कौन हैं भारत की पहली महिला इंजीनियर? 18 वर्ष की सिंगल मदर कैसे बनीं इंजीनियर
- ईशु शर्मा
भारत में इंजीनियरिंग करना आज भी उतना ही प्रचलित है जितना 21वीं सदी की शुरुआत में हुआ करता था। इंजीनियर के नाम से हमारे दिमाग में सबसे पहले IIT का ख्याल आता है और कई विद्यार्थी अपनी 12वीं कक्षा के बाद JEE की तयारी भी करते हैं। आपको बता दें कि भारत में सबसे ज़्यादा इंजीनियर मौजूद हैं और हर साल 7 लाख से भी ज़्यादा विद्यार्थी इंजीनियर की पढ़ाई करते हैं। इतने ज़्यादा विद्यार्थी होने के बाद भी इंजीनियर में महिलाओं का आंकड़ा पुरुषों की तुलना में काफी कम है। पर, क्या आपको पता है कि भारत की पहली महिला इंजीनियर कौन थी? चलिए जानते हैं भारत की पहली महिला इंजीनियर के बारे में जिनका इंजीनियर का जज़्बा जानकार आप भी प्रेरित हो जाएंगे-
कौन है भारत की पहली महिला इंजीनियर?
भारत की पहली इंजीनियर महिला अय्यो सौम्याजुला ललिता थीं, जिनका जन्म 27 अगस्त 1919 में हुआ था। ललिता की शादी 15 वर्ष की आयु में हो गई थी और दुर्भाग्यपूर्ण जब वो 18 वर्ष की थीं तो उनके पति का निधन हो गया था। उस समय ललिता की 4 महीने की बेटी श्यामला भी थी।
पति के गुजरने के बाद कई समस्याओं का सामना किया :
ललिता के जब पति गुज़र गए तो समाज उनके प्रति काफी निर्दय हो गया। साथ ही ससुराल वालों ने अपनी 16वीं संतान को खोया था और इसका गुस्सा ललिता के ऊपर निकाला जाने लगा था। ललिता को लगने लगा था कि उनकी ज़िन्दगी इस निर्दयता के बीच ही गुज़रने वाली है।
बॉयज कॉलेज में की पढ़ाई :
इन सब संघर्ष के बाद ललिता को उनके पिता का सहयोग मिला। ललिता जो सिर्फ 10वीं पास थीं उन्होंने अपनी पढ़ाई चेन्नई के शहर गिंडी के कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग (College of Engineering) में की जिसमें ललिता के पिता लेक्चरर थे। इस कॉलेज में एक भी महिला नहीं थी और ललिता उस कॉलेज की एक मात्र छात्रा थीं। ललिता को इस कॉलेज में एडमिशन मिलना इतना आसान नहीं था क्योंकि उनकी पढ़ाई के लिए ललिता के पिता ने इस कॉलेज के प्रिंसिपल को आग्रह किया और साथ ही ब्रिटिश सरकार से भी ललिता के एडमिशन के लिए अनुमति मांगी।
इसके बाद ललिता ने अपनी पढ़ाई गर्ल्स हॉस्टल में रहकर की और उनकी बेटी की देखभाल ललिता के भाई ने की। ललिता के कॉलेज में एडमिशन के बाद और भी कई छात्राओं ने उस कॉलेज में एडमिशन लिया। 1944 में ललिता अपनी डिग्री इलेक्ट्रिकल इंजीनियर के साथ ग्रेजुएट हो गई और उनके सारे सर्टिफिकेट पर he की जगह she हाथों से लिखा गया।
ग्रेजुएशन के बाद की पिता के साथ रिसर्च :
ललिता की ग्रेजुएशन होने के बाद उन्होंने भारत के केंद्रीय मानक संगठन (Central Standards Organisation) में रिसर्च असिस्टेंट के रूप में काम किया और साथ ही उन्होंने अपने पिता की रिसर्च में भी मदद की जिसमें इलेक्ट्रिकल म्यूजिकल यंत्र, बिना धुंवे का ओवन, इलेक्ट्रिक फ्लेम प्रोडूसर जैसी कई रिसर्च शामिल हैं और उन्होंने इन सभी रिसर्च का पेटेंट भी करवाया था।
पैसों की समस्या के कारण 1948 में ललिता को एक ब्रिटिश कंपनी एसोसिएटेड इलेक्ट्रिकल इंडस्ट्रीज़ (Associated Electrical Engineering) में काम करना पड़ा और इस कंपनी में काम करते समय उन्होंने भारत के सबसे बड़े डैम की ट्रांसमिशन लाइन (transmission line) और सबस्टेशन लेआउट (substation layouts) को डिज़ाइन किया था।
अंत में ललिता का इंजीनियर बनने का जोश भारत की हर महिला को प्रेरित करता है और उनके इस जूनून के कारण ही भारत की महिलाओं का इंजीनियरिंग का सफर शुरू हुआ।