प्रस्तावना: करवा चौथ भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र त्योहार है। यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व पति-पत्नी के अटूट प्रेम, समर्पण और विश्वास का प्रतीक है। इस दिन, सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु, उत्तम स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक निर्जला (बिना जल के) व्रत रखती हैं। यह मुख्य रूप से उत्तर भारत के राज्यों में बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है।
करवा चौथ का महत्व: करवा चौथ का व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह भारतीय वैवाहिक जीवन की पवित्रता और नारी के त्याग की भावना को दर्शाता है। "करवा" का अर्थ है मिट्टी का पात्र और "चौथ" का अर्थ है चतुर्थी तिथि। व्रत रखने वाली महिलाएं देवी करवा माता, भगवान शिव, माता पार्वती और श्री गणेश की पूजा करती हैं।
मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से वैवाहिक जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं और पति-पत्नी का बंधन सात जन्मों तक मजबूत बना रहता है। इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं, जो सुहाग और समृद्धि का प्रतीक है।
पूजन विधि और अनुष्ठान: करवा चौथ का व्रत अत्यंत कठोर होता है और इसमें कई विशेष अनुष्ठान शामिल हैं...
1. सरगी (Sargi): व्रत की शुरुआत सूर्योदय से पहले होती है। इस समय, महिलाएं अपनी सास द्वारा दी गई सरगी (फल, मिठाई और पौष्टिक भोजन) ग्रहण करती हैं ताकि वे पूरे दिन निर्जला रह सकें।
2. निर्जला व्रत: सरगी खाने के बाद महिलाएं पूरे दिन अन्न और जल का त्याग करती हैं।
3. शाम की पूजा: शाम के समय, महिलाएं पारंपरिक वस्त्र और सोलह श्रृंगार करके एक स्थान पर एकत्र होती हैं। वे करवा चौथ की कथा सुनती हैं। इस दौरान करवा माता की पूजा की जाती है और महिलाएं अपने करवों को आपस में बदलती हैं।
4. चंद्र दर्शन और अर्घ्य: रात में चंद्रोदय होने पर व्रत का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा शुरू होता है। महिलाएं चंद्रमा को छलनी से देखती हैं, फिर उसी छलनी से अपने पति का चेहरा देखती हैं। इसके बाद, चंद्रमा को जल और रोली से अर्घ्य दिया जाता है।
5. व्रत पारण: चंद्र दर्शन और पूजा के बाद, महिलाएं अपने पति के हाथों से जल पीकर अपना व्रत खोलती हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।
पौराणिक कथा: करवा चौथ के व्रत से जुड़ी सबसे लोकप्रिय कथा रानी वीरवती की है। रानी वीरवती अपने भाइयों की अकेली और लाडली बहन थी। करवा चौथ का पहला व्रत रखते समय वह भूख-प्यास से इतनी व्याकुल हो गईं कि उनके भाइयों ने उनकी पीड़ा देखकर धोखे से पीपल के पेड़ की आड़ में नकली चांद दिखा दिया। वीरवती ने भ्रमवश व्रत खोल लिया, जिसके तुरंत बाद उनके पति की मृत्यु हो गई।
सच्चाई जानने पर, वीरवती ने अपनी भूल पर पश्चाताप किया और अगले वर्ष पूर्ण श्रद्धा से व्रत रखा। उनकी भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होकर मां पार्वती ने उनके पति को पुनर्जीवन प्रदान किया। यह कथा सिखाती है कि व्रत हमेशा सच्ची श्रद्धा और सही विधि से ही सफल होता है।
उपसंहार: करवा चौथ का पर्व भारतीय संस्कृति की उन अमूल्य परंपराओं में से एक है जो प्रेम, त्याग और अटूट विश्वास जैसे मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देती है। यह पति और पत्नी के बीच के रिश्ते को एक नई ऊर्जा और मजबूती प्रदान करता है। आज के आधुनिक युग में भी, यह त्योहार महिलाओं को अपनी जड़ों से जोड़े रखता है और उन्हें अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद देता है। यह पर्व सिर्फ उपवास नहीं है, बल्कि जीवन भर के साथ का एक सुंदर संकल्प है।
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