जान लेने का हक़ नहीं वरना
हमारी पसन्द (स. खाक-3)
जान लेने का हक़ नहीं वरनातीर तो मेरी भी कमान में था----अशफ़ाक़ अंजुमफ़ैसले सच के हक़ में होते हैंमैं अभी तक इसी गुमान में था---- अशफ़ाक़ अंजुम बहुत गोहर है मिट्टी में हमारीसलीक़े से मगर छानी तो जाए ----- अशफ़ाक़ अंजुम तीरगी जिससे फेले बनामे-सहर ऎसे सूरज की मोजूदगी मौत है------सालेह आदमी कुछ भी हो सादा काग़ज़ न हो आज के दौर में सादगी मौत है-----------सालेहहै अजब चाँदनी का असर धूप मेंकौन सा चाँद है हमसफ़र धूप में --------सालेह एक चिंगारी मेरे दिल के लहू की ले जाव आग महलों में न लग जाए तो फिर बात ही क्या----सालेह ज़ुलमतों से यूँ अगर लड़ते न जुगनू रात भर ये उजाला दायरा दर दायरा होता नहीं ----------सालेह अपनी मेहनत का सूरज न डूबा कभी रात भी की है हम ने बसर धूप में -----------सालेह मैं कहाँ रास्तों का हूँ मोहताज रास्ते मेरे साथ चलते हैं -----------सालेह नज़र की हद से आगे रास्ता हमवार रखते हैंहम अपनी चश्मे-नज़्ज़ारा उफ़क़ के पार रखते हैं -----सलीम क़ैसरजो अपने जिस्म को ज़ाती मकाँ समझता थाकिराया दार था ख़ाली मकान छोड़ गया -----------सलीम क़ैसर वजूद खो दिया उस बीज ने मगर आदिल फलों के बोझ से हैं डालियाँ लदी कैसे --------रज़्ज़ाक़ आदिल तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है तुम्हारे बाद ये मौसम बहुत सतायेगा - बशीर बद्रप्रेम का सदमा, दुख की चिंता मत करना जीते जी अपने को तमाशा मत करनामुझको देख के कर लेना दरवाज़ा बन्द दरवाज़े से लेकिन झांका मत करना---------लतीफ़ शिफ़ाईबदला ज़मीं का रंग-ओ-रूप और आसमाँ बदल गया झपकी ज़रा सी आँख के सारा जहाँ बदल गया----------- लतीफ़ शिफ़ाई