Sharad kojagiri purnima 2025: अश्विन माह की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। इसे कोजागरी पूर्णिमा, रास पूर्णिमा तथा कोजागरी लक्ष्मी पूजा भी कहते हैं। इस दिन चंद्रमा के प्रकाश में खीर को रखने से वह अमृत के समान बनकर सेहत संबंधी लाभ देती और इसी दिन चंद्रमा को अर्घ्य देने से सभी तरह के चंद्र दोष दूर हो जाते हैं। यह रात इसलिए खास है क्योंकि माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है और उसकी किरणें पृथ्वी पर अमृत की वर्षा करती हैं। चलिए जानते हैं कि शरद पूर्णिमा पर 2 पौराणिक कथाएं।
कोजागिरी पूर्णिमा व्रत की कथा: साहूकार की पुत्रियों की कथा:-
कोजागिरी पूर्णिमा व्रत की प्रचलित कथा के अनुसार एक साहुकार को दो पुत्रियां थीं। दोनो पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं। लेकिन बड़ी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधूरा व्रत करती थी।
इसका परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी। उसने पंडितों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी, जिसके कारण तुम्हारी संतान पैदा होते ही मर जाती है।
पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक करने से तुम्हारी संतान जीवित रह सकती है। उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया। बाद में उसे एक लड़का पैदा हुआ। जो कुछ दिनों बाद ही फिर से मर गया।
उसने लड़के को एक पाटे (पीढ़ा) पर लेटा कर ऊपर से कपड़ा ढंक दिया। फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पाटा दे दिया। बड़ी बहन जब उस पर बैठने लगी जो उसका लहंगा बच्चे का छू गया। बच्चा लहंगा छूते ही रोने लगा।
तब बड़ी बहन ने कहा कि तुम मुझे कलंक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता। तब छोटी बहन बोली कि यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। उसके बाद नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया।
कोजागिरी पूर्णिमा की दूसरी कथा: ब्राह्मण और नागकन्या की कथा
कोजागिरी पूर्णिमा की प्रमुख कथा एक निर्धन ब्राह्मण की है, जिसकी धन और समृद्धि के लिए पत्नी ने नागकन्या के कहने पर कोजागर व्रत किया, जिसके प्रभाव से उसे धन मिला और उसकी पत्नी की बुद्धि भी सुधर गई। एक अन्य कथा में, एक व्यापारी की दो पुत्रियों में से छोटी पुत्री अधूरा व्रत करती थी, जिससे उसकी मृत्यु हो जाती थी, और पूर्ण व्रत करने के बाद ही उसकी संतान जीवित रहती थी।
मगध देश में वलित नामक एक निर्धन, लेकिन सज्जन ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी निर्धनता से तंग आकर उसे दुर्व्यवहार व चोरी के लिए उकसाती थी। श्राद्ध के दौरान उसकी पत्नी द्वारा फेके गए पिंडों को उठाकर दुखी मन से ब्राह्मण जंगल चला गया, जहाँ उसे नागकन्याएँ मिलीं। नागकन्याओं ने उसे कोजागर व्रत और जागरण करने को कहा, जिससे महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।
ब्राह्मण ने व्रत किया, और लक्ष्मीजी की कृपा से उसे अपार धन मिला। धन-संपत्ति मिलने से पत्नी की बुद्धि भी शुद्ध हो गई और वे सुख-शांति से रहने लगे।