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Last Updated : शुक्रवार, 2 दिसंबर 2022 (00:22 IST)

न्यायालय ने तमिलनाडु से पूछा, देशी नस्ल के सांडों के संरक्षण के लिए जल्लीकट्टू कैसे जरूरी?

न्यायालय ने तमिलनाडु से पूछा, देशी नस्ल के सांडों के संरक्षण के लिए जल्लीकट्टू कैसे जरूरी? - Court summons response from Tamil Nadu regarding Jallikattu
नई दिल्ली। तमिलनाडु में 'जल्लीकट्टू' को अनुमति देने वाले कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहे उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को राज्य सरकार से पूछा कि देशी नस्ल के सांडों के संरक्षण के लिए सांडों को वश में करने वाला खेल कैसे जरूरी है? 'जल्लीकट्टू' को 'एरुथाझुवुथल' के रूप में भी जाना जाता है।
 
'जल्लीकट्टू' तमिलनाडु में पोंगल फसल उत्सव के तहत सांडों को काबू में करने का खेल है। न्यायमूर्ति केएम जोसेफ के नेतृत्व वाली 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने राज्य से यह भी पूछा कि क्या किसी जानवर का इस्तेमाल मनुष्यों के मनोरंजन के लिए किया जा सकता है जैसा कि 'जल्लीकट्टू' में किया जाता है।
 
तमिलनाडु की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने शीर्ष अदालत से कहा कि 'जल्लीकट्टू' अपने आप में मनोरंजन नहीं है और जो व्यक्ति अपने सांड का प्रदर्शन करता है वह अपने जानवर की उचित देखभाल करने के साथ ही उसके प्रति करुणा का भाव रखता है।
 
पीठ ने पूछा कि उन्हें इससे क्या मिलता है? वरिष्ठ अधिवक्ता ने जवाब देते हुए कहा कि बाजार में सांड की कीमत बढ़ जाती है। सिब्बल ने जब कहा कि खेल मनोरंजन के बारे में नहीं है, तो पीठ ने पूछा कि मनोरंजन नहीं? फिर लोग वहां क्यों एकत्र होते हैं?
 
उन्होंने जवाब दिया कि यह सांड की शक्ति को प्रदर्शित करता है और यह भी कि इसे कैसे पाला गया है तथा यह कितना मजबूत है। गुरुवार को दिन भर चली सुनवाई के दौरान पीठ ने पूछा कि मुद्दा यह है कि देशी नस्ल के साडों के संरक्षण के लिए 'जल्लीकट्टू' का आयोजन कैसे जरूरी है। पीठ ने इस दावे का समर्थन करने वाले सबूतों के बारे में भी जानना चाहा कि यह एक सांस्कृतिक प्रथा है। सुनवाई बेनतीजा रही और यह 6 दिसंबर को भी जारी रहेगी।(भाषा)
 
Edited by: Ravindra Gupta
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