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आसिफ़ अली बहादुर - इन्दौर
1.
गरदिश-ए-वक़्त के तूफ़ान से हारा तो नहीं मैंने मुश्किल में किसी को भी पुकारा तो नहीं जाऊँ मैं और किसी दर पे सवाली बन कर मेरी ख़ुद्दार तबीयत को गवारा तो नहीं क्यों मेरे साथ फिरा करता है साया मेराये मेरी तरहा से हालात का मारा तो नहीं मुड़ के देखूँ जो कभी सू-ए-अदम जाते हुए इतना दिलकश तेरी दुनिया का नज़ारा तो नहीं आए कोई भी सदा मुझको गुमाँ होता है दूर से उसने कहीं मुझको पुकारा तो नहीं तिशना लब बैठा है मयख़ाने में कब से आसिफ़ चश्म-ए-साक़ी का कहीं इस में इशारा तो नहीं