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Last Updated : बुधवार, 11 जून 2025 (10:16 IST)

भारतीय परंपरा में ध्यान के 10 विभिन्न स्वरूपों को जानें

Meditation
भारतीय ज्ञान परंपरा में ध्यान (Meditation) को भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। यह परंपरा हज़ारों वर्षों पुरानी है और योग, वेद, उपनिषद, बौद्ध एवं जैन दर्शन सहित अनेक आध्यात्मिक मार्गों में ध्यान को आत्मसाक्षात्कार और मानसिक शुद्धि का प्रमुख साधन माना गया है।
 
ध्यान का अर्थ: 'ध्यान' शब्द संस्कृत के 'ध्' धातु से बना है, जिसका अर्थ होता है – 'सोचना, मनन करना, एकाग्रता लाना'। ध्यान का उद्देश्य है चित्त को एकाग्र करना और अंतर्मुख होकर आत्मा या ब्रह्म से जुड़ना।
 
भारतीय ज्ञान परंपरा में ध्यान के विभिन्न स्वरूप:
1. वेदों और उपनिषदों में ध्यान: उपनिषदों में ध्यान को आत्मज्ञान प्राप्त करने का मार्ग बताया गया है। 'ध्यानम आत्मविद्या' – ध्यान आत्मा की विद्या है। माण्डूक्य उपनिषद में ओंकार (ॐ) का ध्यान ब्रह्म की प्राप्ति का साधन बताया गया है।
 
2. पतंजलि योगसूत्र में ध्यान: अष्टांग योग में ध्यान सातवां अंग है – यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि। पतंजलि के अनुसार – 'तत्र प्रत्ययैकतानता ध्यानम्', अर्थात किसी एक विषय में चित्त की निरंतर एकाग्रता ही ध्यान है।
 
3. बौद्ध परंपरा में ध्यान: बुद्ध ने विपश्यना और समथ (शमथ) ध्यान पद्धतियों को अपनाया। ‘अनापानसति’ (श्वास का ध्यान) और ‘विपश्यना’ (वस्तु को जैसे है वैसा देखना) जैसे ध्यान बौद्ध परंपरा में अत्यंत प्रभावशाली हैं।
4. जैन परंपरा में ध्यान: जैन धर्म में ध्यान आत्मा की शुद्धि का माध्यम है। चार प्रकार के ध्यान बताए गए हैं –आर्त, रौद्र, धर्म ध्यान और शुक्ल ध्यान, जिनमें शुक्ल ध्यान मोक्ष का मार्ग है।
 
5. भक्ति मार्ग में ध्यान: भक्त संतों ने ध्यान को ईश्वर के स्मरण, नामजप और लीलाओं के चिंतन से जोड़ा। मीरा, तुलसीदास, कबीर आदि संतों ने ध्यान को प्रेम और समर्पण का मार्ग बताया।
 
ध्यान के लाभ: मानसिक शांति और एकाग्रता, आत्मिक विकास, क्रोध, तनाव और भय से मुक्ति, आध्यात्मिक अनुभव और आत्मज्ञान। भारतीय ज्ञान परंपरा में ध्यान केवल मानसिक अभ्यास नहीं, बल्कि जीवन को रूपांतरित करने वाली गहन साधना है। यह आत्मा को शरीर और संसार की सीमाओं से परे ब्रह्म की ओर ले जाने वाला सेतु है।
 
ध्यान से जुड़ी विशिष्ट विधियां और उनकी व्यावहारिक साधनाएं भारतीय परंपरा में अत्यंत समृद्ध और विविध हैं। यहां मैं कुछ प्रमुख ध्यान विधियां और उनकी अभ्यास-पद्धतियां संक्षेप में प्रस्तुत कर रही हूँ, जिन्हें आप अपने अभ्यास में शामिल कर सकते हैं।
 
1. ओंकार ध्यान (ॐ ध्यान)
परंपरा: वेद, उपनिषद, योग
विधि: शांत स्थान पर बैठें (पद्मासन, सुखासन), आंखें बंद करें, धीरे-धीरे गहरी श्वास लें और छोड़ते हुए 'ॐ' का उच्चारण करें। ध्वनि पर पूर्ण ध्यान रखें (ॐ की गूंज को महसूस करें)। 10–15 मिनट तक अभ्यास करें। 
लाभ: मानसिक शांति, ऊर्जा संतुलन, आंतरिक स्थिरता
 
2. त्राटक ध्यान (निरखना या स्थिर दृष्टि ध्यान)
परंपरा: हठयोग
विधि: किसी दीपक की लौ या काले बिंदु को आंखें झपकाए बिना देखें मन को पूरी तरह उस बिंदु पर केंद्रित रखें, आंखें जलने लगे तो बंद कर लें और मानसिक रूप से उस छवि को देखें। 
लाभ: एकाग्रता, स्मरण शक्ति, दृष्टि शक्ति में सुधार
 
3. विपश्यना ध्यान
परंपरा: बौद्ध
विधि: शांत बैठकर अपने स्वास-प्रश्वास पर ध्यान केंद्रित करें, किसी भी विचार या भाव को रोके नहीं, केवल 'देखें और जाने दें'। यह प्रक्रिया जागरूकता बढ़ाती है
लाभ: अंतर्दृष्टि, आत्मनिरीक्षण, चित्त की शुद्धि।
 
4. मानस जप ध्यान (नामस्मरण)
परंपरा: भक्ति योग
विधि: किसी मंत्र या ईश्वर के नाम (जैसे 'राम', 'ॐ नमः शिवाय', 'हरे राम हरे कृष्ण') का मन में जप करें, ध्यान रखें कि नाम की ध्वनि मन में ही गूंजे, बाहर न निकले। 
लाभ: ह्रदय की शुद्धि, ईश्वर से जुड़ाव, करुणा और भक्ति का जागरण।
 
5. चक्र ध्यान (Chakra Meditation)
परंपरा: तंत्र, कुंडलिनी योग
विधि: शरीर के 7 चक्रों पर ध्यान केंद्रित करें (मूलाधार से लेकर सहस्रार तक), प्रत्येक चक्र के रंग, मंत्र और स्थान को महसूस करें। कल्पना करें कि ऊर्जा ऊपर की ओर प्रवाहित हो रही है।
लाभ: ऊर्जा संतुलन, जागरूकता, आध्यात्मिक जागरण।
 
ध्यान के अभ्यास में ध्यान देने योग्य बातें:
स्थान: शांत, स्वच्छ और एकांत जगह चुनें। समय: प्रातः ब्रह्ममुहूर्त या संध्या का समय श्रेष्ठ। मुद्रा: पीठ सीधी, शरीर स्थिर रखें। 
नियमितता: रोज़ अभ्यास करना आवश्यक
परिणाम: प्रारंभ में अशांति हो सकती है, लेकिन धीरे-धीरे मन स्थिर होता है।
ध्यान का उद्देश्य: मानसिक शांति और तनाव मुक्ति, एकाग्रता और स्मरण शक्ति में सुधार, आत्मिक विकास और आत्मसाक्षात्कार, ऊर्जा जागरण/ कुंडलिनी शक्ति का अनुभव, भक्ति और ईश्वर से संबंध गहरा करना, नींद में सुधार और चिंता से मुक्ति, सकारात्मक सोच और भावनात्मक संतुलन, अंतर्दृष्टि (Intuition) और ध्यान की गहराई। भारतीय ज्ञान परंपरा में ज्योतिष का अत्यंत महत्वपूर्ण और प्राचीन स्थान है। इसे वेदों का एक अभिन्न अंग माना जाता है और यह हिंदू संस्कृति की सनातन परंपरा में गहराई से जुड़ा हुआ है।