भारतीय कृषि भी मौसम परिवर्तन से प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगी। गेहूँ जैसी कुछ फसलों की उत्पादकता में गिरावट देखी ही जा रही है। हमारे कृषक समुदाय का बहुत बड़ा हिस्सा पूरी तरह वर्षा पर ही निर्भर है। अतः वर्षा में अनियमितता एवं पानी की उपलब्धि की अनिश्चितता सेलगभग 50 करोड़ लोगों की आजीविका प्रभावित होगी। उल्लेखनीय है कि यदि ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता को आज ही स्थिर कर दिया जाए, तो भी हमें कई दशकों तक मौसम परिवर्तन का सामना करना पड़ेगा। अतः तमाम देशों को इस परिवर्तन के अनुसार स्वयं को डालना हीहोगा। हमें अपने जल संसाधनों का उपयोग कहीं अधिक कुशलता के साथ करना होगा। इसी प्रकार बढ़ते तापमान और विशेष तौर पर तटीय इलाकों के आसपास बढ़ते समुद्री जल स्तर की वजह से पानी के बढ़ते खारेपन को ध्यान में रखते हुए कृषि गतिविधियों में भी परिवर्तन करना होगा।
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