परिस्थतियों में बदलाव का काम कोई पुरुष का ही ठेका नहीं है स्त्रियाँ भी इसे बखूबी कर सकती हैं। किस्सा है मध्यप्रदेश के सागर के एक गाँव का। गाँव का नाम गुरैया, बिल्कुल ठेठ गाँव की तरह का गाँव जहाँ यह कहावत आम थी कि 'भोजन तो कर लो लेकिन पानी मत माँगना'। गाँव की एक बहू सीताबाई चौबे ने गाँव के हालात बदलने का बीड़ा उठाया और देखते ही देखते महज एक दशक में गाँव का कायापलट हो गया।
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एक दशक पहले तक गाँव में पानी एक लग्जरी की तरह था। गाँव के लोग कोसों दूर से पानी ढोकर अपने परिवार का गला तर करते। पूर्वजों का तो आधा जीवन ही पानी ढोते और रहा-सहा गरीबी से जूझते हुए निकल गया। पर गाँव की एक महिला ने पूरे गाँव का दु:ख दूर कर दिया।
ठेठ बुंदेलखंडी रंग में रची-बसी सीताबाई गर्व से बताती हैं कि आज उनका गाँव ही नहीं समूचा क्षेत्र ही प्रगतिशील है। उन्होंने बताया कि 1996-97 में गाँव की महिलाओं के साथ मिलकर महिला बचत समूह बनाया। उसके बाद राज्य शासन की 'वॉटर शेड' योजना के तहत जल संग्रहण के कार्य किए।सीताबाई व उनके पति रामनाथप्रसाद चौबे ने बताया कि सभी ग्रामीणों ने पहला तालाब पूरी तरह श्रमदान से बनाया, तत्पश्चात योजना के तहत शासकीय सहायता से दो और तालाब खोदे गए।
उन्होंने बताया कि तालाब को इस तकनीक से खोदा गया कि चारों गाँवों की प्यास बुझ सके। पहले जहाँ हजार-हजार फुट पर भी पानी नहीं मिलता था आज चार सौ फुट में ही उपलब्ध है। सीताबाई ने बताया कि इसके अलावा उनके क्षेत्र से जातिवाद, नशा, दहेज प्रथा जैसी समस्याएँ भी लगभग खत्म हो चुकी हैं।
सीताबाई बड़े गर्व से बताती हैं कि जिस बंजर भूमि में जंगली घास भी नहीं उगाई जा सकती थी, वहाँ तालाबों के कारण अब 7 लाख पौधों की नर्सरी लहलहा रही है। यहाँ तक कि सीताबाई चौबे व उनके सोनिया स्व-सहायता समूह के कार्यों की दिग्विजयसिंह व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने भी प्रशंसा की थी तथा विशेषाधिकार दिया कि जब भी दिल्ली आएँ, उनसे जरूर मिलें। अब सीता का गाँव प्यासा नहीं है और उनकी बगिया उनकी मेहनत के दम पर लहलहा रही है।