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Last Modified: नई दिल्ली , रविवार, 15 जून 2025 (17:26 IST)

Rajasthan में सोलर प्लांट की आड़ में खेजड़ी वृक्ष की बलि, एक और अमृता बिश्नोई की तलाश

Khejdi harvesting under the guise of solar plant in Rajasthan
थार रेगिस्तान की कठोर जलवायु परिस्थितियों में अस्तित्व का प्रतीक और राजस्थान के राज्य वृक्ष का दर्जा प्राप्त 'खेजड़ी' (प्रोसोपिस सिनेरिया) अब अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहा है। खेजड़ी को एक और अमृता बिश्नोई की तलाश है, जिन्होंने 1730 ई. में इन वृक्षों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी।
 
'राजस्थान का गौरव' और रेगिस्तान के 'कल्प वृक्ष' के रूप में जाना जाने वाला खेजड़ी ‘रूट बोरर’ नामक जीव और फफूंद संक्रमण के चलते सूखने के कारण लंबे समय से अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों से यह मानव जनित खतरे - सौर संयंत्र - के कारण प्रभावित हुआ है, जिसकी वजह से इन पेड़ों का बड़े पैमाने पर सफाया हो रहा है।
यह खतरा उस समय और बढ़ हो गया जब पिछले वर्ष फलौदी जिला प्रशासन ने बाप तहसील के अंतर्गत बड़ी सिड में सौर संयंत्र स्थल पर दबे 47 खेजड़ी के पेड़ बरामद किए।
 
पेड़ों की अंधाधुंध कटाई के खिलाफ फलौदी में प्रदर्शन करने वाले विभिन्न बिश्नोई संगठनों के कार्यकर्ताओं ने दावा किया कि उनके पास उपग्रह से ली गईं तस्वीरें हैं जो उनके इस दावे की पुष्टि करते हैं कि जैसलमेर, फलौदी, जोधपुर और बीकानेर जिलों में सौर संयंत्रों के लिए हजारों बीघा भूमि साफ की गई है।
 
इस सप्ताह के आरंभ में, जोधपुर के निकट मंदिरों के शहर और उभरते सौर ऊर्जा संयंत्र स्थल ओसियां ​​से भी इसी प्रकार के प्रदर्शन की खबर मिली थी, जहां अन्य प्रजातियों जैसे रोहिड़ा के साथ-साथ खेजड़ी के लगभग 150 पेड़ों को काटा गया था, जिसके फूल को राजस्थान में राज्य पुष्प का दर्जा प्राप्त है।
बिश्नोई टाइगर फोर्स के संगठन सचिव ओम प्रकाश लोल ने कहा कि यदि पेड़ों के “हत्यारों” के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई तो वे आंदोलन शुरू करेंगे। बिश्नोई टाइगर फोर्स में मुख्य रूप से बिश्नोई समुदाय के सदस्य शामिल हैं, जो पर्यावरण और वन्यजीव समर्थक रुख के लिए जाने जाते हैं।
 
लोल ने दावा किया कि जोधपुर के पास मथानिया के जुड़ खारी गांव में भी खेजड़ी के पेड़ों को इसी तरह से हटाया जा रहा है, जहां 300 बीघा भूमि पर सौर ऊर्जा संयंत्र लगाया जा रहा है।
 
क्षेत्र में सौर संयंत्रों का दायरा बढ़ने के साथ इस तरह के प्रदर्शन और चेतावनियां आम हो गई हैं, लेकिन इनसे पेड़ों की अंधाधुंध और बेरोकटोक कटाई पर रोक लगाने में सफलता नहीं मिल पाई है। इनपुट भाषा Edited by: Sudhir Sharma 
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