मांगते हैं।

पुराना अमिताभ ज्यादा हावी : किताब पढ़कर फिल्मों से जुड़ी कई छोटी-बड़ी बातें भी जहन में ताजा होती हैं। जैसे पुस्तक में आंख (eye) शब्द के सामने उल्लेख है कि कैसे ‘मिस्टर नटवरलाल’ में अमिताभ की आंखों के क्लोज-अप दृश्य पर फिल्म के क्रेडिट रोल होते हैं।

किताब पढ़कर इस बात का एहसास होता है कि नई फिल्मों के मुकाबले अमिताभ की पुरानी फिल्मों के संवादों का जिक्र ज्यादा है। शायद अब फिल्मों में ऐसे जानदार डायलॉग होते ही नहीं या शायद जहन में पुराने अमिताभ वाली छवि ज्यादा गहरी है।

भावना सोमाया का कहना है कि किताब के जरिए ये बात सामने आती है कि समय के साथ अमिताभ के किरदार, किरदारों की सोच और उनके साथ दिखाया जाने वाला तामझाम बदला है।

वे बताती हैं, 'जैसे 80 के दशक में आई फिल्म शक्ति में अमिताभ अपने पिता दिलीप कुमार के प्यार के लिए तरसते रहते हैं और बागी बन जाते हैं। लेकिन 2006 में आई फिल्म वक्त दे रेस अगेंस्ट टाइम में हालात ऐसे हैं कि अमिताभ एक ऐसे पिता हैं जिनका बेटा अक्षय कुमार उनके प्यार के लिए तरसता रहता है।'

साहित्यिक या जीवनी वाली शैलियों से परे ये मुख्यत एक हल्के-फुल्के अंदाज वाली किताब है जिसमें फिल्मों से जुड़े रोचक रंगीन स्केच भी हैं। हालांकि भावना सोमाया कहती हैं इसे लिखना आसान नहीं रहा।

यहाँ ये कहना जरूरी होगा कि किताब उन लोगों के मिजाज की ज्यादा है जो अमिताभ के मुरीद हैं...जिसे पसंद आए वो एक गेम की तरह खेलते हुए इसमें अपनी कल्पना के मुताबिक बिग बी से जुड़े नए संवादों, नए दृश्यों, गानों के रंग भर सकते हैं।

(किताब का कवर और अंदर की तस्वीरें मशहूर फोटोग्राफर गौतम राज्याध्यक्ष की हैं।)