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एहसान बिन दानिश की ग़ज़लें
1.
मैं बेअदब हुआ कि वफ़ा में कमी हुईहोंटों पे क्यों है 'मोहरेख़मोशी' लगी हुई---चुप रहने की मोहर आँखों की नींद दिल का सुकूँ ख़्वाब हो गया मैं सोचता हूँ ये भी कोई ज़िन्दगी हुई मुमकिन हो जिस तरह से भी तूफ़ाँ में लो पनाहकश्ती कोई मिली भी किनारे लगी हुईकमबख़्त दिल जला है तो घर भी जला के देख दुनिया को कुछ पता तो चले रोशनी हुईएहसास मर न जाए तो इंसान के लिए काफ़ी है एक राह की ठोकर लगी हुई जिसका न था ख़्याल वो 'मेहशर बपा हुआ'---क़यामत जिस बात की 'उमीद' नहीं थी वही हुई----उम्मीद आँसू बहे तो दिल को मोयस्सर हुआ सुकून पानी लगा तो 'कश्त-ए-तमन्ना' हरी हुई--इच्छाओं की खेतीआई न उनके सामने होंटों पे दिल की बातहर चन्द गाह गाह मुलाक़ात भी हुई वो जब कभी मिले हैं तो ये कहके रह गएमुद्दत के बाद आपको देखा खुशी हुई 2.
कभी मुझ को साथ ले कर कभी मेरे साथ चल केवो बदल गए अचानक मेरी ज़िन्दगी बदल के हुए जिस पे मेहरबाँ तुम कोई खुशनसीब होगामेरी हसरतें तो निकलीं मेरे आँसूओं में ढल के तेरी ज़ुल्फ़-ओ-रुख के क़ुरबाँ 'दिल-ए-ज़ार' ढूँढ़ता है---------परेशान दिल वही चमपई उजाले वही सुरमई धुंदलके कोई फूल बन गया है कोई चाँद कोई तारा जो चिराग़ बुझ गए हैं तेरी अंजुमन में जल के मेरे दोस्तो खुदारा मेरे साथ तुम भी ढूँढ़ो वो यहीं कहीं छुपे हैं मेरे ग़म का रुख बदल के तेरी बेझिझक हँसी से न किसी का दिल हो मैलाये नगर है आईनों का यहाँ सांस ले संभल के