Sharad Poornima 2024: भारत में शरद पूर्णिमा को अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। यह दिन देवी लक्ष्मी की पूजा और चंद्रमा की विशेष आराधना से जुड़ा हुआ है। नारद पुराण जैसे प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में शरद पूर्णिमा का विशेष उल्लेख मिलता है, जो इसे और भी पवित्र और महत्त्वपूर्ण बनाता है।
Highlight
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शरद पूर्णिमा के बारे में नारद पुराण में क्या लिखा है?
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शरद पूर्णिमा का धार्मिक महत्व
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शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा की महत्ता
नारद पुराण में शरद पूर्णिमा का उल्लेख
नारद पुराण, जो कि हिंदू धर्म के प्रमुख पुराणों में से एक है, इसमें शरद पूर्णिमा के विशेष महत्त्व का वर्णन किया गया है। नारद पुराण के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है और यह दिन देवताओं के लिए अत्यंत शुभ माना गया है। यह रात केवल धार्मिक दृष्टि से नहीं, बल्कि चमत्कारी ऊर्जा से भी जुड़ी हुई मानी जाती है।
इस दिन देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और जिन घरों में शुद्ध हृदय से उनकी पूजा होती है, वहाँ वे स्थायी रूप से निवास करती हैं। नारद पुराण के अनुसार, इस दिन को कोजागरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है "कौन जाग रहा है"। कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस रात जागकर लक्ष्मी पूजा करता है, उसे धन-धान्य और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा की महत्ता
नारद पुराण में यह भी उल्लेख है कि शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा अमृत वर्षा करता है। इस रात चंद्रमा का विशेष प्रभाव होता है और उसकी किरणों में अद्भुत ऊर्जा होती है, जो स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए लाभकारी मानी जाती है। इसलिए कई लोग इस दिन खीर बनाकर उसे चंद्रमा की किरणों में रखते हैं और अगले दिन इसका सेवन करते हैं। यह परंपरा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी मानी जाती है।
शरद पूर्णिमा की पूजा विधि
शरद पूर्णिमा के दिन विशेष रूप से देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन व्रत रखना भी शुभ माना जाता है। व्रत करने वाले श्रद्धालु रात में जागकर भजन-कीर्तन करते हैं और देवी लक्ष्मी से समृद्धि और सौभाग्य की कामना करते हैं। नारद पुराण के अनुसार, इस दिन किया गया दान भी अत्यंत फलदायी होता है, और व्रत रखने से मनुष्य के पाप समाप्त होते हैं।
शरद पूर्णिमा की पौराणिक कथा
नारद पुराण में एक प्रसिद्ध कथा का उल्लेख है, जिसके अनुसार शरद पूर्णिमा की रात को देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु का मिलन हुआ था। इस दिन भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी से कहा कि इस दिन जो भी व्यक्ति उनकी पूजा करेगा, उसे कभी आर्थिक संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा। इस कथा के अनुसार, यह दिन प्रेम, विश्वास और भक्ति का प्रतीक है।
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