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बजट 2025 से अपेक्षाएं, क्या इन सुझावों पर ध्यान देंगी वित्त मंत्री सीतारमरण

बजट 2025 से अपेक्षाएं, क्या इन सुझावों पर ध्यान देंगी वित्त मंत्री सीतारमरण - Expectations from Budget 2025, will Finance Minister Sitaraman pay attention to these suggestions
Finance Minister Nirmala Sitharamans budget 2025-26: आगामी एक फरवरी 2025 को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण केन्द्र सरकार का बजट 2025-26 पेश करने जा रही हैं। आम और खास सभी को बजट से कई अपेक्षाए हैं। ऐसा माना जा रहा है कि बजट में कराधानों से संबंधित काफी महत्वपूर्ण घोषणाएं की जा सकती हैं। 
 
प्रत्यक्ष करों में सरलीकरण : इंदौर के वरिष्ठ चार्टर्ड अकाउंटेंट प्रकाश वोहरा ने वेबदुनिया को बताया कि सबसे प्रथम संभावना प्रत्यक्ष करों के प्रावधानों के सरलीकरण से संबंधित होगी। किंतु पिछले अनुभव के आधार पर यही कहा जा सकता है कि जब-जब सरलीकरण की बात होती है अंततोगत्वा सरलीकरण के नाम पर जटिलताएं ही ज्यादा पाई गई हैं। ऐसे में सरलीकरण केवल भाषा में न होकर सतही धरातल पर हों तो बेहतर होगा।
कर की दरें तर्कसंगत हों : सीए प्रकाश वोहरा ने कहा कि वर्तमान में फर्मों आदि पर कर की दरें कंपनी की दरों की अपेक्षा अधिक हैं। जहां कंपनी पर 25 प्रतिशत की दर से कर दायित्व होता है, वहीं फर्मों पर यह दर 30 प्रतिशत की है, जो कि तर्कसंगत भी नही है। साथ ही कंपनियों को अन्य धाराओं में विशेष करों की दरों का उल्लेख है, जो कि फर्मों अथवा एलएलपी में वे छूटें नहीं प्रदान की गई हैं। अत: वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण इस ओर विशेष ध्यान देकर दोनों को तर्क संगत बनाएं तो बेहतर होगा। 
लघु एवं सूक्ष्म उद्योग : उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष लघु एवं सूक्ष्म उद्योगों के लिए निर्देशित कर दायित्वों में परिवर्तन की अपेक्षा थी जो पूर्ण नहीं हो सकी। इस समय इसमें पुनर्विचार की आवश्यकता है। सामान्यत: यह देखा गया है कि सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों से खरीदी पर भुगतान सीमा निर्देशित अवधि से अधिक होती है फिर भी कर कानून के पालन मे यह अवधि काटकर समस्याएं खड़ी कर रही है। अत: इस अवधि को भी वार्षिक आयकर विवरणी फाइल करने की समय सीमा से जोड़कर इसे भी सरल बनाएं तो बेहतर होगा। 
 
बड़े-बड़े रिफंड अटके : सीए वोहरा कहते हैं कि वर्तमान में प्रथम अपीलीय प्रकरण काफी लंबित चल रहे हैं। इसमे कोई समय सीमा निर्धारित न होने के कारण व्यवसायियों को काफी परेशानी उठानी पड़ रही है। बड़े-बड़े रिफंड अटके पड़े हैं, जिसमें एक तरफ व्यवसायी परेशान हैं तथा दूसरी ओर ओर सरकार को भी ब्याज की मार पड़ रही है। अत: इसमें भी समय सीमा निर्धारित करना बेहतर होगा।