मारवाड़ में जगाई थी आजादी की अलख
आजाद और समृद्ध राष्ट्र की परिकल्पना को लेकर आजादी के दीवानों ने जो स्वाधीनता आंदोलन चलाया था, उसमें मारवाड़ जोधपुर की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जहाँ तोल आंदोलन से इसकी शुरुआत हुई थी।जोधपुर में स्वतंत्रता आंदोलन का सूत्रपात तत्कालीन महाराजा उम्मेदसिंह के शासनकाल में वर्ष 1920 में 'तोल आंदोलन' से हुआ। उस समय सरकार के एक निर्णय के अनुसार मारवाड़ में अस्सी तोले का एक सेर हो गया, जो कि पूर्व में 100 तोले का होता था।इस निर्णय के विरोध में मारवाड़ सेवा संघ संस्था के तत्वावधान में नागरिकों ने आंदोलन चलाया। आखिरकार तत्कालीन रियासती सरकार ने अपना आदेश बदलकर 100 तोले का एक सेर कर दिया। जोधपुर राज्य के इतिहास में सरकार के खिलाफ नागरिकों की यह पहली विजय थी।मारवाड़ हितकारिणी सभा ने सन 1924 तक पशुओं की निकासी को लेकर आंदोलन चलाया। सभा के प्रमुख कार्यकर्ता चाँदमल सुराणा, प्रतापचन्द सोनी और शिवकरण जोशी को देश निकाला दे दिया गया। सरकार ने सभा के अन्य कार्यकर्ताओं जयनारायण व्यास, आनंदराज सुराणा, कस्तूर करण, बच्छराज व्यास तथा अब्दुल रहमान को जालसाज करार देकर उन्हें पुलिस निगरानी में रखा।मारवाड़ हितकारिणी सभा के सितंबर 1928 में बुलाए गए मारवाड़ लोक राज्य परिषद के प्रथम अधिवेशन पर जोधपुर सरकार ने रोक लगा दी। सभा ने इसके विरोध में आंदोलन किया और जयनारायण व्यास, भँवरलाल सर्राफ तथा आनंदराज सुराणा को गिरफ्तार कर लिया गया। तीनों को सजा सुनाई गई, लेकिन मार्च 1931 में गाँधी इर्विन समझौते के तहत तीनों को छोड़ दिया गया।