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21 June Yoga Diwas : डिप्रेशन से चाहिए मुक्ति तो मात्र 3 आसनों से मिलेगा लाभ

21 June Yoga Diwas : डिप्रेशन से चाहिए मुक्ति तो मात्र 3 आसनों से मिलेगा लाभ - world yoga day 2022 yoga for Depression
आजकल डिप्रेशन यानी अवसाद के कारण व्यक्ति में चिड़चिड़ापन, क्रोध, निराशा, हताशा और संकोच के भाव भी निर्मित होते हैं। इसके चलते कई मानसिक और शारीरिक समस्या उत्पन्न हो जाती है। व्यक्ति नींद की दाव खाने या नशा करने लग जाता है। कुछ लोग आत्महत्या तक करने का सोचने लगते हैं। ऐसे में योग के मात्र 3 आसन आपको रिलेक्स कर देंगे। 
 
आवश्यक निर्देश : सबसे जरूर समझने वाली बात यह है कि मन के भाव हमारी श्वासों से नियंत्रित होते हैं। यदि आप गौर करेंगे तो क्रोध के समय आपकी श्वास अलग तरह से चलेगी और प्रसन्नता के समय अलग। इसीलिए हर तरह के तनाव या अवसाद को प्राणायाम से नियंत्रित किया जा सकता है। प्राणायाम में भ्रामरी, भ्रस्त्रिका और कपालभाति को सीखकर करें। अब तीन आसन को जानें।
 
1. विश्रामासन : इस आसन को करने से व्यक्ति स्वयं को पूर्ण विश्राम की स्थिति में अनुभव करता है इसीलिए इसे विश्रामासन कहते हैं। इसका दूसरा नाम बालासन भी है। यह तीन प्रकार से ‍किया जाता है। पेट के बल लेटकर, पीठ के बल लेटकर और वज्रासन में बैठकर। यहां प्रस्तुत है पेट के बल लेटकर किया जाने वाला विश्रामासन। यह कुछ-कुछ मकरासन जैसा है।
 
विधि : पेट के बल लेटकर बाएं हाथ को सिर के नीचे भूमि पर रखें तथा गर्दन को दाई ओर घुमाते हुए सिर को हाथों पर रखें, बाएं हाथ सिर के नीचे होगा तथा बाएं हाथ की हथेली दाएं हाथ के नीचे रहेगी। दाएं पैर को घुटने मोड़कर जैसे बालक लेटता है, वैसे लेटकर विश्राम करें। इसी प्रकार दूसरी ओर से किया जाता है। 
 
सावधानी : आंखें बंद रखना चाहिए। हाथों को सिर के नीचे सुविधानुसार ही रखें और शरीर को ढीला छोड़ देना चाहिए। श्वास की स्थिति में शरीर को हिलाना नहीं चाहिए। श्वास गहरी और आरामपूर्ण तरीके से लेना चाहिए।
 
लाभ : श्वास की स्थिति में हमारा मन शरीर से जुड़ा हुआ रहता है, जिससे क‍ि शरीर में किसी प्रकार के बाहरी विचार उत्पन्न नहीं होते। इस कारण से हमारा मन पूर्णत: आरामदायक स्थिति में होता हैं, तब शरीर स्वत: ही शांति का अनुभव करता है। आंतरिक अंग सभी तनाव से मुक्त हो जाते हैं, जिससे कि रक्त संचार सुचारु रूप से प्रवाहित होने लगता है।
 
और जब रक्त सुचारु रूप से चलता है तो शारीरिक और मानसिक तनाव घटता है। खासकर जिन लोगों को उच्च रक्तचाप और अनिद्रा की शिकायत है, ऐसे मरीजों को बालासन से लाभ मिलता है। पाचंनतंत्र सही रखता है तथा भोजन को सरलता से पचाने में सहायता करता है। यह शरीर में स्थिति सभी तरह के दर्द से निजात दिलाता है।
 
2. सेतुबन्धासन : सेतु का अर्थ होता है पूल। सेतुबन्धासन से पहले अर्धसेतुबन्धासन करते हैं। इसमें व्यक्ति की आकृति एक सेतु के समान हो जाती है इसीलिए इसके नाम में सेतु जुड़ा हुआ है।
 
सावधानियां : अर्धसेतुबन्धासन का सावधानीपूर्वक अभ्यास करें। किसी भी प्रकार का झटका न दें। संतुलन बनाए रखें। अगर आपकी कमर, हथेली और कलाई पर अत्यधिक भार आए तो पहले भुजंगासन, शलभासन और पूर्वोत्तानासन का अभ्यास एक-दो महीने तक करें। इसके बाद अर्धसेतुबन्धासन का अभ्यास आपके लिए आसान हो जाएगा। जिन्हें पहले से अधिक कमर-दर्द, स्लिप डिस्क या अल्सर की समस्या हो, वे अर्धसेतुबन्धासन का अभ्यास न करें।  
 
आसन के लाभ : अर्धसेतुबन्धासन से चित्त एकाग्र होता है, जो चक्रासन नहीं कर सकते, वे इस आसन से लाभान्वित हो सकते हैं। स्लिप डिस्क, कमर, ग्रीवा-पीड़ा एवं उदर रोगों में विशेष लाभप्रद है यह आसन। यह आसन रीढ़ की सभी कशेरुकाओं को अपने सही स्थान पर स्थापित करने में सहायक है। ये आसन कमर दर्द को दूर करने में भी सहायक है। पेट के सभी अंग जैसे लीवर, पेनक्रियाज और आंतों में खिंचाव आता है। कब्ज की समस्या दूर होती है और भूख भी खुलकर लगती है।
 
3. शवासन : शव का अर्थ होता है मुर्दा अर्थात अपने शरीर को मुर्दे समान बना लेने के कारण ही इस आसन को शवासन कहा जाता है। श्वास की स्थिति में हमारा मन शरीर से जुड़ा हुआ रहता है, जिससे कि शरीर में किसी प्रकार के बाहरी विचार उत्पन्न नहीं होते। इस कारण से हमारा मन पूर्णत: आरामदायक स्थिति में होता हैं, तब शरीर स्वत: ही शांति का अनुभव करता है। आंतरिक अंग सभी तनाव से मुक्त हो जाते हैं, जिससे कि रक्त संचार सुचारु रूप से प्रवाहित होने लगता है। और जब रक्त सुचारु रूप से चलता है तो शारीरिक और मानसिक तनाव घटता है। खासकर जिन लोगों को उच्च रक्तचाप और अनिद्रा की शिकायत है, ऐसे मरीजों को शवासन अधिक लाभदायक है।
 
विधि : पीठ के बल लेटकर दोनों पैरों में ज्यादा से ज्यादा अंतर रखते हैं। पैरों के पंजे बाहर और एड़ियां अंदर की ओर रखते हैं। दोनों हाथों को शरीर से लगभग छह इंच की दूरी पर रखते हैं। हाथों की अंगुलियां मुड़ी हुई, गर्दन सीधी रहती है। आंखें बंद रखते हैं।
 
शवासन में सबसे पहले पैर के अंगूठे से लेकर सिर तक का भाग ढीला छोड़ देते हैं। पूरा शरीर ढीला छोड़ने के बाद सबसे पहले मन को श्वास-प्रश्वास के ऊपर लगाते हैं और हम मन के द्वारा यह महसूस करते हैं कि दोनों नासिकाओं से श्‍वास अंदर जा रही है तथा बाहर आ रही है। जब श्वास अंदर जाती है तब नासिका के अग्र में हलकी-सी ठंडक महसूस होती है और जब हम श्वास बाहर छोड़ते हैं तब हमें गरमाहट की अनुभूति होती हैं। इस गर्माहट व ठंडक को अनुभव करें।
 
इस तरह नासाग्रस से क्रमश: सीने तथा नाभि पर ध्यान केंद्रित करें। मन में उल्टी गिनती गिनते जाएं। 100 से लेकर 1 तक। यदि गलती हो जाए तो फिर से 100 से शुरू करें। ध्यान रहे कि आपका ध्यान सिर्फ शरीर से लगा हुआ होना चाहिए, मन में चल रहे विचारों पर नहीं। इसके लिए सांसों की गहराई को महसूस करें।
 
नोट : आंखें बंद रखना चाहिए। हाथ को शरीर से छह इंच की दूरी पर व पैरों में एक से डेढ़ फीट की दूरी रखें। शरीर को ढीला छोड़ देना चाहिए। श्वास की स्थिति में शरीर को हिलाना नहीं चाहिए।
 
आप चाहें तो सुखासन, भुजंगासन और आंजनेयासन भी कर सकते हैं। लेकिन सबसे अंत में शवासन ही करना चाहिए। वह भी प्राणायाम करने के बाद।