पवित्र और निश्छल हो शिवभाव
भारतीय संस्कृति का ध्रुव सत्य
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अभिनव गुप्त भारतीय संस्कृति का ध्रुव सत्य है उसका शिवभाव। यह भाव उतना ही पवित्र और निश्छल है जितना कि ब्रह्मा, विष्णु के साथ आसीन शिव। शिव के ईशान, आशुतोष, केशी, पशुपति, शर्व उग्र रूद्र, अशनि आदि न जाने कितने नाम हैं। श्वेताश्वरोपनिषद में रूद्र शिव को सृष्टि का आदिकर्ता माना गया है। यहीं इन्हें रूद्र, शिव और महेश्वर भी कहा गया है। गृहसूत्रों में शिव को शर्व, भवःरूद्र और पशुपति कहा गया है। महाभारत में इनकी पत्नी के नाम उमा, पार्वती, काली, कराली आदि गिनाए गए हैं। चाहे उज्जैन के महाकाल हों या काशी के विश्वनाथ, या फिर कुंभकोणम् और कांजीवरम् के अर्धनारीश्वर, सबके सब शिव के स्वरूप की ही अलग-अलग छवियाँ हैं। ऋग्वेद में शिव से प्रार्थना की गई है कि वे हमें अभय जीवन प्रदान करें। सूत्रकाल में शिव स्कंद और विनायक भी हो गए। रामायण काल में शिव त्र्यंबक उपाधि से विभूषित हुए। यही नहीं, मरणांतक कष्ट का निवारण करने वाले इन त्र्यंबक को अनंत ऊर्जा प्रदान करने वाला एक मात्र ऊर्जार्णब माना गया। केनोपनिषद में उमा का नाम आता है जिन्हें रुद्र के ही समकक्ष रूद्राणी की संज्ञा से अभिहित किया गया है। केरल में उमा शिव के ही साथ रहती हैं। वे शिव के बगल में न बैठकर उनकी जाँघ पर ही आश्वस्तभाव से बैठी दिखाई जाती हैं। शिव का आद्य निवास स्थान मेरूपर्वत था। कालांतर में वे मानसरोवर झील के उस पार कैलाश पर्वत पर जाकर समाधि में लीन हो गए।दक्ष प्रजापति ने शिव को नंदिकेश्वर नामक वृषभ प्रदान किया था जिसे शिव ने अपना वाहन बनाया। इसी वजह से शिव को 'वृषभध्वज' भी कहा जाता है (म. अनुशासनपर्व 77.27)। शिव का प्रमुख अस्त्र विद्युतशर है जो आकाश से गिरकर पृथ्वी पर विध्वंस लीला करने में समर्थ है। रूद्र का स्वभाव अत्यंत क्रोधी है और समय आने पर पृथ्वी पर प्रलय की सी स्थिति पैदा कर सकते हैं। ब्रह्मसूत्र के अपने भाष्य में रामानुज ने कापालिक संप्रदाय का भी जिक्र किया है जिसके केंद्र में भी शिव ही विद्यमान हैं।
अमर कोश के अनुसार शिव ने जब विष्णु को मोहिनी का रूप दिया तो सभी देवता विष्णु रूपी मोहिनी पर मुग्ध हो गए। सबकी कामशक्ति का शमन करने के लिए शिव ने संभवतः पहली बार तांडव नृत्य किया। शिव ने जहाँ यह तांडव नृत्य किया उसे आज 'चिदंबरम्' कहते हैं। विष्णु के मोहिनी रूप पर आसक्त 'गय' नाम के एक असुर ने शिव पर ही आक्रमण करना चाहा। शिव ने वहाँ भी तांडव नृत्य कर 'गय' को मार डाला। 'गय' को शिव ने जहाँ मारा वही स्थान आज 'गया' के नाम से जाना जाता है।महाशिवरात्रि का यह पर्व फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता है। शिवभाव कहता है कि अपने पशुभाव का परिष्कार करो। पहले यह मानो कि हम सभी पशुभाव से त्रस्त हैं। हमें अपनी पशुता का अतिक्रमण करना है। हमें अपनी पशुता से भागना नहीं है बल्कि अपनी कटुता का केवल सृजनात्मक उपयोग करना है। आकाश की तरह शिवभाव में निमग्न हो जाना है।प्रस्तुति- कैलाश वाजपेयी