कश्मीर में पत्थरबाज बर्बाद कर रहे बच्चों का भविष्य और पर्यटन
श्रीनगर। कश्मीरियों की किस्मत में शायद यही है कि कुछ दिनों की चांदनी रात के बाद फिर से घुप्प अंधेरे से उनका सामना हो जाता है। कुछ दिन खुशी के गुजरते नहीं कि मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ता है। अगर पहले आतंकी हमलों से कश्मीरी दो-चार हो रहे थे और अब अलगाववादियों के बहकावे में आकर पत्थरबाजों द्वारा पैदा की गई परिस्थितियों से। हालत यह है कि एक बार फिर कश्मीर में बच्चों को पढ़ाई से महरूम होना पड़ रहा है तो रोजगार का एकमात्र साधन टूरिज्म अंधे कुएं में चला गया है।
कश्मीर में पिछले साढ़े तीन महीनों से जारी हिंसा ने कश्मीरी छात्रों के शैक्षणिक सत्र को बर्बाद कर दिया है। हिंसा ने इस साल के टूरिस्ट सीजन को भी पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है। हिंसा ने पर्यटन उद्योग की ऐसी कमर तोड़ी है कि आने वाले सालों में भी इसकी भरपाई होना मुश्किल लग रहा है। ऐसा ही हाल अमरनाथ जमीन विवाद के चलते भी हुआ था और फिर वर्ष 2010 की हिंसा के दौरान भी। पर्यटन उद्योग अभी तक इन आंदोलनों से हुए घाटे से उभर नहीं पाया था कि इस बार की हिंसा ने रही-सही उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया।
राज्य में टूरिस्ट सीजन अप्रैल महीने में शुरू हो जाता है और सितंबर तक हाई सीजन रहता है, लेकिन इस बार जुलाई के पहले सप्ताह बुरहान वानी की मौत के साथ ही कश्मीर में शुरू हुआ हिंसा का दौर अभी भी जारी है। इस हिंसा का असर यह हुआ कि मई महीने में दिल्ली-श्रीनगर की जो एयर टिकट दस हजार रुपए में बिक रही थी वो आज तीन हजार से भी कम में आसानी से उपलब्ध हो रही है। ’गो एयरलाइंस’ की इंटरनेट पर उपलब्ध बुकिंग में मौजूदा दिल्ली-श्रीनगर की एयर टिकट 2850 रुपए में उपलब्ध है, जबकि गत दिवस 2500 रुपए में भी उपलब्ध रही। आमतौर पर दिल्ली-श्रीनगर की एयर टिकट पांच से छह हजार रुपए में उपलब्ध होती है।
जानकारी के मुताबिक टूरिस्ट सीजन में कश्मीर व जम्मू में पर्यटन उद्योग से जुड़े लोगों को रोजाना एक करोड़ रुपए की आमदनी होती है, लेकिन इस बार यह सीजन मात्र दो महीने तक चला। ऐसे में अगर नुकसान की बात करें तो मात्र जम्मू के पर्यटन उद्योग से जुड़े लोगों को इस सीजन में 1000 करोड़ से भी अधिक का नुकसान हुआ। आल होटल एंड लॉज एसोसिएशन के प्रधान इन्द्रजीत खजूरिया के अनुसार इस हिंसा का असर अगले साल भी रहेगा। अगले साल भी पर्यटक कम ही राज्य की ओर रुख करेंगे, लेकिन अगर अगले साल सब सामान्य रहता है तो शायद 2017 में एक बार फिर रिकॉर्ड तोड़ संख्या में पर्यटक राज्य में आएं।
स्थानीय स्तर पर जम्मू के टैक्सी ऑपरेटरों को कश्मीर में जारी हिंसा से काफी नुकसान हुआ है। रेलवे टैक्सी ऑपरेटर यूनियन के प्रधान देवेंद्र प्रधान की माने तो इस साल 50 प्रतिशत सीजन बर्बाद हो गया। जम्मू रेलवे स्टेशन पर उतरने वाले पर्यटकों से 850 टैक्सी चालकों के परिवारों की रोजी-रोटी चलती है, लेकिन पिछले तीन महीनों से यह टैक्सियां लगभग बंद पड़ी हैं। आम दिनों में जम्मू से रोजाना 20 से 30 गाड़ियां श्रीनगर जाती थीं जिनकी संख्या हाई सीजन में 50 से 60 तक पहुंच गई थी, लेकिन आज ये सभी गाड़ियां छोटे-मोटे टूर लगाकर पेट्रोल खर्च निकाल रही हैं। हालात यह हैं कि चालकों के लिए गाड़ियों की बैंक किश्त चुकाना भी मुश्किल हो गई है।