• Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. धर्म-दर्शन
  3. धार्मिक आलेख
  4. kabir das bhajan
Written By WD Feature Desk
Last Modified: मंगलवार, 10 जून 2025 (17:05 IST)

जाग्रत रहना रे , नगर में चोर आवेगा.... जानिए कबीर वाणी के इस भजन का मर्म

जागृत रहना नगर में चोर आएगा
kabir jayanti 2025: कबीर दास जी भारतीय संत परंपरा के एक ऐसे चमकते सितारे हैं, जिनकी वाणी आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी सदियों पहले थी। उनके भजन और दोहे सिर्फ धार्मिक उपदेश नहीं, बल्कि जीवन के गहरे दर्शन और व्यवहारिक सच्चाइयों का आईना हैं। आज हम कबीर के एक ऐसे ही भजन  का अर्थ समझेंगे जो हमें जीवन की नश्वरता, माया और कर्म के महत्व को समझाता है।
 
।। दोहा ।।
आये हैं तो जाएगा,
राजा रंक फ़क़ीर ,
एक सिंघासन चढ़ी चले ,
एक बांधे जंजीर।।
 
अर्थ : यह भजन हमें जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई से रूबरू कराता है: मृत्यु निश्चित है। चाहे कोई राजा हो या रंक (गरीब), चाहे कोई सिंहासन पर बैठा हो या जंजीरों में जकड़ा हो, इस संसार में जो भी आया है, उसे एक दिन जाना ही है। यह भजन हमें अहंकार त्याग कर विनम्रता और समभाव से जीने की प्रेरणा देता है। हमें याद दिलाता है कि सांसारिक पद, धन और शक्ति सभी क्षणभंगुर हैं। कबीर के भजन का अर्थ हमें इस बात पर जोर देता है कि जीवन का अंतिम सत्य यही है कि हम सभी को एक दिन इस दुनिया से विदा लेना है।

चोर आवेगा नगर में ,
होशियार रहना रे ,
नगर में चोर आवेगा।
जाग्रत रहना रे ,
नगर में चोर आवेगा।
चोर आवेगा नगर में ,
होशियार रहना रे ,
नगर में चोर आवेगा।

 
अर्थ : यह पद एक रूपक के माध्यम से हमें आगाह करता है। यहाँ "चोर" कोई साधारण चोर नहीं, बल्कि मृत्यु है। मृत्यु अचानक, बिना बताए आती है और हमें इस संसार से ले जाती है। कबीर दास जी हमें जाग्रत रहने की सलाह देते हैं, यानी जीवन के प्रति सचेत रहने की। यह हमें बताता है कि हमें हर पल अपने कर्तव्यों को पूरा करना चाहिए और अच्छे कर्म करने चाहिए, क्योंकि हमें नहीं पता कि यह "चोर" कब आ जाए। कबीर के दोहे अक्सर ऐसे प्रतीकात्मक अर्थ लिए होते हैं जो गहरी बात को सहजता से समझाते हैं।
 
तीर तोप तलवार ना बरछी ,
न बंदुक चलावेगा।
आवत जावत कहू ना दिखे ,
घर में राड़ मचावेगा।
होशियार रहना रे ,
नगर में चोर आवेगा।।

 
अर्थ : इस पद में "चोर" यानी मृत्यु के आने का तरीका बताया गया है। मृत्यु न तो हथियारों से आती है और न ही किसी को दिखाई देती है। वह चुपचाप आती है और घर में "राड़ मचावेगा" यानी सारे नाते-रिश्ते, धन-संपत्ति सब छीन लेती है। यह हमें सिखाता है कि भौतिक सुरक्षा के उपाय मृत्यु के सामने बेकार हैं। हमें अपने अंदर की आत्मा को जागृत करना चाहिए और जीवन के आध्यात्मिक पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए। कबीर के उपदेश हमें संसार की क्षणभंगुरता को स्वीकार करने और शाश्वत सत्य की ओर बढ़ने का मार्ग दिखाते हैं।
 
ना गढ़ तोड़े ना गढ़ फोड़े ,
ना कोई रूप दिखावेगा।
इस नगरी से कोई काम नहीं है ,
तुझे पकड़ ले जावेगा।
होशियार रहना रे ,
नगर में चोर आवेगा।।
 
अर्थ : यह पद फिर से मृत्यु की अजेय शक्ति का वर्णन करता है। वह किसी किले को नहीं तोड़ती, किसी रूप में नहीं आती, बल्कि सीधे व्यक्ति को ही पकड़ कर ले जाती है। "इस नगरी से कोई काम नहीं है" का अर्थ है कि मृत्यु को इस भौतिक संसार से कोई लेना-देना नहीं है, उसका लक्ष्य केवल जीवात्मा को ले जाना है। यह हमें यह समझने में मदद करता है कि हमारा शरीर और यह संसार अस्थायी है। कबीर के विचार हमें जीवन की वास्तविकता से आँखें नहीं चुराने देते।
 
भाई बंधू और कुटम्ब कबीला ,
कोई काम नहीं आएगा।
ढूंढे पता मिले नहीं तेरा ,
खोजी खोज नहीं पायेगा।
होशियार रहना रे ,
नगर में चोर आवेगा।।

 
अर्थ : जब मृत्यु आती है, तब कोई भी सांसारिक रिश्ता, कोई भी सगा-संबंधी काम नहीं आता। व्यक्ति अकेला ही इस यात्रा पर जाता है। उसके जाने के बाद कितना भी ढूंढा जाए, उसका पता नहीं मिलता। यह हमें बताता है कि हमें रिश्तों को निभाना चाहिए, लेकिन उनमें आसक्ति नहीं रखनी चाहिए। अंततः हमारी यात्रा व्यक्तिगत होती है। कबीर के पद हमें यह याद दिलाते हैं कि सच्चा साथी केवल हमारे कर्म और हमारी आत्मा का बल ही होता है।
 
मुट्ठी बाँध के आया रे पगले ,
हाथ पसारे जाएगा।
कहे कबीर सुने भाई साधो ,
करनी का फल पायेगा।
होशियार रहना रे ,
नगर में चोर आवेगा।

अर्थ : यह अंतिम पद जीवन के सार को पूरी तरह से समेट लेता है। हम इस दुनिया में खाली हाथ आते हैं (मुट्ठी बाँध के) और खाली हाथ ही जाते हैं (हाथ पसारे)। कबीर दास जी कहते हैं कि व्यक्ति को अपने कर्मों का फल अवश्य मिलता है। यही करनी का फल है। इसलिए, हमें जीवन रहते अच्छे कर्म करने चाहिए। यह भजन हमें कबीर के अमर संदेश का सार बताता है – "जैसा करोगे वैसा भरोगे"। यह हमें हर पल सचेत रहने और सदाचरण करने की प्रेरणा देता है।
 
कबीर के ये भजन केवल शब्द नहीं हैं, बल्कि जीवन जीने की कला हैं। वे हमें सांसारिक मोह माया से ऊपर उठकर, अपने आंतरिक सत्य को पहचानने और सार्थक जीवन जीने का मार्ग दिखाते हैं।

 
ये भी पढ़ें
जाति जनगणना: मुगल और अंग्रेजों ने इस तरह जातियों में बांटा था हिंदुओं को