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Last Updated : बुधवार, 3 जुलाई 2024 (17:08 IST)

प्रवचनकारों, कथावाचकों और बाबाओं पर क्या कहते हैं हिंदू शास्त्र?

Hindu babas
Hindu babas
हिंदू धर्म में इस वक्त बाबाओं, कथा वाचकों और स्वयंभू संतों की भरमार हो चली है। हर कोई ज्ञान बांट रहा है और सभी के अपने यूट्यूब चैनल खुले हुए हैं। सभी सब्सक्राइबर बढ़ाना और अपने पांडाल में भीड़ देखना चाहते हैं। यानी कि ऑनलाइन के साथ ही ऑफलाइन कमाई भी धड़ल्ले से चल रही है। आयोजकों को भी इससे बड़ा फायदा हो रहा है। ऐसे में इन ढोंगी बाबाओं ने धर्म हिंदू धर्म पर शिकंजा कस रखा है। दुखी और भोली जनता इनके झांसे में आकर अपना खुद का कर्म, समय और पैसा बर्बाद करके इन बाबाओं का भाग्य चमकाने में लगी है। आइए जानते है रील और शार्ट्स के जमाने में ऐसे बाबाओं, प्रवचनकारों, कथावाचकों पर क्या है शास्त्रोक्त नियम :

  • हिंदू संत बनने के लिए 13 अखाड़ों के संतों से ही दीक्षा लेना होती है।
  • 12 वर्ष की तपस्या के बाद बनता है कोई हिंदू संत।
  • धन, संपत्ति, परिवार काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह आदि त्यागने वाला ही होता है संत।
  • सत्संग का मुख्य समय चातुर्मास रहता है।
  • संत रविदास, कबीरदास, माधवदास, रामानंद, चैतन्य महाप्रभु जैसे संत अब नहीं होते।
     
हिंदू संत बनना कठिन : हिन्दू संत बनना बहुत कठिन है, क्योंकि संत संप्रदाय में दीक्षित होने के लिए कई तरह के ध्यान, तप और योग की क्रियाओं से व्यक्ति को गुजरना होता है जिसमें करीब 12 साल से ज्यादा लगते हैं तब ही उसे शैव, शाक्त या वैष्णव साधु-संत मत में प्रवेश मिलता है। इस कठिनाई, अकर्मण्यता और व्यापारवाद के चलते ही कई लोग स्वयंभू साधु और संत कुकुरमुत्तों की तरह पैदा हो चले हैं। इन्हीं नकली साधु्ओं के कारण हिन्दू समाज लगातार बदनाम और भ्रमित भी होता रहा है, हालांकि इनमें से कमतर ही सच्चे संत होते हैं।ALSO READ: आधुनिक भोले बाबा के दानदाता कौन हैं? हादसे के बाद उभरते कुछ सवाल!
 
हिंदू संत धारा एक व्यवस्थित धारा है, जो प्रजापतियों के काल से चली आ रही है। वैष्णव धारा जहां समाज में प्रचलित संस्कारों, तीर्थ, मंदिर, यज्ञ को आदि को संभालती है, वहीं शैव धारा संन्यासी और साधुओं की धारा है जो मोक्ष, आश्रम, धर्म और दर्शन के ज्ञान के लिए उत्तरदायी होती है। हिंदू संतों के 13 अखाड़ें हैं जो कुंभ में शामिल होते हैं।
 
पूर्व में हिंदू धर्म के बाबाओं, धर्मगुरुओं के खिलाफ इलाहाबाद के अखाड़ा परिषद की कार्यकारिणी ने तीन बार सूची जारी कर दर्जनभर से ज्यादा बाबाओं को फर्जी बताया था। इस लिस्ट में कई स्वयंभू बाबाओं के नाम हैं जिनमें आसाराम बापू, सुखविंदर कौर उर्फ राधे मां, सच्चिदानंद गिरी उर्फ सचिन दत्ता, गुरमीत राम रहीम सिंह, ओम बाबा उर्फ विवेकानंद झा, निर्मल बाबा उर्फ निर्मलजीत सिंह, इच्छाधारी भीमानंद उर्फ शिवमूर्ति द्विवेदी, स्वामी असीमानंद, ऊं नम: शिवाय बाबा, नारायण साईं, संत रामपाल, कुश मुनि, बृहस्पति गिरि, साध्वी त्रिकाल भवंता, बाबा वीरेन्द्र दीक्षित, मलकान गिरि आदि के नाम शामिल हैं। ALSO READ: देश के स्वयंभू बाबाओं का कच्चा चिट्‍ठा
 
सत्संग का समय : हिंदू धर्म में सत्संग का समय नियुक्त है। चातुर्मास के दौरान आश्रमों और गीता भवनों में और कुंभ के दौरान जब कल्पवास होता है तब ही सत्संग किया जाता है। परंतु आजकल सत्संग ने नाम पर स्वयंभू बाबा या संत कभी भी सत्संग की घोषणा करके पांडाल सजा लेते हैं और कथा वाचक भी कभी भी कथा का आयोजन करके संतों की तरह प्रवचन देने लगते हैं, ज्ञान बांटने लगते हैं जबकि उनका काम सिर्फ कथा पढ़ना होता है। कथा का समय भी नियुक्त होता है। भागवत कथा का आयोजन गीता जयंती सप्ताह में ही आयोजित किया जाना चाहिए।
 
संत कौन?
ब्राह्मणा: श्रुतिशब्दाश्च देवानां व्यक्तमूर्तय:।
सम्पूज्या ब्रह्मणा ह्येतास्तेन सन्तः प्रचक्षते॥- मत्स्यपुराण
ब्राह्मण ग्रंथ और वेदों के शब्द, ये देवताओं की निर्देशिका मूर्तियां हैं। जिनके अंतःकरण में इनके और ब्रह्म का संयोग बना रहता है, वह सन्त कहलाते हैं।
 
नारद प्रश्न करते हैं-
संतन के लच्छन रघुवीरा।
कहहुं नाथभव भंजन भीरा।।- रामचरित मानस
 
और इसके उत्तर में श्रीराम कहते हैं कि संत वह है जिसने षट विकारों (काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह, मत्सर आदि) पर विजय प्राप्त कर ली हो, जो निष्पाप और निष्काम हो, सांसारिक वैभव से विरक्त, इच्छारहित और नियोगी हो, दूसरे का सम्मान करने वाला मदहीन हो, अपने गुणों के श्रवण करने में संकोच करता हो और दूसरों के गुण-श्रवण में आनंदित होता हो, कभी नीति का परित्याग न करता हो, सभी प्राणियों में प्रेम-भाव रखता हो। श्रद्धा, क्षमा, दया, विरति, विवेक आदि का पुंज हो। रामचरित मानस के ही उत्तरकांड में श्रीराम-भरत के संवाद-रूप में संतों के लक्षणों पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है। संतों को धन, पद, वैभव, मान सम्मान, सुख और सुविधाओं से कोई मतलब नहीं रहता है। वह तो भक्ति, ध्यान और तप में ही रहता है। सांसारिक सुख दुख से उसे कोई मतलब नहीं रहता है।
 
भटका हुआ हिंदू : हेरा-फेरी के दौर में कोई कैसे किसी भी संत पर विश्वास करके उसका परम भक्त बन जाता है, यह आश्चर्य का ही विषय है। ऐसा नहीं है कि अनपढ़ या गरीब लोग ही इन तथाकथित संतों के भक्त बनकर इनके चरणों में साष्‍टांग पड़े रहते हैं, बल्कि बहुत ज्यादा पढ़े-लिखे लोग भी इनके आगे गिड़गिड़ाते नज़र आते हैं। इसमें लोगों का दोष नहीं, दरअसल व्यक्ति अपने कर्मों से इतना दुखी हो चला है कि उसे समझ में नहीं आता कि किधर जाएं, जहां उसका दुख-दर्द मिट जाए। व्यक्ति धर्म के मार्ग से भटक गया है तभी तो ठग लोग बाजार में उतर आए हैं और लोगों के दुख-दर्द का शोषण कर रहे हैं।
 
बाबा को पूजा जाता है भगवान की तरह : यह तथाकथित भोली-भाली, लेकिन समझदार जनता हर किसी को अपना गुरु मानकर उससे दीक्षा लेकर उसका बड़ा-सा फोटो घर में लगाकर उसकी पूजा करती है। भगवान के सारे फोटो तो किसी कोने-कुचाले में वार-त्योहार पर ही साफ होते होंगे। यह जनता अपने तथाकथित गुरु के नाम या फोटोजड़ित लॉकेट गले में पहनती है। उनके नाम का जप भी करती हैं। संभवत: ओशो रजनीश के चेलों ने सबसे पहले गले में लॉकेट पहनना शुरू किया था। अब इसकी लंबी लिस्ट है। श्रीश्री रविशंकर के चेले, आसाराम बापू के चेले, सत्य सांई बाबा के चेले, बाबा राम रहीम के चेले, संत रामपाल के चेलों के अलावा हजारों गुरु घंटाल हैं और उनके चेले तो उनसे भी महान हैं। ये चेले कथित रूप से महान गुरु से जुड़कर खुद में भी महानता का बोध पाले बैठे हैं। उन्हें लगता है कि हमारा गुरु महान है। 
 
फर्जी बाबाओं की भरमार : चार किताब पढ़कर आजकल कोई भी संत, ज्योतिष, प्रीस्ट बनकर लोगों को ठगने लगा है। लोग भी इनकी बातों को बिलकुल 'वेद वाक्य' या 'ब्रह्म वाक्य' मानकर पूजने लगते हैं। देश-विदेश में ऐसे बहुत सारे फर्जी बाबा हैं, जिनकी समय-समय पर पोल खुली है। बाबाओं की भरमार के बीच कुछ बड़े नाम हैं- जैसे तांत्रिक चंद्रास्वामी, नित्यानंद, भीमानंद, निर्मल बाबा, राधे मां आदि ये वो नाम हैं, जो किसी न किसी कारण विवादों में रहे हैं। इनमें से कुछ पर तो गंभीर आरोप सिद्ध हुए हैं और बहुत से ऐसे बाबा हैं, जिन पर धर्म को धंधा बनाने का आरोप लगता रहता है, जैसे कोई योग बेच रहा है तो कोई जड़ी-बुटी। कोई ध्यान बेच रहा है तो कोई प्रवचन।
 
संत से शैतान बनने का फैशन : वर्तमान में तो संत बनकर शैतान जैसा काम करने का प्रचलन बढ़ गया है। बहुत से बाबाओं पर तो यौन दुराचार और देह व्यापार करने का आरोप भी लगाया गया है, जैसे- भगवताचार्य राजेंद्र, सच्चिनादंन गिरी, नित्यानंद, पायलट बाबा, इच्छाधारी बाबा, भीमानंद उर्फ राजीव रंजन द्विवेदी उर्फ शिवमूरत बाबा, बंगाली बाबा ऊर्फ तांत्रिक बाबा, आसाराम बापू, गुरमीत राम रहीम इन्सां, रामपाल, भोले बाबा ऊर्फ सूरजपाल जाटव आदि। कथित बाबाओं के अपराधिक या सेक्स स्कैंडल आए दिन उजागर होते रहते हैं।