कुश्ती के मैट से राजनीति के अखाड़े तक, बजरंग एक नये ‘दंगल’ के लिये तैयार
बजरंग पूनिया ने एक बार कहा था कि इससे फर्क नहीं पड़ता कि कौन उनके साथ है क्योंकि जब वह दिमाग में यह सोच लेते हैं कि वह अपराजेय हैं, उन्हें कोई नहीं हरा सकता।
कुश्ती के मैट को छोड़कर बजरंग अब राजनीति के अखाड़े में उतर गए हैं। तोक्यो ओलंपिक के कांस्य पदक विजेता बजरंग ने हरियाणा में विधानसभा चुनाव से एक महीना पहले कांग्रेस से जुड़ने का फैसला किया और ऐसी अटकलें हैं कि वह चुनाव लड़ सकते हैं।
भारतीय कुश्ती के दिग्गजों में शुमार बजरंग ने मैट पर कई बुलंदियों को छुआ तो मैट के बाहर काफी बुरे दौर भी देखे। वह फ्रीस्टाइल वर्ग में दुनिया की नंबर एक रैंकिंग पर पहुंचने वाले पहले भारतीय थे । वहीं चार विश्व खिताब जीतने वाले भी पहले भारतीय हैं।
तीस वर्ष के बजरंग ने आधिकारिक तौर पर खेल से संन्यास नहीं लिया है लेकिन अब उनके इस नये कदम से तय है कि कुश्ती अब उनकी प्राथमिकताओं में नहीं है।
इसकी शुरूआत महीनों पहले ही हो गई थी। उन्होंने भाजपा के कद्दावर नेता और भारतीय कुश्ती महासंघ के तत्कालीन अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ महिला पहलवानों के कथित यौन उत्पीड़न के आरोपों को लेकर आंदोलन की अगुवाई की।
वह विनेश फोगाट, साक्षी मलिक और अपनी पत्नी संगीता फोगाट के साथ खड़े रहे जिन्होंने इंसाफ की मांग को लेकर दिल्ली की सड़कों पर प्रदर्शन किया।पहलवान बलवान सिंह के बेटे बजरंग बचपन में ही तड़के अपने परिवार को बताये बिना अभ्यास के लिये निकल जाते थे। वह 14 वर्ष की उम्र में अखाड़े से जुड़े।
कुश्ती में झंडे गाड़ने के बाद वह व्यवस्था को बदलने वाले कार्यकर्ता बन गए। यही वजह है कि बृजभूषण के कथित तानाशाही रवैये के खिलाफ आवाज बुलंद करने में उन्हें डर नहीं लगा। राष्ट्रीय डोपिंग निरोधक एजेंसी के तौर तरीकों पर प्रश्नचिन्ह लगाने से पहले भी उन्होंने अंजाम की परवाह नहीं की।
वैसे यह बगावत उन्होंने कैरियर के ढलने के बाद शुरू की।साक्षी और विनेश के साथ जब वह सड़कों पर प्रदर्शन के लिये निकले तब चार विश्व चैम्पियनशिप, एक ओलंपिक, दो एशियाई खेल, तीन राष्ट्रमंडल खेल और आठ एशियाई चैम्पियनशिप पदक जीत चुके थे।
उनके आलोचकों ने उन्हें मौकापरस्त कहा हालांकि बजरंग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी उपलब्धियों के दम पर अपना नाम सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में पहले ही दर्ज करा चुके थ।अब वह अलग तरह के दंगल की तैयारी में है जिसमें जनता का समर्थन और वोट उनके भाग्य का फैसला करेंगे।
उनका सफर जनवरी 2022 में जंतर मंतर से शुरू हुआ जब पहलवानों ने बृजभूषण के खिलाफ आंदोलन छेड़ा। जल्दी ही इसे किसानों, महिला संगठनों, छात्रों , राजनेताओं का समर्थन भी मिला। बजरंग आंदोलन के कारण ओलंपिक की तैयारी नहीं कर सके और ट्रायल में ही हार गए।
(भाषा)