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Last Updated : सोमवार, 5 फ़रवरी 2024 (21:15 IST)

महाभारत काल के टीले लाक्षागृह पर आया बड़ा फैसला, 53 वर्ष से चल रहा था वाद

महाभारत काल के टीले लाक्षागृह पर आया बड़ा फैसला, 53 वर्ष से चल रहा था वाद - no dargah in barnawa baghpat it is land of lakshagrah court muslim side petition rejected
बरनावा गांव स्थित ऐतिहासिक टीला महाभारत का लाक्षागृह है या शेख बदरुउद्दीन की दरगाह/ कब्रिस्तान, इस विवाद को आज कोर्ट ने सुलझा दिया है। गत 54 वर्षों से न्यायालय में चल रहे इस वाद कोर्ट ने अहम फैसला दिया है कि यह बरनावा में स्थित यह ऐतिहासिक टीला दरगाह कब्रिस्तान नहीं बल्कि महाभारत कालीन लाक्षागृह की जमीन है। 
 
बागपत जिले के बरनावा गांव में हिंडन और कृष्णा नदी तट पर एक के ऐतिहासिक टीला है, जिसे हिन्दू पक्ष द्वारा महाभारत का लाक्षागृह कहा जा रहा था, वहीं मुस्लिम पक्ष इसे शेख बदरुउद्दीन की दरगाह/ कब्रिस्तान की जमीन कह रहा था। लंबे समय के बाद को लेकर 53 वर्षों से न्यायालय में चल रहे वाद पर सोमवार को कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है। 
 
बरनावा में दरगाह नहीं, लाक्षागृह की जमीन है और इसलिए ही मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज कर दी गई। महाभारतकालीन लाक्षागृह कौरवों ने पांडवों को मारने के लिए बरनावा में बनवाया था। 
 
इतिहासकारों का मानना है कि यहां पर पांडवों की हत्या की साजिश दुर्योधन ने रची थी, लेकिन विदुर के आगे उनकी योजना धरी रह गई और उसने अपने चालक दिमाग से पांडवों को सुरक्षित निकाला था। यह टीला वही लाक्षागृह है जहां पांडवों को जलाने का प्रयास किया गया था। इस (लाक्षागृह) लाख के महल से सुरंग के जरिए हस्तिनापुर पहुंच गए थे पांडव, महाभारतकाल में वार्णावृत के नाम से जाना जाता था बरनावा। 
 
क्या था विवाद : 
 
बरनावा के रहने वाले मुकीम खान ने वर्ष 1970 में सरधना कोर्ट में वक्फ बोर्ड के पदाधिकारी की हैसियत से एक केस दायर कराया था। इस वाद में लाक्षागृह गुरुकुल के संस्थापक ब्रह्मचारी कृष्णदत्त महाराज को प्रतिवादी बनाते हुए कहा था कि कि बरनावा में बने लाक्षागृह के टीले पर शेख बदरुद्दीन की मजार है और उसका एक बड़ा हिस्सा कब्रिस्तान से जुड़ा होने के नाते इस पर वक्फ बोर्ड का अधिकार है। साथ ही मुकीम खान ने आरोप लगाया था कि कृष्णदत्त इस क्षेत्र की नही बल्कि बाहरी व्यक्ति है जो कब्रिस्तान को अस्तित्व खत्म करके यहां पर हिन्दुओं का धार्मिक स्थल बनाने की भावना रखते हैं। 
 
वर्तमान में वादी मुकीम खान और प्रतिवादी कृष्णदत्त महाराज दोनों की मौत के बाद दोनों पक्ष की तरफ से अन्य लोग केस की पैरवी कर रहे हैं। सरधना अब मेरठ जिले में है जबकि बरनावा बागपत जिले में आता है, इसलिए दो अलग जिले होने के चलते यह मामला सिविल जज जूनियर डिवीजन प्रथम की कोर्ट में चल रहा था। 
 
इतिहासकारों में खुशी : बागपत सिविल डिवीजन कोर्ट के सिविल जज शिवम द्विवेदी ने मुस्लिम पक्ष के वाद को आज खारिज करते हुए पिछले 54 सालों से चली आ रही एक लड़ाई का पटाक्षेप कर दिया है। निर्णय की जानकारी मिलते ही इतिहासकारों में खुशी की लहर दौड़ गई। शहजाद राय शोध संस्थान के निदेशक अमित राय जैन का कहना है कि वह कोर्ट के निर्णय में इतिहास और पुरातत्व के तथ्यों का अवलोकन करने के बाद यह फैसला दिया है। 
 
हालांकि उनका न्यायालय के निर्णय की विधि परख व्याख्या तो निर्णय को पढ़ने के उपरांत ही की जाएगी। सर्वमान्य तथ्य है कि बरनावा का यह प्राचीन स्थान भारत के प्राचीन सभ्यता संस्कृति एवं महाभारत की स्मृतियों का गवाह है। सबसे पहले लाक्षागृह की खुदाई 1952 में एएसआई के नेतृत्व में शुरू हुई थी। 
 
4500 साल पुराने अवशेष : खुदाई के दौरान 4500 वर्ष पुराने चित्रित धूसर मृदभांड संस्कृति के अवशेष मिले थे। खुदाई में 4500 वर्ष पुराने मिट्टी के बर्तन मिले थे। इन अवशेषों को महाभारत कालीन बताया था। इससे अलग भी बरनावा के उत्खनन से मौर्य, कुषाण, गुप्त, सल्तनत काल के बहुत से अवशेष प्राप्त हुए हैं। सबसे ऊपर के हिस्से पर जो खंडहर रूप में अवशेष मौजूद है वह सल्तनत काल का है जो की सिद्ध है। 
 
लाक्षागृह टीला 100 फुट ऊंचा और लगभग 30 एकड़ में विस्तार लिए हुए है। सन् 2018 में एकबार फिर से एएसआई ने यहां पर खुदाई शुरू के लिए तंबू गाढ़े थे, जिसमें मानव कंकाल और अन्य जीव अवशेष, विशाल महल की दीवारें और बस्ती के संकेत मिले हैं।
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