सुर साम्रज्ञी-लता मंगेशकर
एक चिरपरिचित आवाज जो वर्षों से हमारे कानों में गूँज रही है। दुनिया का शायद ही कोई शख्स ऐसा होगा जो इस आवाज से परिचित ना हो-यह नाम है स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर। लताजी की आवाज में अपनी एक दिलकश कशिश है, जो आम सोच के सुनने वाले को भी उतनी प्रिय है, जितनी किसी शास्त्रीय संगीत के जानकार के लिए। उन्होंने फिल्म संगीत को ऐसे संस्कार दिए जो एक तरफ तन की जगह मन के तारों को झनझनाते हैं, दूसरी ओर उनकी आवाज में स्त्रीजनित भावनाओं को भी सँवारा है, जिनकी सार्वजनिक रूप से अभिव्यक्ति शालीनतो के खिलाफ मानी जाती रही व जिन्हें परिवार को सामने गुनगुनाने का भी हक प्राप्त नहीं था। लताजी ने रोमांटिक भावनाओं से ओतप्रोत गीत गाए तो स्वभाव से संगीत चाहने वाले भारतीय जनमानस से वर्षों से जमी रूढ़ियों की वह धूल ही पूछ गई जिसमें किसी युवती की रोमांटिक भावनाओं का इजहार अश्लीलता माना जाता था। यह कमाल था लताजी की उत्तेजनामय उस आवाज का जो शालीनता की सीमाओं को जानती थी और जो युवा मन की अभिव्यक्ति को कुत्सित करने की बजाए पवित्रता से मंडित करती थी।यह संयोग है कि लता मंगेशकर का जन्म 28 सितंबर 1929 को इन्दौर में हुआ। 1942 में पिता दीनानाथ मंगेशकर की मृत्यु के बाद पूरे लताजी एक नहीं अनेक गुणों की खान है। वे सिर्फ गाती ही नहीं है, संगीत, सृजन फिल्मों का निर्माण, फिल्मों में अभिनय करना, फोटोग्राफी उनके शौक हैं
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परिवार की जिम्मेदारी तेरह वर्षीय बालिका लता ने संभाली। लता जी ने पहला गाना फिल्म 'मंगला' में गाया। फिल्मों में पार्श्वगायन का असली ब्रेक संगीतकार गुलाम हैदर ने फिल्म 'मजबूर' में दिया। गीत था-'दिल मेरा तोड़ा, मुझे कहीं का न छोड़ा। फिर 'हवा में उड़ता जाए मेरा लाल दुपट्टा मलमल का' हवा में ऐसा गूँजा की लता की आवाज गली-गली में फैल गई। बॉम्बे टॉकीज की फिल्म 'महल'(1950) में 'आएगा आनेवाला' गाकर लता ने अपना परचन सातवें आसमान पर फहरा दिया। फिर लता ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1969 में लताजी को पदम्भूषण की उपाधि से अलंकृत किया गया और न जाने कितने ही पुरस्कार उनकी झोली में आते चले गए। यही नहीं 1991 में गणतंत्र दिवस पर देश का सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' से अलंकृत किया गया। लताजी एक नहीं अनेक गुणों की खान है। वे सिर्फ गाती ही नहीं है, संगीत, सृजन फिल्मों का निर्माण, फिल्मों में अभिनय करना, फोटोग्राफी उनके शौक हैं। यह बात निर्विवाद रूप से कह सकते हैं लताजी अपने अप्रतीम गुणों के कारण संगीत जगत् की जीती जागती किवंदती बन गई हैं।