पहले नंबर पर सिन्धु क्यों...
दूसरे नंबर पर वितस्ता क्यों...
‘संसार में अगर कहीं स्वर्ग है,
तो वह यहीं है, यहीं है, यहीं है।’
वितस्ता को देखकर सम्राट जहांगीर ने वितस्ता नदी के उद्गम को देखकर ऊपर का वचन कहा था।
वितस्ता नदी : सिन्धु की सहायक वितस्ता (झेलम) नदी के किनारे जम्मू व कश्मीर की राजधानी श्रीनगर स्थित है। झेलम नदी हिमालय के शेषनाग झरने से प्रस्फुटित होकर कश्मीर में बहती हुई पाकिस्तान में पहुंचती है और झांग मघियाना नगर के पास चिनाब में समाहित हो जाती है। झेलम का जो प्रवाह मार्ग प्राचीनकाल में था प्राय: अब भी वही है केवल चिनाब-झेलम संगम का निकटवर्ती मार्ग काफी बदल गया है। यह नदी 2,130 किलोमीटर तक प्रवाहित होती है। नैसर्गिक सौंदर्य की इस अनुपम कश्मीर घाटी का निर्माण झेलम नदी द्वारा ही हुआ है।
वितस्ता का इतिहास : वितस्ता नदी के पास 14 मनुओं की परंपरा के प्रथम मनु स्वायंभुव मनु और उनकी पत्नी शतरूपा निवास करते थे। माना जाता है कि मानव की उत्पत्ति इसी नदी के पास हुई। वितस्ता को आजकल झेलम नदी कहा जाता है। इस नदी के पास ही पोरस और सिकंदर का युद्ध हुआ था। यह नदी कश्मीर घाटी के बीच से निकलकर इसे दो हिस्सों में बांटती है। आज यह नदी गंदे नाले की शक्ल ले चुकी है।
बदलते नाम : वितस्ता (विवस्ता) के उद्गम स्थान को कश्मीरी लोग वेरीनाग कहते हैं। कश्मीरी भाषा में झेलम को 'व्येथ' कहा गया है और पंजाबी में इसे बीहत कहते हैं। यह पूर्व में पश्चिमी पाकिस्तान के प्रसिद्ध नगर झेलम के निकट से बहती थी इसीलिए इसे झेलम कहा जाने लगा।
वितस्ता के तीर्थ : वितस्ता के उद्गम वेरीनाग के पास कई प्राचीन स्थान हैं। यहां खनबल के पास अनंतनाग नाम से सुंदर तालाब है। बताया जाता है कि इस क्षेत्र में अनंतपुर नामक एक प्राचीन शहर दबा है। खनबल के आगे बीजब्यारा का प्राचीन मंदिर है। आगे चलकर यह नदी बारामुला पहुंचती है जिससे पहले ‘वराहमूलम्’ कहते थे।
आगे यह नदी श्रीनगर पहुंचती है। घाटी में प्राचीनकाल के राजा ललिता दित्ता के जमाने से ही नदी का पूजन होता था। पवित्र नदी के किनारों पर लोग पूजा के अलावा खनाबल से खादिनयार तक पूजा के दीये जलाते थे। इस नदी के किनारे बसे लगभग सभी प्राचीन मंदिरों को मुस्लिम आक्रांताओं ने तोड़कर नष्ट कर दिया है।
तीसरे नंबर पर सरस्वती क्यों...
सरस्वती नदी : सरस्वती को भी सिन्धु नदी के समान दर्जा प्राप्त है। ऋग्वेद में सरस्वती का अन्नवती तथा उदकवती के रूप में वर्णन आया है। महाभारत में सरस्वती नदी के प्लक्षवती नदी, वेदस्मृति, वेदवती आदि कई नाम हैं। ऋग्वेद में सरस्वती नदी को 'यमुना के पूर्व' और 'सतलुज के पश्चिम' में बहती हुई बताया गया है। ताण्डय और जैमिनीय ब्राह्मण में सरस्वती नदी को मरुस्थल में सूखा हुआ बताया गया है। महाभारत में सरस्वती नदी के मरुस्थल में 'विनाशन' नामक जगह पर विलुप्त होने का वर्णन है। इसी नदी के किनारे ब्रह्मावर्त था, कुरुक्षेत्र था, लेकिन आज वहां जलाशय है।
वैदिक धर्मग्रंथों के अनुसार धरती पर नदियों की कहानी सरस्वती से शुरू होती है। सरिताओं में श्रेष्ठ सरस्वती सर्वप्रथम पुष्कर में ब्रह्म सरोवर से प्रकट हुई
सरस्वती का उद्गम, मार्ग और लीन : महाभारत में मिले वर्णन के अनुसार सरस्वती नदी हरियाणा में यमुनानगर से थोड़ा ऊपर और शिवालिक पहाड़ियों से थोड़ा-सा नीचे आदिबद्री नामक स्थान से निकलती थी। आज भी लोग इस स्थान को तीर्थस्थल के रूप में मानते हैं और वहां जाते हैं। प्राचीनकाल में हिमालय से जन्म लेने वाली यह विशाल नदी हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और गुजरात के रास्ते आज के पाकिस्तानी सिन्ध प्रदेश तक जाकर सिन्धु सागर (अरब की खड़ी) में गुजरती थी।
भूकंप : वैदिक काल में एक और नदी दृषद्वती का वर्णन भी आता हैं। यह सरस्वती नदी की सहायक नदी थी। यह भी हरियाणा से होकर बहती थी। कालांतर में जब भीषण भूकंप आए और हरियाणा तथा राजस्थान की धरती के नीचे पहाड़ ऊपर उठे, तो नदियों के बहाव की दिशा बदल गई। एक और जहां सरस्वती लुप्त हो गई वहीं दृषद्वती के बहाव की दिशा बदल गई। इस दृषद्वती को ही आज यमुना कहा जाता है, इसका इतिहास 4,000 वर्ष पूर्व माना जाता है। भूचाल आने के कारण जब जमीन ऊपर उठी तो सरस्वती का पानी यमुना में गिर गया इसलिए यमुना में यमुना के साथ सरस्वती का जल भी प्रवाहित होने लगा। सिर्फ इसीलिए प्रयाग में तीन नदियों का संगम माना गया।
सरस्वती के तीर्थ : पुष्कर में ब्रह्म सरोवर से आगे सुप्रभा तीर्थ से आगे कांचनाक्षी से आगे मनोरमा तीर्थ से आगे गंगाद्वार में सुरेणु तीर्थ, कुरुक्षेत्र में ओधवती तीर्थ से आगे हिमालय में विमलोदका तीर्थ। उससे आगे सिन्धुमाता से आगे जहां सरस्वती की 7 धारा प्रकट हुईं, उसे सौगंधिक वन कहा गया है। उस सौगंधिक वन में प्लक्षस्रवण नामक तीर्थ है, जो सरस्वती तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है।
रेगिस्तान में उतथ्य मुनि के शाप से भूगर्भित होकर सरस्वती लुप्त हो गई और पर्वतों पर ही बहने लगी। सरस्वती पश्चिम से पूरब की ओर बहती हुई सुदूर पूर्व नैमिषारण्य पहुंची। अपनी 7 धाराओं के साथ सरस्वती कुंज पहुंचने के कारण नैमिषारण्य का वह क्षेत्र 'सप्त सारस्वत' कहलाया। यहां मुनियों के आवाहन करने पर सरस्वती अरुणा नाम से प्रकट हुई। अरुणा सरस्वती की 8वीं धारा बनकर धरती पर उतरी। अरुणा प्रकट होकर कौशिकी (आज की कोसी नदी) से मिल गई।
चौथे नंबर पर कौन-सी नदी, जानिए अगले पन्ने पर...
अगले पन्ने पर पांचवीं रेवा क्यों हैं महत्वपूर्ण...
रेवा नदी : नर्मदा नदी को रेवा नदी भी कहा जाता है। यह नदी मध्यप्रदेश के विंध्याचल की मैकाल पहाड़ी श्रृंखला से अमरकंटक क्षेत्र से निकलकर गुजरात में होते हुए सिन्धुसागर (अरब की खाड़ी) में गिरती है। इसके बीचोबीच स्थित है नेमावर। नेमावर को प्राचीन काल में नैमिषारण्य क्षेत्र कहा जाता था जहां ऋषि-मुनि तपस्या करते थे।
नर्मदा नदी : एक परिचय
नर्मदा तट के तीर्थ
यह क्षेत्र हैहयवंशियों के अधीन था और इस क्षेत्र में परशुराम के पिता रहते थे। स्कंद पुराण में इस नदी का वर्णन रेवा खंड के अंतर्गत किया गया है। नर्मदा, गोदावरी औरमहानदी के किनारे ही भगवान राम ने अपना वनवास काटा था।
क्या आप छटवीं नदी महानदी को जानते हैं, अगले पन्ने पर...
छत्तीसगढ़ तथा उड़ीसा अंचल की सबसे बड़ी नदी है। प्राचीनकाल में महानदी का नाम चित्रोत्पला[क] था। महानंदा एवं नीलोत्पला भी महानदी के ही नाम हैं। महानदी का उद्गम रायपुर के समीप धमतरी जिले में स्थित सिहावा नामक पर्वत श्रेणी से हुआ है। ऐतिहासिक नगरी आरंग और उसके बाद सिरपुर में वह विकसित होकर शिवरीनारायण में अपने नाम के अनुरुप महानदी बन जाती है।
महानदी : छत्तीसगढ़ की गंगा
छत्तीसगढ़ और उड़ीसा की सबसे बड़ी नदी महानदी का प्राचीन नाम चित्रोत्पला था। इसके अलावा इसे महानंदा और नीलोत्पला के नाम से भी जाना जाता है। महानदी का उद्गम रायपुर के समीप धतरी जिले में स्थित सिहावा नामक पर्वत से हुआ है। इस नदी का प्रवाह दक्षिण से उत्तर की ओर है। इस नदी को 'छत्तीसगढ़ की गंगा' भी कहा जाता है।
अगले पन्ने पर सातवीं गोदावरी का महत्व क्यों..
गोदावरी नदी : गौतम से संबंध जुड जाने के कारण इसे गौतमी भी कहा जाने लगा। गोदावरी दक्षिण भारत की एक प्रमुख नदी है। इसकी उत्पत्ति पश्चिमघाट की पर्वत श्रेणी के अंतर्गत त्रियम्बक पर्वत से हुई है, जो महाराष्ट्र में स्थित है। यहीं त्रियम्बककेश्वर तीर्थ है जो नासिक जिले में है। नदी की लंबाई करीब करीब 900 मील है।
गोदावरी नदी धार्मिक दृष्टि से बहुत पवित्र मानी जाती है। प्रति 12वें वर्ष पुष्करम् का स्नान करने के लिए राजमुंद्री के पास बहुत बड़ा मेला लगता है जिसे कुंभ का मेला कहा जाता है। गोदावरी के तट पर भगवान राम ने अपना वनवास काटा था।
गोदावरी की उपनदियों में प्रमुख हैं प्राणहिता, इन्द्रावती और मंजिरा। यह नदी महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश से बहते हुए राजहमुन्द्री शहर के समीप बंगाल की खाड़ी में जाकर मिलती है। इस नदी की प्रमुख शखाएं हैं:- गौतमी, वसिष्ठा, कौशिकी, आत्रेयी, वृद्धगौतमी, तुल्या और भारद्वाजी।
इन्हें महापुण्यप्राप्ति कारक बताया गया है-
सप्तगोदावरी स्नात्वा नियतो नियताशन:।
महापुण्यमप्राप्नोति देवलोके च गच्छति॥
कहां है आठवीं नदी कृष्णा नदी...
कृष्णा नदी : कृष्णा नदी दक्षिण भारत की एक महत्त्वपूर्ण नदी है, इसका उद्गम पश्चिमी घाट के पर्वत महाबालेश्वर (महाराष्ट्र) से होता है। यह नदी भारत की दूसरी सबसे बड़ी नदी है। यह महाराष्ट्र में 303 किमी आंध्रप्रदेश में 1300 किमी तथा कर्नाटक में 480 किमी की यात्रा कर बंगाल की खाड़ी में मिल जाती हैं।
कृष्णा नदी तट के तीर्थ
कृष्णा नदी में भीमा और तुंगभद्रा दो बड़ी सहायक नदियों सहित 6 उपनदियां गिरती हैं। कृष्णा नदी की उपनदियों में प्रमुख हैं: तुंगभद्रा, घाटप्रभा, मूसी और भीमा। कृष्णा बंगाल की खाड़ी में मसुलीपट्म के निकट गिरती है। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र के मध्य कृष्णा नदी जल बटवारे से संबंधित विवाद है।
महाभारत सभा पर्व में कृष्णा को कृष्णवेणा कहा गया है और गोदावरी और कावेरी के बीच में इसका उल्लेख है जिससे इसकी वास्तविक स्थिति का बोध होता है। कृष्णा और वेणी के संगम पर माहुली नामक प्राचीन तीर्थ है। पुराणों में कृष्णा को विष्णु के अंश से संभूत माना गया है।
नौवीं नदी कावेरी नदी का महत्व क्यों..
कावेरी : दक्षिण की गंगा कहलाने वाली कावेरी का वर्णन कई पुराणों में बार-बार आता है। कावेरी को बहुत पवित्र नदी माना गया है। कावेरी नदी में मिलने के वाली मुख्य नदियों में हरंगी, हेमवती, नोयिल, अमरावती, सिमसा, लक्ष्मणतीर्थ, भवानी, काबिनी मुख्य हैं। दक्षिण की इस प्रमुख नदी कावेरी का विस्तृत विवरण विष्णु पुराण में दिया गया है।
यह सह्याद्रि पर्वत के दक्षिणी छोर से निकल कर दक्षिण-पूर्व की दिशा में कर्नाटक और तमिलनाडु से बहती हुई लगभग 800 किमी मार्ग तय कर कावेरीपट्टनम के पास बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच इसके जल बंटवारे को लेकर विवाद है।
कावेरी तीर्थ : कावेरी नदी तीन स्थानों पर दो शाखाओं में बंट कर फिर एक हो जाती है, जिससे तीन द्वीप बन गए हैं, उन द्वीपों पर क्रमश: आदिरंगम, शिवसमुद्रम तथा श्रीरंगम नाम से श्री विष्णु भगवान के भव्य मंदिर हैं। महान शैव तीर्थ चिदम्बरम तथा जंबुकेश्वरम भी श्रीरंगम के पास स्थित हैं। इनके अतिरिक्त प्राचीन तथा गौरवमय तीर्थ नगर तंजौर, कुंभकोणम तथा त्रिचिरापल्ली इसी पवित्र नदी के तट पर स्थित हैं, जिनसे कावेरी की महत्ता बढ़ गई है।
अंत में सबसे महत्वपूर्ण ब्रह्मपुत्र...
ब्रह्मपुत्र : ब्रह्मपुत्र के कारण ही बर्मा का नाम पहले ब्रह्मवर्त था। आज इसे म्यांमार कहा जाता है। ब्रह्मा को ब्रह्म (ईश्वर) का पुत्र कहा जाता है इसीलिए इसे भी ब्रह्मपुत्र कहा गया। इस नदी का नाम ब्रह्मा नहीं है।
संस्कृतियों के मिलन की गवाह रही हैं ब्रह्मपुत्र नदी
चाइनीज एकैडमी ऑफ साइंसेज (सीएएस) के वैज्ञानिकों ने ब्रह्मपुत्र के मार्ग का उपग्रह से ली गई तस्वीरों का विश्लेषण करने के साथ भारत-पाकिस्तान से बहने वाली सिन्धु और म्यांमार के रास्ते बहने वाली सालवीन और इर्रावडी के बहाव के बारे में भी पूरा विवरण जुटा लिया है।
शोधाअनुसार ब्रह्मपुत्र (तिब्बती भाषा में यारलुंगजांगबो) का उद्गम स्थल तिब्बत के बुरांग काउंटी स्थित हिमालय पर्वत के उत्तरी क्षेत्र में स्थित आंग्सी ग्लेशियर है, न कि चीमा-युंगडुंग ग्लेशियर, जिसे भूगोलविद् स्वामी प्रणवानंद ने 1930 के दशक में ब्रह्मपुत्र का उद्गम बताया था।
नए शोध परिणामों के मुताबिक ब्रह्मपुत्र नदी 3,848 किलोमीटर लंबी है और इसका क्षेत्रफल 7,12,035 वर्ग किलोमीटर है, जबकि पहले के दस्तावेजों में नदी की लंबाई 2,900 से 3,350 किलोमीटर और क्षेत्रफल 520,000 से 17 लाख 30 हजार वर्ग किलोमीटर बताया गया था।