हिंदू धर्म की प्रमुख चार ध्वनियां
हिंदू धर्म सृष्टि की रचना में ध्वनि का महत्वपूर्ण योगदान मानता है। ध्वनि से प्रकाश की उत्पत्ति और बिंदु रूप प्रकाश से ध्वनि की उत्पत्ति का सिद्धांत हिंदू धर्म का ही है। ब्रह्मांड में व्याप्त अनाहत और अजर अमर ध्वनि कुछ प्रतीक रूप हिंदू धर्म के संस्थापकों ने ढूंढे हैं उनमें से प्रमुक चार की जानकारी प्रस्तुत है।
1.
मंदिर की घंटी ( bells ): जब सृष्टि का प्रारंभ हुआ तब जो नाद था, घंटी की ध्वनि को उसी नाद का प्रतीक माना जाता है। यही नाद ओंकार के उच्चारण से भी जाग्रत होता है। जिन स्थानों पर घंटी बजने की आवाज नियमित आती है वहां का वातावरण हमेशा शुद्ध और पवित्र बना रहता है। इससे नकारात्मक शक्तियां हटती है। नकारात्मकता हटने से समृद्धि के द्वारा खुलते हैं। प्रात: और संध्या को ही घंटी बजाने का नियम है। वह भी लयपूर्ण।
घंटी या घंटे को काल का प्रतीक भी माना गया है। ऐसा माना जाता है कि जब प्रलय काल आएगा तब भी इसी प्रकार का नाद यानि आवाज प्रकट होगी।
2.
शंख ( conch ): शंख को नादब्रह्म और दिव्य मंत्री की संज्ञा दी गई है। शंख समुद्र मंथन के समय प्राप्त चौदह अनमोल रत्नों में से एक है। लक्ष्मी के साथ उत्पन्न होने के कारण इसे लक्ष्मी भ्राता भी कहा जाता है। यही कारण है कि जिस घर में शंख होता है वहां लक्ष्मी का वास होता है।
कई देवी देवतागण शंख को अस्त्र रूप में धारण किए हुए हैं। महाभारत में युद्धारंभ की घोषणा और उत्साहवर्धन हेतु शंख नाद किया गया था।
शंख के मुख्यतः तीन प्रकार प्रकार होते हैं- वामावर्ती, दक्षिणावर्ती तथा गणेश शंख। उक्त तीन प्रकार के अनेक प्रकार होते हैं- इसके अलावा गोमुखी शंख, विष्णु शंख, पांचजन्य शंख, अन्नपूर्णा शंख, मोती शंख, हीरा शंख, शेर शंख आदि।
शंख सूर्य व चंद्र के समान देवस्वरूप है जिसके मध्य में वरुण, पृष्ठ में ब्रह्मा तथा अग्र में गंगा और सरस्वती नदियों का वास है। तीर्थाटन से जो लाभ मिलता है, वही लाभ शंख के दर्शन और पूजन से मिलता है।
3.
बांसुरी ( flute ) : ढोल मृदंग, झांझ, मंजीरा, ढप, नगाड़ा, पखावज और एकतारा में सबसे प्रिय बांस निर्मित बांसुरी भगवान श्रीकृष्ण को अतिप्रिय है। इसे वंसी, वेणु, वंशिका और मुरली भी कहते हैं। बांसुरी से निकलने वाला स्वर मन-मस्तिष्क को शांति प्रदान करता है। जिस घर में बांसुरी रखी होती है वहां के लोगों में परस्पर तो बना रहता है साथ ही सुख-समृद्धि भी बनी रहती है।
4.
वीणा ( lyre ) : वीणा एक ऐसा वाद्य यंत्र है जिसका प्रयोग शास्त्रीय संगीत में किया जाता है। जैसे, दुर्गा के हाथों में तलवार, लक्ष्मी के हाथों में कमल का फूल होता है उसी तरह मां सरस्वती के हाथों में वीणा होती है। वीणा शांति, ज्ञान और संगीत का प्रतीक है। सरस्वती और नारद का वीणा वादन तो जग प्रसिद्ध है ही।
वीणा के प्रमुख दो प्रकार है- रुद्रवीणा और विचित्र वीणा। यह मूलत: 4 तार की होती है लेकिन इसकी शुआत में यह एक तार की हुआ करती थी। वीणा से निकली ध्वनी मन के तार छेड़ देती है। इसे सुनने से मन और शरीर के सारे रोग मिट जाते हैं। वीणा से ही सितार, गिटार और बैंजो का अविष्कार हुआ। -प्रस्तुति अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'