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किसने छोड़ा था दुनिया का पहला परमाणु बम, जानिए...

The First Atomic Bomb Blast | किसने छोड़ा था दुनिया का पहला परमाणु बम, जानिए...
यह आश्चर्य वाली बात है कि गीता पढ़कर दुनिया का आधुनिक परमाणु बम बनाया गया और आज दुनिया के पास हजारों जीवित परमाणु बम हैं जिसके बल पर धरती से सैकड़ों बार जीवन को नष्ट किया जा सकता है। चिंता की बात तो यह है कि अब परमाणु बम उन मुल्कों के पास भी हैं जिनमें जरा भी सह-अस्तित्व भी भावना नहीं है।

अफगानिस्तान में मिला महाभारतकालीन विमान...!

आधुनिक काल में जे. रॉबर्ट आइजनहॉवर ने गीता और महाभारत का गहन अध्ययन किया। उन्होंने महाभारत में बताए गए ब्रह्मास्त्र की संहारक क्षमता पर शोध किया और अपने मिशन को नाम दिया ट्रिनिटी (त्रिदेव)। रॉबर्ट के नेतृत्व में 1939 से 1945 के बीच वैज्ञानिकों की एक टीम ने यह कार्य किया और अमेरिका में 16 जुलाई 1945 को पहला परमाणु परीक्षण करने दुनिया की दशा और दिशा बदल दी। निश्चित ही परमाणु ऊर्जा से मानव ने विकास की नई ऊंचाइयों को छुआ लेकिन हमारे पास हिरोशिमा और नागासाकी के विध्वंस की बरसी और त्रासदी का इतिहास भी है।

आठ हजार जीवित परमाणु बम


परमाणु परीक्षणों के आधार पर अनुमानित अमेरिका के पास 7,650, रशिया के पास 8,420, ब्रिटेन के 225, नॉर्थ कोरिया के पास 10, इसराइल के पास 80 के लगभग परमाणु बम हो सकते हैं। विश्वभर में परमाणु बमों की वास्तविक संख्या के बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। परमाणु बम संपन्न देशों से जिस प्रकार के आंकड़े आए हैं, उन पर सहसा विश्वास नहीं होता, क्योंकि 1985 में विश्वभर में 65 हजार से ज्यादा जीवित परमाणु बम थे जिसे वर्तमान में 8 हजार बताया जा रहा है।

अमेरिका ने पहली बार न्‍यूक्लियर परीक्षण 1945 में किया था। अंतिम परीक्षण 1992 में किया गया था। अमेरिका ने कुल 1054 बार परीक्षण किया है। रूस ने 1949 में और ब्रिटेन ने 1952 में परीक्षण किया था। रूस 715 तो यूके 45 बार परीक्षण कर चुका है। नॉर्थ कोरिया ने पहली बार 2006 में और अंतिम बार 2013 में परमाणु परीक्षण किया था।

भारत में इंदिरा गांधी की सरकार ने 18 मई 1974 को पहला परमाणु परीक्षण किया था। इसके बाद अटलबिहारी वाजपेयी की सरकार में 11 मई और 13 मई 1998 को राजस्‍थान के पोखरण में 5 परमाणु परीक्षण किए गए थे।

विशेषज्ञ कहते हैं कि भारत के पास परमाणु बम के अलावा हाइड्रोजन बम भी भारी मात्रा में मौजूद हैं। हाइड्रोजन बम अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत के पास ही हैं। लोगों का यह मानना है कि भारत के पास ऐसे परमाणु बम भी हैं कि सिर्फ एक बम से पाकिस्तान जितने बड़े भू-भाग का अस्तित्व हमेशा-हमेशा के लिए मिट जाएगा और वहां सैकड़ों वर्षों तक किसी भी प्रकार का जीवन नहीं पनपेगा।

 

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तदस्त्रं प्रजज्वाल महाज्वालं तेजोमंडल संवृतम।
सशब्द्म्भवम व्योम ज्वालामालाकुलं भृशम।
चचाल च मही कृत्स्ना सपर्वतवनद्रुमा।। महाभारत ।। 8-10-14 ।।

अर्थात : ब्रह्मास्त्र छोड़े जाने के बाद भयंकर वायु जोरदार तमाचे मारने लगी। सहस्रावधि उल्का आकाश से गिरने लगे। भूतमात्र को भयंकर महाभय उत्पन्न हो गया। आकाश में बड़ा शब्द हुआ। आकाश जलने लगा। पर्वत, अरण्य, वृक्षों के साथ पृथ्वी हिल गई।

जानिए, क्या है ब्रह्मास्त्र और इसकी मारक क्षमता...


हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम छोड़ा गया, तब ऐसा ही हुआ था। सबसे पहले तेज चमक ने सभी को अंधा कर दिया। फिर जोरदार धमाके से सब कुछ नष्ट हो गया। इसके बाद तेज वायु और चारों ओर आग ही आग का नजारा था।

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राम-रावण युद्ध के दौरान मेघनाद से युद्ध हेतु लक्ष्मण ने जब ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करना चाहा, तब श्रीराम ने उन्हें यह कहकर रोक दिया क‍ि अभी इसका प्रयोग उचित नहीं, क्योंकि इससे पूरी लंका साफ हो जाएगी। यह अस्त्र रामायण काल में छुटने से बच गया, लेकिन महाभारत काल में कौरव और पांडवों के युद्ध में इसका इस्तेमाल किया गया।

42 वर्ष पहले पुणे के डॉक्टर व लेखक पद्माकर विष्णु वर्तक ने अपने शोधकार्य के आधार पर कहा था कि महाभारत के समय जो ब्रह्मास्त्र इस्तेमाल किया गया था वह परमाणु बम के समान ही था। डॉ. वर्तक ने 1969-70 में एक किताब लिखी ‘स्वयंभू’। इसमें इसका उल्लेख मिलता है।

महाभारत का युद्ध आज से लगभग 5,300 वर्ष पूर्व हुआ था। उस दौरान गुरु द्रोण के पुत्र अश्‍वत्थामा ने भगवान कृष्ण के मना करने के बावजूद ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। अपने पिता के मारे जाने के बाद अश्चत्थामा बदले की आग में जल रहा था। उसने पांडवों का समूल नाश करने की प्रतिज्ञा ली और चुपके से पांडवों के शिविर में पहुंचा और कृपाचार्य तथा कृतवर्मा की सहायता से उसने पांडवों के बचे हुए वीर महारथियों को मार डाला। केवल यही नहीं, उसने पांडवों के पांचों पुत्रों के सिर भी काट डाले। अंत में अर्जुन की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु की उसे याद आई।

पुत्रों की हत्या से दुखी द्रौपदी विलाप करने लगी। अर्जुन ने जब यह भयंकर दृश्य देखा तो उसका भी दिल दहल गया। उसने अश्वत्थामा के सिर को काटने की प्रतिज्ञा ली। अर्जुन की प्रतिज्ञा सुनकर अश्वत्थामा वहां से भाग निकला। श्रीकृष्ण को सारथी बनाकर अर्जुन ने उसका पीछा किया। अश्वत्थामा को कहीं भी सुरक्षा नहीं मिली तो अंत में उसने अर्जुन पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया। अश्वत्थामा ब्रह्मास्त्र चलाना तो जानता था, पर उसे लौटाना नहीं जानता था।

उस अति प्रचंड तेजोमय अग्नि को अपनी ओर आता देख अर्जुन भयभीत हो गया और उसने श्रीकृष्ण से विनती की। श्रीकृष्ण बोले, 'है अर्जुन! तुम्हारे भय से व्याकुल होकर अश्वत्थामा ने यह ब्रह्मास्त्र तुम पर छोड़ा है। इस ब्रह्मास्त्र से तुम्हारे प्राण घोर संकट में हैं। इससे बचने के लिए तुम्हें भी अपने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करना होगा, क्योंकि अन्य किसी अस्त्र से इसका निवारण नहीं हो सकता।'

अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र छोड़ा, प्रत्युत्तर में अर्जुन ने भी छोड़ा। अश्वत्थामा ने पांडवों के नाश के लिए छोड़ा था और अर्जुन ने उसके ब्रह्मास्त्र को नष्ट करने के लिए। दोनों द्वारा छोड़े गए इस ब्रह्मास्त्र के कारण लाखों लोगों की जान चली गई थी। अश्वत्थामा ने पांडवों के समूल नाश के लिए इस अस्त्र के एक रूप का उत्तरा के गर्भ पर भी प्रयोग किया था।

जब अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया, तब कृष्ण ने अश्वत्थामा से कहा- 'उत्तरा को परीक्षित नामक बालक के जन्म का वर प्राप्त है। उसका पुत्र तो होगा ही। यदि तेरे शस्त्र-प्रयोग के कारण मृत हुआ तो भी मैं उसे जीवित कर दूंगा। वह भूमि का सम्राट होगा और तू? नीच अश्वत्थामा! तू इतने वधों का पाप ढोता हुआ 3,000 वर्ष तक निर्जन स्थानों में भटकेगा। तेरे शरीर से सदैव रक्त की दुर्गंध नि:सृत होती रहेगी। तू अनेक रोगों से पीड़ित रहेगा।' व्यास ने श्रीकृष्ण के वचनों का अनुमोदन किया।

अगले पन्ने पर तब अश्‍वत्थामा ने श्रीकृष्ण से क्या कहा...


तब अश्वत्थामा ने कहा, 'हे श्रीकृष्ण! यदि ऐसा ही है तो आप मुझे वह मनुष्यों में केवल व्यास मुनि के साथ रहने का वरदान दीजिए, क्योंकि मैं सिर्फ उनके साथ ही रहना चाहता हूं।' जन्म से ही अश्वत्थामा के मस्तक में एक अमूल्य मणि विद्यमान थी, जो कि उसे दैत्य, दानव, अस्त्र-शस्त्र, व्याधि, देवता, नाग आदि से निर्भय रखती थी। वही मणि द्रौपदी ने मांगी थी। व्यास तथा नारद के कहने से उसने वह मणि द्रौपदी के लिए दे दी।

अगले पन्ने पर इन ऋषि ने किया था परमाणु बम का आविष्कार...


परमाणु सिद्धांत और अस्त्र के जनक जॉन डाल्टन को माना जाता है, लेकिन उनसे भी 2,500 वर्ष पर ऋषि कणाद ने वेदों में लिखे सूत्रों के आधार पर परमाणु सिद्धांत का प्रतिपादन किया था। भारतीय इतिहास में ऋषि कणाद को परमाणु शास्त्र का जनक माना जाता है। आचार्य कणाद ने बताया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं। कणाद प्रभास तीर्थ में रहते थे। उल्लेखनीय है कि विश्वामित्र ऋषि सभी देवी और देवताओं के लिए अस्त्र-शस्त्र का निर्माण करते थे।

विख्यात इतिहासज्ञ टीएन कोलेबु्रक ने लिखा है कि अणुशास्त्र में आचार्य कणाद तथा अन्य भारतीय शास्त्रज्ञ यूरोपीय वैज्ञानिकों की तुलना में विश्वविख्यात थे।

अगले पन्ने पर महाभारत काल में कौन-कौन से अस्त्र-शस्त्र थे...


अस्त्र-शस्त्र : धनुष-बाण, भाला या तलवार की बात नहीं कर रहे हैं। इसका आविष्कार तो भारत में हुआ ही है लेकिन हम आग्नेय अस्त्रों की बात कर रहे हैं। आग्नेयास्त्र, वरुणास्त्र, पाशुपतास्त्र, सर्पास्त्र, ब्रह्मास्त्र आदि अनेक ऐसे अस्त्र हैं जिसका आधुनिक रूप बंदूक, मशीनगन, तोप, मिसाइल, विषैली गैस तथा परमाणु अस्त्र हैं।

वेद और पुराणों में निम्न अस्त्रों का वर्णन मिलता है- इन्द्र अस्त्र, आग्नेय अस्त्र, वरुण अस्त्र, नाग अस्त्र, नाग पाशा, वायु अस्त्र, सूर्य अस्त्र, चतुर्दिश अस्त्र, वज्र अस्त्र, मोहिनी अस्त्र, त्वाश्तर अस्त्र, सम्मोहन/ प्रमोहना अस्त्र, पर्वता अस्त्र, ब्रह्मास्त्र, ब्रह्मसिर्षा अस्त्र, नारायणा अस्त्र, वैष्णव अस्त्र, पाशुपत अस्त्र आदि।

अगले पन्ने पर तब भी हो गया था पाकिस्तानी हिस्से का समूल नाश....


आज जिस हिस्से को पाकिस्तान और अफगानिस्तान कहा जाता है, महाभारत काल में इसे पांचाल, गांधार, मद्र, कुरु और कंबोज की स्थली कहा जाता था। अयोध्या और मथुरा से लेकर कंबोज (अफगानिस्तन का उत्तर इलाका) तक आर्यावर्त के बीच वाले खंड में कुरुक्षेत्र होता था, जहां यह युद्ध हुआ। उस काल में कुरुक्षेत्र बहुत बड़ा क्षेत्र होता था। आजकल यह हरियाणा का एक छोटा-सा क्षेत्र है।

उस काल में सिंधु और सरस्वती नदी के पास ही लोग रहते थे। गंगा और यमुना नहीं थी। सिंधु और सरस्वती के बीच के क्षेत्र में कुरु रहते थे। यहीं सिंधु घाटी की सभ्यता और मोहनजोदड़ो के शहर बसे थे, जो मध्यप्रदेश की नर्मदा घाटी तक फैले थे।

सिंधु घाटी सभ्यता के मोहन जोदड़ो, हड़प्पा आदि स्थानों की प्राचीनता और उनके रहस्यों को आज भी सुलझाया नहीं जा सका है। मोहन जोदड़ो सिंधु नदी के दो टापुओं पर स्थित है।

जब पुरातत्व शास्त्रियों ने पिछली शताब्दी में मोहन जोदड़ो स्थल की खुदाई के अवशेषों का निरीक्षण किया था तो उन्होंने देखा कि वहां की गलियों में नरकंकाल पड़े थे। कई अस्थिपंजर चित अवस्था में लेटे थे और कई अस्थिपंजरों ने एक-दूसरे के हाथ इस तरह पकड़ रखे थे मानो किसी विपत्ति ने उन्हें अचानक उस अवस्था में पहुंचा दिया था।

उन नरकंकालों पर उसी प्रकार की रेडियो एक्टिविटी के चिह्न थे, जैसे कि जापानी नगर हिरोशिमा और नागासाकी के कंकालों पर एटम बम विस्फोट के पश्चात देखे गए थे। मोहन जोदड़ो स्थल के अवशेषों पर नाइट्रिफिकेशन के जो चिह्न पाए गए थे, उसका कोई स्पष्ट कारण नहीं था, क्योंकि ऐसी अवस्था केवल अणु बम के विस्फोट के पश्चात ही हो सकती है।