• Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. समाचार
  3. प्रादेशिक
  4. Kashmir, strike, demonstration
Last Modified: मंगलवार, 1 नवंबर 2016 (17:06 IST)

बंद-हड़ताल से परेशान कश्मीरियों ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ खोला मोर्चा

jammu and Kashmir
जम्मू। चार महीने से बंद और हड़तालों के दौर से गुजर रहे कश्मीरियों के सब्र का बांध अब टूट गया है। परिणाम सामने है। हड़ताल करवाने के लिए आने वालों को स्थानीय लोगों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। यह विरोध कहीं कहीं हिंसक भी होने लगा है।
कश्मीर के विभिन्न इलाकों से ऐसे समाचार मिले हैं। पुलवामा, अनंतनाग, सफापोरा और न जाने कितने नाम अब इस सूची में जुड़ते जा रहे हैं जहां बंद और हड़ताल करवाने के लिए आने वालों को खरी-खोटी तो सुननी ही पड़ी जोर जबरदस्ती करने पर पहले लोगों की मार को सहन करना पड़ा और फिर पत्थर भी खाने पड़े।
 
नतीजतन विरोध प्रदर्शन और बंद से परेशान दुकानदारों ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। नतीजतन कल तक सुरक्षाबलों और पुलिस पर पथराव करने वाले प्रदर्शनकारियों को खुद पत्थरों का सामना करना पड़ रहा है। सूत्रों के अनुसार प्रदर्शनकारियों का विरोध करने के साथ ही लोगों ने दुकानदारों से दुकानें खोलने और घाटी में हालात सामान्य करने की अपील की है। 
 
उल्लेखनीय है कि कश्मीर घाटी में लगातार हिंसक प्रदर्शन और बंद का दौर जारी है। एक ओर जहां अलगाववादियों के आह्नान पर जबरन दुकानों को बंद कराया जा रहा है। वहीं, दूसरी ओर कर्फ्यू के कारण जन-जीवन अस्त व्यस्त है। बंद और कर्फ्यू से बेहाल लोग सुरक्षाबलों और प्रदर्शनकारियों के बीच पिस रहे हैं। घाटी के लोगों की रोजी-रोटी पर भी संकट उठ खड़ा हुआ है।
 
बांडीपोरा में मोटरसाइकिल पर आए पत्थरबाजों ने जबरदस्ती दुकानें बंद करवानी चाहीं तो उन्हें लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा। पुलवामा, अनंतनाग और बारामुल्ला में भी ऐसा ही हुआ है। अनंतनाग के एक व्यापारी के बकौलः‘चार महीनों से सब कुछ बंद है, ऐसे में बच्चों का पेट कैसे पालें। जिन व्यापारियों से माल उठा रखा है उनका हिसाब कैसे चुकता करें।
 
सबसे बुरी हालत होटल उद्योग की है। 7 जुलाई के बाद हिंसक हुए हालात के चलते कश्मीर की ओर रूख करने वाला कोई नहीं रहा तो रेस्तरां, होटलों और अन्य उन संस्थानों पर ताले लग गए जो कश्मीर में टूरिज्म बूम के चलते 7 जुलाई तक खुशी मनाते रहे थे। हड़तालों ने उन कर्मियों के पेट पर भी ग्रहण लगा दिया जिन्हें होटलों की नौकरी से निकाला जा चुका है। इनकी संख्या 80 से 95 प्रतिशत है।
 
व्यापारी और दुकानदार तो विरोध करके पत्थरबाजों को पत्थर का जवाब ईंट से देने लगे हैं पर होटल, रेस्तरां और शिकारेवाले ऐसा कर भी नहीं सकते। उनकी आंखें टूरिस्टों के लिए फिर से तरसने लगी हैं। ऐसे में वे अलगाववादियों और पत्थरबाजों को कोसने के सिवाय कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं। इतना जरूर था कि वे भी अब पत्थरबाजों के खिलाफ पत्थरबाजी करने को उतावले जरूर थे।
ये भी पढ़ें
जब मोदी का हुआ शेर से सामना....