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Written By WD

विपरीतकर्णी आसन

विपरीतकर्णी आसन
विपरीतकर्णी आसन की अंतिम अवस्था में हमारा शरीर उल्टा हो जाता है, इसलिए इसे विपरीतकर्णी आसन के नाम से जाना जाता है। इस आसन को पीठ के बल लेटकर किया जाता है।

विधि : पीठ के बल लेटकर दोनों पैरों को मिलाकर एड़ी-पंजे आपस में मिले, हाथ बगल में, हाथों की हथेलियाँ जमीन के ऊपर और गर्दन सीधी रखना चाहिए।

धीरे-धीरे दोनों पैरों को 30 डिग्री के कोण पर पहुँचाते हैं। 30 डिग्री पर पहुँचाने के बाद कुछ सेकंड रुकते हैं, फिर पैरों को 45 डिग्री कोण पर ले जाते हैं, यहाँ पर कुछ सेकंड रुकते हैं। उसके बाद फिर 90 डिग्री कोण पर पहुँचने के बाद दोनों हाथों को जमीन पर प्रेस करने के बाद ‍नितंब को धीरे-धीरे उठाते हुए पैरों को पीछे ले जाते हैं, ठीक नितंब की सीध में रखते हैं।

दोनों हाथ नितंब पर रखते हैं और पैरों को सीधा कर देते हैं।

WD
सावधानी : 90 डिग्री कोण पर पहुँचने के बाद पैरों को झटका देकर न उठाएँ। पैर उठाते समय घुटने से मुड़े न हों। नितंब उठाते समय दायीं तथा बायीं ओर पैर चले जाते हैं, जिससे गर्दन में जर्क आने की संभावना रहती है, पैर नितंब की सीध में रहें।

जिन लोगों को रक्तचाप, हृदय रोग, कमर में तेज दर्द और गर्दन दर्द की शिकायत हो उन लोगों को यह आसन नहीं करना चाहिए।

लाभ : इससे उदर, लीवर, किडनी, पैनक्रियाज, अग्नाशय, मूत्राशय और बेरिकेस वेंस रोगों में लाभ मिलता है। इससे रक्त की शुद्धता बढ़ती है और सभी अंग सुचारु रूप से कार्य करते है।