शुक्रवार, 22 नवंबर 2024
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Written By नूपुर दीक्षित

कौन कहेगा माटी की कहानी

कौन कहेगा माटी की कहानी -
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'ये माटी सभी की कहानी कहेगी' नवरंग फिल्म के इस लोकप्रिय गीत के बोल आज अपने मायने बदल रहें हैं। सबकी कहानी कहने वाली मिट्टी को इंतजार है कि कोई उसकी कहानी भी सुनाए, कोई उसका दर्द भी समझे।

किताबों में अक्सर लिखा होता है कि अपने देश की मिट्टी की खुशबु बहुत अच्छी लगती है। किताबों और फिल्मों की बात छोड़ दे, तो क्या आपने इस खुशबु को वास्तव में महसूस किया है? अगर हाँ, तो आप खुशनसीब है अगर ना, तो यही सही समय है मिट्टी के हाल-चाल जानने का।

जिस मिट्टी में खेलकर हम बडे़ हुए, जिस मिट्टी में घरौंदे बनाकर हमने अपना घर बनाने के सपने सजाएँ, क्या यह मिट्टी इसी रुप में आने वाली पीढ़ी के बच्चों को खेलने के लिए नसीब हो सकेगी?

आप सोच रहें होंगे कि मामूली सी मिट्टी को लेकर हम इतने सवाल क्यों पूछ रहें हैं? दरअसल, मिट्टी इतनी भी मामूली नहीं होती जितनी इसे समझा जाता है। इस मिट्टी की उर्वरता की बदौलत हमें फसलें मिलती हैं, इन्हीं फसलों से हमें पोषण मिलता है और हम जीवित रहते हैं। इसी की बुनियाद पर हमारा घर, हमारे कारखाने खड़े होते हैं। अपने विकास पर मुग्ध मानव समुदाय आज अपनी बुनियाद, उस मिट्टी के बारे में नहीं सोच रहा है जिस पर हमारे विकास की इमारत खड़ी है।

अंधाधुंध विकास की दौड़ में जिन प्राकृतिक स्रोतों को हमने नुकसान पहुँचाया हैं उनमें जल और वायु के साथ मिट्टी भी शामिल हैं। जल प्रदूषण और वायु प्रदूषण के रोकने की दिशा में तो फिर भी कुछ प्रयास किये जाते हैं लेकिन अफसोस कि पर्यावरण के हितैषी भी मिट्टी की ओर देखते तक नहीं।
  'ये माटी सभी की कहानी कहेगी' नवरंग फिल्म के इस लोकप्रिय गीत के बोल आज अपने मायने बदल रहें हैं। सबकी कहानी कहने वाली मिट्टी को इंतजार है कि कोई उसकी कहानी भी सुनाए, कोई उसका दर्द भी समझे।      


कैमिकल्स, बायो मेडिकल वेस्ट, प्लास्टिक और इलेक्ट्रानिक वेस्ट को मिट्टी में डालकर हमनें अपनी मिट्टी को बीमार कर दिया है और लगातार पहले से ज्यादा खतरनाक कचरा फेंक कर उसे बीमार बना रहे है। अस्पतालों से निकलने वाला बायो मेडिकल वेस्ट हर रोज शहर से दूर किसी खाली जमीन पर फेंक दिया जाता है। इनमें एंटीबॉयोटिक्स, दवाइयाँ, प्लास्टिक का कचरा होने के साथ सूक्ष्म किटाणु, जीवाणु आदि होते हैं याने कि बीमारियों की जड़ को मिट्टी में फेंका जा रहा है। हालाँकि मिट्टी के बारे में एक प्रचलित धारणा है कि यह सबकुछ अपने में मिला लेती है। एक हद तक यह धारणा सही है, लेकिन फिर भी प्लास्टिक कभी मिट्टी में नहीं मिलता है जो कि अस्पतालों से फेंके गए कचरे में बहुतायत में होता हैं। इतना ही नहीं इस तरह के कचरे में उपयोग में आ चुकी बेंडएज, पट्टिया आदि भी होते है जिन पर एंटीबॉयोटिक्स लगे होते हैं। जब यह पट्टियाँ मिट्टी में फेंकी जाती हैं तो इन पर लगे एंटीबॉयोटिक्स मिट्टी में मिल जाते हैं। यह मिट्टी में रहने वाले उपयोगी सूक्ष्मजीवों के लिए खतरनाक होते है और उन्हें नष्ट करते हैं। इनमें से कुछ जीवाणु हमारे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं, कुछ नाइट्रोजन को स्थिर कर फसलों के लिए लाभदायक होते हैं, ऐसे जीवाणुओं का सफाया हमारे लिए हर तरह से हानिकारक है।

इस से मृदा के पारिस्थितिकी तंत्र में एक प्रकार की अव्यवस्था निर्मित हो जाती है। इसके अलावा कम्प्यूटर, मोबाइल्स, पुराने टेलिविजन और खराब बैटरियों की रिसाइकलिंग यदि उचित ढंग से ना की जाए तो ये सभी हमारे पर्यावरण खासतौर से मृदा को नुकसान पहुँचाते हैं।

हम आमतौर पर यह मानकर चलते है कि कचरा कहीं तो फेंकना होगा और मिट्टी तो पहले ही प्रदूषित है फिर यदि हमने थोड़ा और कचरा फेंक दिया तो कौनसा नुकसान हो जाएगा। माना कि मिट्टी का कोई मोल नहीं होता और यह जगह पर आसानी से उपलब्ध है। जिस गति से सीमेंटीकरण हो रहा है, एक दिन यही मिट्टी हमारे लिए अनमोल हो जाएगी। कुछ संस्थाओं द्वारा किये गए सर्वेक्षण के अनुसार हर साल अकेले बैंगलौर से ही तीस हजार कम्प्यूटर कबाड़ में फेंक दिए जाते है इनकी बॉडी बैटरी और ग्लास, मिट्टी की उर्वरा शक्ति को कमजोर करते है।

कल्पना कीजिए कि आपके घर में एक तरफ ढेर सारी पॉलीथिन बिखरी पड़ी है और दूसरी तरफ डिस्पोजल, टूटी फूटी बैटरी, पानी की बॉटल्स और बेतरीतीब ढंग से बिखरे हुए कम्प्यूटर पड़े हैं। इतना सोचने से ही एक अजीब सी घबराहट होने लगी ना, एक बिखरे हुए घर को दोबारा व्यवस्थित कर के जमाना बहुत आसान है लेकिन एक बार यदि हमारी धरती इस तरह से अव्यवस्थित हो गई तो उसे व्यवस्थित बनाना हमारे लिए आसाना नहीं होगा।

पहली बारिश गिरने पर मिट्टी की सौंधी खुशबु का एहसास क्या कोई भी इत्र आपको करवा सकता है, क्या कोई भी खुशबु आप में वो ताजगी, वो उत्साह जगा सकती है जो सौंधी मिट्टी की सुगंध देती है?

धरती को हम अपनी माँ कहते है, देखा जाए तो धरती मिट्टी से ही आच्छादित है। यदि दिल से हम धरती को अपनी मां मानते है तो अपनी माँ के साथ ऐसा सलूक हम कैसे कर सकते है?