Did Lord Shri Ram eat meat: हाल ही में एनसीपी (शरद गुट) के विधायक जितेंद्र आव्हाड के भगवान राम को मांसाहारी कहने पर विवाद बढ़ने के बाद उन्होंने माफी मांग ली है। अब सवाल यह उठता है कि क्या सच में ही प्रभु श्रीराम मांसाहारी थे या की शाकाहारी? उन्होंने हिरण को क्यों मारा था?
विरोधियों का मत :- कई लोग यह अनुमान लगाते हैं कि श्रीराम एक क्षत्रिय होने के नाते मांस का सेवन करते थे। इसीलिए तो माता सीता ने उन्हें हिरण मारकर लाने के लिए कहा था। यदि वे मांसाहारी नहीं थे तो क्यों माता सीता ने हिरण की मांग की थी? कुछ लोग यह भी कहते हैं कि माता सीता ने हिरण के चमड़े की मांग की थी, क्योंकि वह उस चमड़े का आसन या वस्त्र बनाना चाहती थीं। क्यों माता सीता ने हिरण के चमड़े की मांग की थी, और राम भगवान उसे मारने भी चले गए, जबकि धर्म तो यह नहीं सिखाता। यदि ऐसा था तो श्रीराम एक मांसाहारी थे?
श्रीराम एक संन्यासी और वनवासी थे: प्रभु श्री राम, लक्ष्मण और माता सीता अपना राजपाट और राजसी वस्त्र सभी को त्याग कर वनगमन कर गए थे। उन्होंने सन्यासियों के वस्त्र को धारण कर लिया था। वे सभी ऋषियों के आश्रम में रहे थे। वहां उन्होंने ध्यान और तप किया। बाद में वे दंडकारण्य में रहने लगे। फिर पंचवटी में कुटिया बनाकर रहने लगे।
उन्हें किसी मृगचर्म की कोई जरूरत नहीं थी। क्योंकि वे शुद्ध सात्विक और तपस्वी वाला जीवन व्यतीत कर रहे थे। यही वचन उन्होंने दशरथजी को दिया था। आपने कभी देखा है, किसी कुटिया में किसी ने पशु की खाल लटकाई हो? दूसरा भारत में मैदानी इलाकों में और दक्षिण भारत में कभी भी पशु चर्म को वस्त्र बनाने का प्रचलन नहीं रहा। पशु चर्म को कपड़े के समान प्रयोग करने का प्रचलन केवल बहुत ठंडे या बर्फिले इलाके में किया जाता था। आपने शिवजी के चित्र इसी वेशभूषा में देखा होगा। लेकिन कोई भी वैष्णवी चर्म का प्रयोग नहीं करता।
तब श्रीराम ने हिरण को क्यों मारा?
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असलियत यह थी कि माता सीता ने श्रीराम से हिरण को मारकर लाने के लिए नहीं कहा था बल्कि उसे पकड़कर लाने के लिए कहा था।
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सुनहरी हिरन के बच्चे को देखकर जंगल में अकेलेपन को दूर करने के लिए माता सीता ने श्रीराम से उस बच्चे को पालने की इच्छा जाहिर की थी।
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प्रभु राम ने उस समय सीता को समझाने का प्रयास किया कि इतना छोटा बच्चा अपनी मां के बिना नहीं रह सकता है, इसलिए ये हठ छोड़ दो।
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किंतु तब सीता बोलीं, ठीक है, जब तक इसकी मां नहीं आती, तभी तक तो इसे रख सकते हैं।
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ऐसे में स्त्री हट के सामने हारकर प्रभु श्रीराम उस हिरन को पकड़ने उसके पीछे दौड़ते हुए चले गए।
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जब दौड़ते हुए वो हिरन एकदम से कभी दिखाई देता और कभी गायब हो जाता तो प्रभु श्रीराम समझ गए कि यह कोई मायावी है।
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यही सोचकर उन्होंने तीर निकाला और उसका वध कर दिया। यानी मायावी जानकर ही उसका वध किया।
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चूंकि प्रभु श्रीराम विष्णु के लीलावतार थे, इसलिए पहली नजर में उस मायावी राक्षस को देखने के बाद भी, सामान्य पुरुष की भांति, जब तक उसने अपनी माया नहीं दिखाई, तब तक उसे एक छोटा सा हिरन ही समझते रहे और सीता की बात मान कर उसके पीछे दौड़ पड़े। वे सबकुछ जानते थे लेकिन यदि वह ऐसा नहीं करते तो आगे की लीला नहीं होती। अतः प्रभु राम का आकलन मानवी दृष्टिकोण से करना त्रुटिपूर्ण है।
क्या श्री राम छत्रिय होने के नाते मांस खाते थे?
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ठीक हैं यदि आप यह कहते हैं कि हिरण को इसलिए नहीं मारा था कि उसका चर्म निकालकर उसके वस्त्र या आसन बनाया जाए बल्कि इसलिए मारा था कि उसे खाया जाए। क्योंकि प्रभु श्रीराम छत्रिय थे और वे मांस खाते थे।
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इसका जवाब है कि रामायण में कहीं भी प्रभु श्रीराम के मांसाहर सेवन के बारे में नहीं लिखा है। हर जगह श्रीराम, लक्ष्मण और सीता के द्वारा कंदमूल खाए जाने का जिक्र मिलता है।
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मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम ने वनवास पर जाते समय आहारविषयक प्रतिज्ञा: की थी कि वे कभी मांस का नहीं सेवन करेंगे। इसका उल्लेख वाल्मीकि रामायण में मिलता है....
चतुर्दश हि वर्षाणि वत्स्यामि विजने वने।
मधु मूल फलैः जीवन् हित्वा मुनिवद् आमिषम् ||
अर्थात मैं सौम्य वनों में एक ऋषि की भांती मांस का त्याग कर चौदह वर्ष कंदमूल, फल और शहद पर व्यतीत करूंगा।
उपरोक्त श्लोक से यह प्रतीत होता है कि प्रभु श्रीराम मांस सेवन करते थे लेकिन वन जाने से पूर्व उन्होंने प्रतिज्ञा ली कि मैं मांस का सेवन नहीं करूंगा। हालांकि ऐसा नहीं है कि वे पहले मांस खाते थे फिर उन्होंने वन जाने से पूर्व प्रतिज्ञा ली।
हम यहां स्पष्ट करना चाहते हैं कि ऐसा उन्होंने क्यों कहा? वे मांस का सेवन नहीं करते थे लेकिन ऐसा उन्होंने इसलिए कहा कि क्योंकि उस काल में युद्ध के लिए जाने पर, परदेश में, जंगल में, मरुस्थल या कठिन प्रदेशों में जाने पर अक्सर लोगों को उनके मन का भोजन नहीं मिलता है, लेकिन मांस सभी जगह उपलब्ध हो जाता है।
दूसरा शत्रु से संधि करने पर, विपत्ति पड़ने पर या विपत्ति काल में मांसाहार करना पड़ता है। ऐसे में सैनिकों और सन्यासियों को यह सीखकर रखना पड़ता है कि विपत्ति काल में मांस का सेवन किया जा सकता है। लेकिन प्रभु श्रीराम ने यह प्रतिज्ञा ली थी कि चूंकि में जंगल में जा रहा हूं तथापि मैं किसी भी स्थिति में मांस का सेवन नहीं करूंगा। दरअसल, आपत्कालीन स्थिति में व्यक्ति का धर्म बदल जाता है। इसीलिए यह प्रतिज्ञा ली गई थी।
सुंदरकांड का संदर्भ :-
सुंदर कांड के अनुसार, जब हनुमान अशोक वाटिका में देवी सीता को मिलते हैं तब राम की खुशहाली बताते हैं। वे कैसे हैं, किस तरह जीवन जी रहे हैं, उनका दिनक्रम क्या है सबका वर्णन करते हैं।
न मांसं राघवो भुङ्क्ते न चापि मधुसेवते।
वन्यं सुविहितं नित्यं भक्तमश्नाति पञ्चमम् ||
अर्थात राम ने कभी मांस सेवन नहीं किया न ही उन्होंने मदिरा का पान किया है। हे देवी, वे हर दिन केवल संध्यासमय में उनके लिए एकत्रित किए गए कंद ग्रहण करते हैं।
अयोध्याकांड का संदर्भ :-
इसके अलावा अयोध्याकांड में निम्मिलिखित श्लोक निहित है जिसका कथन भोजन का प्रबंध करने के पश्चात लक्ष्मण ने किया था।
अयम् कृष्णः समाप्अन्गः शृतः कृष्ण मृगो यथा।
देवता देव सम्काश यजस्व कुशलो हि असि ||
अर्थात देवोपम तेजस्वी रघुनाथजी, यह काले छिलकेवाला गजकन्द जो बिगड़े हुए सभी अंगों को ठीक करने वाला है उसे पका दिया गया है। आप पहले प्रवीणता से देवताओं का यजन कीजिए क्योंकि उसमें आप अत्यंत कुशल है।