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Written By WD Feature Desk
Last Modified: मंगलवार, 13 अगस्त 2024 (14:53 IST)

History of raksha bandhan: रक्षा बंधन कब से और क्यों मनाया जाता है, जानें इतिहास

Rakhi 2024
Rakhi 2024
History of raksha bandhan: हिन्दू कैलेंडर के अनुसार हर वर्ष श्रावण माह की पूर्णिमा को रक्षा बंधन का त्योहार मनाया जाता है। इस बार यह त्योहार 19 अगस्त 2024 सोमवार के दिन रहेगा। रक्षाबंधन पर राखी बांधे की शुरुआत कब और कैसे हुए? क्या आप राखी बांधने का इतिहास जानते हैं? आओ जानते हैं रक्षाबंधन का संपूर्ण इतिहास।
 
1. मणिबंध से राखी तक का सफर : हाथों की कलाई को मणिबंध कहते हैं। वैदिक काल में यज्ञ के दौरान, मांगलिक कार्यों के दौरान एक सूत का धागा बांधकर संकल्प मंत्र पढ़ा जाता था, जो आज भी प्रचलन में है। इस सूत के धागे को मणिंबध कहते थे। इस मणिबंध का विकसित रूप मौली है। पहले मात्र सू‍त के तीन सफेद धागे ही हल्दी में रंग कर बाधें जाते थे परंतु बाद में तीनों धागे अलग अलग रंगे के हो गए। लाल, पीले और हरे रंग में रंगे जाने लगे थे। कभी कभी यह पांच रंगी में होते हैं। जिसमें नीला और सफेद रंग भी होता है। तीन रंग त्रिदेव के प्रतीक और 5 रंग पंचदेव के प्रतीक माने गए। मौली को हाथ की कलाई, गले और कमर में बांधा जाता है। कलाई पर बांधे जाने के कार इसे कलावा कहते हैं। इस ही मौली और नाड़ा भी कहते हैं। 
 
मणिबंध, मौली या कलावा सभी को संकल्प और रक्षा सूत्र कहा जाता है। यदि मन्नत मांगी है तो इस मन्नत का धागा भी कहते हैं। उक्त रक्षा सूत्र के कारण ही रक्षा बंधन पर राखी का प्रचनल हुआ। भाई-बहन के इस पवित्र त्योहार को प्रचीनकाल में अलग रूप में मनाया जाता था। पहले सूत का धागा होता था, फिर नाड़ा यानी मौली बांधने लगे, फिर नाड़े जैसा एक फुंदा बांधने का प्रचलन हुआ और बाद में पक्के धागे पर फोम से सुंदर फुलों को बनाकर चिपकाया जाने लगा जो राखी कहलाने लगी। वर्तमान में तो राखी के कई रूप हो चले हैं। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चांदी जैसी मँहगी वस्तु तक की हो सकती है।
 
2. सिंधु घाटी सभ्यता : वर्तमान खोज के अनुसार सिंधु घाटी की सभ्याता 12 हजार ईसा पूर्व अस्तित्व में आई थी। रक्षा बंधन का इतिहास सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ा हुआ है। इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि तब लोग पूर्णिमा के दिन एक दूसरे को मौली बांधते थे।
 
3. कृष्ण और द्रोपदी: एक उदाहरण कृष्ण और द्रोपदी का माना जाता है। कृष्ण भगवान ने राजा शिशुपाल को मारा था। युद्ध के दौरान कृष्ण के बाएं हाथ की उंगली से खून बह रहा था, इसे देखकर द्रोपदी बेहद दुखी हुईं और उन्होंने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर कृष्ण की उंगली में बांध दी, जिससे उनका खून बहना बंद हो गया। कहा जाता है तभी से कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन स्वीकार कर लिया था। सालों के बाद जब पांडव द्रोपदी को जुए में हार गए थे और भरी सभा में उनका चीरहरण हो रहा था, तब कृष्ण ने द्रोपदी की लाज बचाई थी।
 
4. इंद्राणी एवं इंद्र : और पीछे चलें तो भविष्य पुराण की एक कथा के अनुसार एक बार देवता और दैत्यों (दानवों) में 12 वर्षों तक युद्ध हुआ परन्तु देवता विजयी नहीं हुए। इंद्र हार के भय से दु:खी होकर देवगुरु बृहस्पति के पास विमर्श हेतु गए। गुरु बृहस्पति के सुझाव पर इंद्र की पत्नी महारानी शची ने श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन विधि-विधान से व्रत करके रक्षासूत्र तैयार किए और स्वस्तिवाचन के साथ ब्राह्मण की उपस्थिति में इंद्राणी ने वह सूत्र इंद्र की दाहिनी कलाई में बांधा। जिसके फलस्वरुप इन्द्र सहित समस्त देवताओं की दानवों पर विजय हुई।
5. यम और यमुना : भाई और बहन के प्रतीक रक्षा बंधन से जुड़ी एक अन्य रोचक कहानी है, मृत्यु के देवता भगवान यम और यमुना नदी की। पौराणिक कथाओं के मुताबिक यमुना ने एक बार भगवान यम की कलाई पर धागा बांधा था। वह बहन के तौर पर भाई के प्रति अपने प्रेम का इजहार करना चाहती थी। भगवान यम इस बात से इतने प्रभावित हुए कि यमुना की सुरक्षा का वचन देने के साथ ही उन्होंने अमरता का वरदान भी दे दिया। साथ ही उन्होंने यह भी वचन दिया कि जो भाई अपनी बहन की मदद करेगा, उसे वह लंबी आयु का वरदान देंगे।
 
6. राजा बलि और माता लक्ष्मी : रक्षा बंधन का इतिहास हिंदू पुराण कथाओं में है। वामनावतार नामक पौराणिक कथा में रक्षाबंधन का प्रसंग मिलता है। कथा के अनुसार राजा बलि ने यज्ञ संपन्न कर स्वर्ग पर अधिकार का प्रयत्‍‌न किया, तो देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। विष्णु जी वामन ब्राह्मण बनकर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए। गुरु शुक्राचार्य के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। वामन भगवान ने तीन पग में आकाश-पाताल और धरती नाप कर राजा बलि को रसातल में भेजकर कहा कि मैं तुम्हारी दानवीरता और भक्ति से प्रसन्न हूं। मांगो क्या मांगते हो। उसने अपनी भक्ति के बल पर विष्णु जी से हर समय अपने सामने रहने का वचन मांग लिया। यह देख और सुनकर माता लक्ष्मी जी इससे चिंतित हो गई। नारद जी की सलाह पर लक्ष्मी जी बलि के पास गई और रक्षासूत्र बांधकर उसे अपना भाई बना लिया। बदले में उन्होंने अपने पति की मुक्ति का उपहार मांगा। इस तरह वे विष्णु जी को अपने साथ ले आई। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। तभी से रक्षा बंधन का पव मनाने की शुरुआत हुई।
 
इसीलिए रक्षा बंधन पर राखी बांधते वक्त यह मंत्र बोला जाता है-
 
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वां अभिबद्धनामि रक्षे मा चल मा चल।।
इस मंत्र का भावार्थ है कि दानवों के महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे, उसी से तुम्हें बांधता हूँ। हे रक्षे! (रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो।