शादी के बाद यदि पति-पत्नी दोनों ही कामकाजी है तो ऐसे में पतियों को भी अपनी पत्नी की परेशानी समझना चाहिए और किसी भी तरह के काम में उनका सहयोग करना चाहिए। इस बात कि शिक्षा आमतौर पर भारतीय परिवारों में अकसर बेटों को नहीं दी जाती हैं, कि पत्नी का सभी मायनों में सहयोग करना उनकी भी जिम्मेंदारी है। ऐसा ही एक किस्सा है राकेश और उसकी पत्नी का... दोनों ही नौकरी करते है। राकेश की पत्नी अनु राकेश के साथ आर्थिक मामलों कंधे से कंधा मिलाकर चलती है। लेकिन राकेश का रवैया ऐसा होता है कि अनु मन ही मन टूट जाती है...
राकेश के दफ्तर की छुट्टी यानी उसकी पत्नी अनु के लिए दुगुनी परेशानी होती है। अनु भी एक कंपनी में काम करती है और पूरे दिन काम करने के बाद जब वह थकी-मांदी घर लौटती है तो घर आते ही आराम से टीवी के सामने पसरे बैठे राकेश की फरमाइशें चालू हो जाती हैं। 'अरे यार, जरा कड़क सी चाय तो पिलाओ। पूरा दिन हो गया, एक ढंग की चाय नहीं मिली। और सुनो, खाना भी जल्दी बना लो, मुझे बहुत तेज भूख लगी है।'
बुरी तरह थकी अनु का मन और भी टूट जाता है। पूरे दिन की दौड़भाग के बाद ये तो नहीं कि राकेश उससे एक कप चाय को पूछ ले। उलटा उसे देखते ही राकेश अपने लिए हुकूम चलाने लगता है। इस सबके बाद अनु को खाना भी तैयार करना है और उसमें भी किसी तरह की मदद की कोई गुंजाइश नहीं है। यही नहीं, पूरा घर भी अस्त-व्यस्त पड़ा है।
कई कामकाजी महिलाओं की स्थिति कमोबेश ऐसी ही होती है। शाम को घर आने पर थकान के बावजूद कोई उसे चाय या पानी के लिए पूछने वाला नहीं होता। यदि किसी दिन पति पूरे दिन घर पर भी रहते हैं तब भी पति को घर के कामकाज से कोई मतलब नहीं होता।
वे टीवी के सामने बैठकर या सोए रहकर पूरा दिन गुजार देते हैं। इस तरह के पति कभी इस विषय में संवेदनशील नहीं होते कि पूरा दिन थक-हार कर आने वाली उनकी पत्नी को भी एक भावनात्मक संबल की जरूरत होती है।
अपनी जिम्मेदारी पहचानें
पतियों को हमेशा इस बात को समझना चाहिए कि पति और पत्नी एक ही गाड़ी के दो पहिए होते हैं और घर-गृहस्थी के कामों को निभाने की जिम्मेदारी दोनों की बराबर होती है। घर दोनों का होता है। इसलिए यह जरूरी नहीं कि घर की हर जिम्मेदारी पत्नी अकेले ही उठाए। इसमें पति के सहयोग की भी जरूरत होती है। घर और बाहर की जिम्मेदारी निभाते-निभाते वह थक जाती है। अगर पति का थोड़ा-सा सहयोग भी उसे मिलता है तो इससे उसको सुकून मिलता है।
माता-पिता सिखाएँ बेटे को दायित्व
आमतौर पर कई भारतीय परिवारों में पुरुषों का काम करना गलत समझा जाता है। ऐसे परिवारों में पलने वाले लड़कों की जब शादी होती है तो इन्हें घर के काम करने की कोई आदत नहीं होती, जो परेशानी का कारण बनती है। शादी एक जवाबदारी है, इसके बाद कोई व्यक्ति एक नहीं दो हो जाता है। इस स्थिति में अपनी जिम्मेदारी से बचना पुरुषों के लिए उचित नहीं है।
फिर आजकल तो लड़कियाँ भी घर से बाहर निकलकर काम करती हैं या अतिरिक्त जिम्मेदारियाँ भी संभालती हैं। ऐसे में लड़कों को भी उनका सहयोग करना चाहिए। यूँ भी घर से बाहर रहकर पढ़ने या करियर बनाने वाले लड़कों को घर और बाहर दोनों जिम्मेदारियाँ संभालनी पड़ती हैं, इसलिए थोड़ा-बहुत काम करना उन्हें भी आना ही चाहिए।
खासतौर पर आज के दौर में लड़कों को इस विषय में समझदारी से काम लेते हुए एक सजग, सचेत हर जिम्मेदारी में साथ निभाने वाला पति बनने के बारे में सोचना चाहिए।
विवाह के बाद लड़की को एक नए घर में अपनी जिम्मेदारियों को अच्छे ढंग से निभाना सिखाया जाता है। उसी तरह माता-पिता का यह दायित्व भी बनता है कि वे अपने बेटे को भी यह सिखाएँ कि वह पत्नी का सहयोग करे।