मंगलवार, 19 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. प्रादेशिक
  4. Devotees worshiped today at Shri Daksheshwar Mahadev Temple in Haridwar
Last Updated : सोमवार, 8 अगस्त 2022 (16:00 IST)

भगवान शिव की ससुराल कहे जाने वाले दक्षेश्वर मंदिर में श्रद्धालुओं ने किया जलाभिषेक

भगवान शिव की ससुराल कहे जाने वाले दक्षेश्वर मंदिर में श्रद्धालुओं ने किया जलाभिषेक - Devotees worshiped today at Shri Daksheshwar Mahadev Temple in Haridwar
हरिद्वार। गंगा नगरी हरिद्वार के कनखल स्थित भगवान शिव की ससुराल कहे जाने वाले श्री दक्षेश्वर महादेव मंदिर में श्रद्धालु लाइनों में लगकर भोलेनाथ का जलाभिषेक कर रहे हैं। यह माना जाता है कि भगवान शिव पूरे सावन के महीने दक्षेश्वर महादेव मंदिर में विराजमान रहते हैं और भक्तों का कल्याण करते हैं। सावन के महीने में श्रद्धालु भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करने यहां दक्ष मंदिर में आते हैं।

वैसे तो सभी शिवालयों में शिव के जलाभिषेक की लम्बी-लम्बी कतारें दिख रही हैं, लेकिन यहां लोग सुबह से अपनी बारी के इंतजार में हैं। सावन के आख़री सोमवार के दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचकर बिल्‍वपत्र, भांग, धतूरा, दूध-दही, शहद और गंगाजल से जलाभिषेक कर रहे हैं। पूरे सावन के महीने कनखल दक्षेश्वर मंदिर में विराजमान रहे भगवान शिव तीन दिन बाद रक्षाबंधन के दिन यहां से कैलाश पर्वत के लिए प्रस्थान कर जाएंगे।

दक्षेश्वर महादेव मंदिर उत्तराखंड के कनखल, हरिद्वार में स्थित है। कनखल को भगवान शिवजी का ससुराल माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा दक्ष की पुत्री देवी सती का विवाह भगवान शिव के साथ हुआ था। मान्यता है कि यह वही मंदिर है, जहां राजा दक्ष ने भव्य यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ में भगवान शिव के अलावा राजा दक्ष ने सभी देवी-देवताओं, ऋषियों और संतों को आमंत्रित किया था।

माता सती अपने पिता द्वारा पति का अपमान नहीं सह पाईं और यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। मान्यता है कि जिस यज्ञ कुण्ड में माता सती ने प्राण त्यागे थे, आज भी वह मंदिर अपने स्थान पर है। कथाओं के अनुसार, जब यह बात महादेव को पता लगी तो उन्होंने गुस्से में राजा दक्ष का सिर काट दिया। देवी-देवताओं के अनुरोध पर भगवान शिव ने राजा दक्ष को जीवनदान दिया। उस पर बकरे का सिर लगा दिया।

वहीं जब राजा दक्ष को अपनी गलतियों का एहसास हुआ तो उन्होंने भगवान शिव से क्षमा मांगी। भोलेनाश ने राजा दक्ष को माफी देते हुए वादा किया कि इस मंदिर का नाम हमेशा उनके नाम से जुड़ा रहेगा। यही वजह है कि इस मंदिर का नाम दक्षेश्वर महादेव मंदिर है। तब भगवान शिव ने घोषणा की थी वे हर साल सावन के महीने में कनखल में ही निवास करेंगे।वहीं अन्य कथाओं के मुताबिक, इस मंदिर का निर्माण रानी धनकौर ने 1810 ई. में करवाया था।

जिसके बाद 1962 में इसका पुनर्निर्माण किया गया। इस मंदिर में भगवान विष्णु के पांव के निशान बने हुए हैं। वहीं दक्ष महादेव मंदिर के निकट गंगा नदी बहती है, जिसके किनारे पर दीक्षा घाट है, जहां शिवभक्त गंगा में स्नान कर भगवान शिव के दर्शन कर आनंद को प्राप्त करते हैं। राजा दक्ष के यज्ञ का विवरण वायु पुराण में दिया गया है।

दक्षेश्‍वर महादेव मंदिर का प्रबंध श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी करता है। यहां यज्ञ कुण्ड, सती शरीर त्याग स्थल, ब्रह्मा, विष्णु देवताओं का स्थल आदि भी है।मन्दिर से पूर्व अथर्ववेद मंदिर है उसके बाद दक्षेश्वर मन्दिर है। मन्दिर के प्रवेश द्वार पर दक्ष यज्ञ कुण्ड लिखा है। मन्दिर की सीढ़ियों का फैलाव काफी लंबा-चौड़ा है। मन्दिर की बाहरी दीवार पर श्लोक भी उत्कीर्ण हैं।

श्री दक्षेश्वर महादेव मंदिर में भगवान शिव ओंकार स्वरूप में विद्यमान हैं। विग्रह में सर्प तांबे का है तथा अन्य भाग सोने के समान लगता है जो पीतल व अन्य धातु का भी हो सकता है। विग्रह पुष्पों से आच्छादित, सुगंधित परिवेश उपस्थित करता है।
ये भी पढ़ें
UP में बहनों को योगी सरकार का तोहफा, रक्षाबंधन पर सिटी बसों में मुफ्त कर सकेंगी यात्रा