डॉ. बांद्रे (पीएचडी, डी.लिट्- योग)
तनावग्रस्त जीवनशैली से थायराइड रोग बढ़ रहा है। आरामपरस्त जीवन से हाइपोथायराइड और तनाव से हाइपरथायराइड के रोग होने की आशंका आधुनिक चिकित्सक निदान में करने लगे हैं। आधुनिक जीवन में व्यक्ति अनेक चिंताओं से ग्रसित है, जैसे परिवार की चिंताएँ, आपसी स्त्री-पुरुषों के संबंध, आत्मसम्मान को बनाए रखना, लोग क्या कहेंगे आदि अनेक चिंताओं के विषय हैं।
व्यक्तिगत जीवन की चिंताएँ जैसे बच्चों का भविष्य, महँगाई में जीवन जीना, आतंकवाद, आपसी परिवार में संबंध आदि अनेक बातें व्यक्ति को चिंताओं से घेरे हुए हैं। ये तो हो गए वयस्कों की चिंता के विषय, परंतु किशोरों की भी चिंताएँ हैं जैसे उनको माताओं से डर है कि कभी डायरियाँ, कॉपियाँ, एसएमएस न पढ़ लें।
किशोरियों को वजन बढ़ने की चिंताएँ, किशोर मित्र (ब्यॉयफ्रेंड) बनाए रखने की चिंताएँ, सौंदर्य निखारने के लिए साधनों की प्राप्ति की चिंताएँ आदि चिंताएँ आत्मिक शक्ति को कम करती हैं। आजकल हम सभी लोग सुरक्षा के प्रति चिंतित हैं।
एक बड़ी आबादी काम-धंधे के उतार-चढ़ाव को लेकर चिंतित है। ब़ड़ी आयु के लोग आने वाले बुढ़ापे से चिंतित हैं। कई लोग स्वास्थ्य और भविष्य के प्रति चिंतित हैं। ये सब लोग मानसिक स्तर पर चिंतित हैं तो कुछ इनके विपरीत मिलाजुला वर्ग है, जो आलस्यप्रेमी है।
शारीरिक परिश्रम के प्रति केवल आधा-एक घंटा योग व जिम करने के बाद संपूर्ण दिन आराम और आलस्य की भेंट चढ़ जाता है। ऊँचे तकिए लगाकर सोने या टीवी देखने, किताब पढ़ने से भी पीनियल और पिट्यूटरी ग्रंथियों के कार्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है, जो थायराइड पर परोक्ष रूप से दिखाई देता है। इन स्थितियों में हाइपोथायराइड रोग होने की आशंका है।
हाइपोथायराइड के लक्षणों में अनावश्यक वजन बढ़ना, आवाज भारी होना, थकान, अधिक नींद आना, गर्दन का दर्द, सिरदर्द, पेट का अफारा, भूख कम हो जाना, बच्चों में ऊँचाई की जगह चौड़ाई बढ़ना, चेहरे और आँखों पर सूजन रहना, ठंड का अधिक अनुभव करना, सूखी त्वचा, कब्जियत, जोड़ों में दर्द आदि लक्षणों को व्यक्ति तब अनुभव करता है, जब उसकी थायराइड ग्रंथि का थायरोक्सीन संप्रेरक (हार्मोन) कम बनने लगता है। यह समस्या स्त्री-पुरुषों में एक समान आती है, परंतु महिलाओं में अधिक पाई जाती है। इसका कोलेस्ट्रॉल, मासिक रक्तस्राव, हृदय की धड़कन आदि पर भी प्रभाव पड़ता है।
थाइराडड की दूसरी समस्या है हायपरथायराइड अर्थात थायराइड ग्रंथि के अधिक कार्य करने की प्रवृत्ति। यह जीवन के लिए अधिक खतरनाक होती है। थायराइड ग्रंथि की अधिक संप्रेरक (हर्मोन) निर्माण करने की स्थिति से चयापचय (बीएमआर) बढ़ने से भूख लगती है। व्यक्ति भोजन भी भरपूर करता है फिर भी वजन घटता ही जाता है। व्यक्ति का भावनात्मक या मानसिक तनाव ही प्रमुख कारण होता है।
कोलेष्ट्रॉल की मात्र रक्त में कम हो जाती है। हृदय की धड़कनें बढ़कर एकांत में सुनाई पड़ती है। पसीना अधिक आना, आँखों का चौड़ापन, गहराई बढ़ना, नाड़ी स्पंदन 70 से 140 तक बढ़ जाता है।
थायराइड ग्रंथि के साथ ही पैराथायराइड ग्रंथि होती है। यह थायराइड के पास उससे आकार में छोटी और सटी होती है और इसकी सक्रियता से दाँतों और हड्डियों को बनाने में मदद मिलती है। भोजन में कैल्शियम और विटामिन डी का उपयोग करने में यह ग्रंथि अपना सहयोग देती है। इसके द्वारा प्रदत्त संप्रेरक की कमी से रक्त के कैल्शियम बढ़कर गुर्दों में जमा होने की आशंका होती है।
माँसपेशियों में कमजोरी आने लगती है, हड्डियाँ सिकुड़कर व्यक्ति की ऊँचाई कम होकर कूबड़ निकलता है। कम आगे की ओर झुक जाती है। इन सभी समस्याओं से बचने के लिए नियमित रक्त परीक्षण करने के साथ रोगी को सोते समय शवासन का प्रयोग करते हुए तकिए का उपयोग नहीं करना चाहिए। उसी प्रकार सोते-सोते टीवी देखने या किताब पढ़ने से बचना चाहिए। भोजन में हरी सब्जियों का भरपूर प्रयोग करें और आयोडीनयुक्त नमक का प्रयोग भोजन में करें।
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नाड़ीशोधन प्राणायाम : कमर-गर्दन सीधी रखकर एक नाक से धीरे-धीरे लंबी गहरी श्वास लेकर दूसरे स्वर से निकालें, फिर उसी स्वर से श्वास लेकर दूसरी नाक से छोड़ें। 10 बार यह प्रक्रिया करें। ध्यान : आँखें बंद कर मन को सामान्य श्वास-प्रश्वास पर ध्यान करते हुए मन में श्वास भीतर आने पर 'सो' और श्वास बाहर निकालते समय 'हम' का विचार 5 से 10 मिनट करें।
ब्रह्ममुद्रा : वज्रासन में या कमर सीधी रखकर बैठें और गर्दन को 10 बार ऊपर-नीचे चलाएँ। दाएँ-बाएँ 10 बार चलाएँ और 10 बार सीधे-उल्टे घुमाएँ।
मांजरासन : चौपाये की तरह होकर गर्दन, कमर ऊपर-नीचे 10 बार चलाना चाहिए।उष्ट्रासन : घुटनों पर खड़े होकर पीछे झुकते हुए एड़ियों को दोनों हाथों से पकड़कर गर्दन पीछे झुकाएँ और पेट को आगे की तरफ उठाएँ। 10-15 श्वास-प्रश्वास करें।
शशकासन : वज्रासन में बैठकर सामने झुककर 10-15 बार श्वास -प्रश्वास करें।मत्स्यासन : वज्रासन या पद्मासन में बैठकर कोहनियों की मदद से पीछे झुककर गर्दन लटकाते हुए सिर के ऊपरी हिस्से को जमीन से स्पर्श करें और 10-15 श्वास-प्रश्वास करें।
सर्वांगासन : पीठ के बल लेटकर हाथों की मदद से पैर उठाते हुए शरीर को काँधों पर रोकें। 10-15 श्वास-प्रश्वास करें।
भुजंगासन : पीठ के बल लेटकर हथेलियाँ कंधों के नीचे जमाकर नाभि तक उठाकर 10- 15 श्वास-प्रश्वास करें।
धनुरासन : पेट के बल लेटकर दोनों टखनों को पकड़कर गर्दन, सिर, छाती और घुटनों को ऊपर उठाकर 10-15 श्वास-प्रश्वास करें।
शवासन : पीठ के बल लेटकर, शरीर ढीला छोड़कर 10-15 श्वास-प्रश्वास लंबी-गहरी श्वास लेकर छोड़ें तथा 30 साधारण श्वास करें और आँखें बंद रखें।