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भगवान झूलेलाल कौन हैं? जानिए उनकी कहानी
मंगलवार,मार्च 21, 2023
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Naveoz Parsi new year 2023: इस वर्ष नवरोज 21 मार्च 2023, दिन मंगलवार को मनाया जा रहा है। पारसी समुदाय में नौरोज या नवरोज पर्व को 'नवरोज उत्सव' के रूप में मनाया जाता है तथा अग्नि मंदिरों में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं। इस दिन पारंपरिक वस्त्र धारण करके ...
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अरब (Arab Nations) के प्राचीन धर्मों के बीच सबसे पहले यहूदी का प्रचलन प्रारंभ हुआ। इसके बाद ईसाई धर्म अस्तित्व में आया और अंत में इस्लाम। तीनों ही धर्मों में धार्मिक मान्यता और तीर्थों को लेकर कई बार जंग होती रही है, जो आज भी जारी है। आओ जानते हैं ...
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पतेती उत्सव पारसी लोगों का पर्व है। पारसी समुदाय के लोग पतेती उत्सव को नववर्ष के रूप में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाते हैं। पारसी समुदाय के लोग जौरास्टर कैलेंडर के नए साल से पूर्व की शाम को मनाते हैं।
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पारसी समाज में आज भी त्योहार उतने ही पारंपरिक तरीके से मनाए जाते हैं, जैसे कि वर्षों पहले मनाए जाते थे। जो बात पारसी नववर्ष को खास बनाती है, वह यह कि ‘नवरोज’ समानता की पैरवी करता है।
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माता गायत्री के बारे में पुराणों में अलंकारिक कथाओं का वर्णन मिलता है। लेकिन कई कथाओं को पढ़ने के बाद यह समझ में आता है कि एक गायत्री तो वो थीं जो स्थूल रूप में एक देवी हैं और दूसरी वो जो चैतन्य रूप में इस ब्रह्मांड की आद्यशक्ति हैं। आओ जानते हैं ...
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कथा भगवान झूलेलालजी के अवतरण की है। शताब्दियों पूर्व सिन्धु प्रदेश में मिर्ख शाह नाम का एक राजा राज करता था। राजा बहुत दंभी तथा असहिष्णु प्रकृति का था।
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झूलेलाल असल में एक संत हुए हैं जिनकी पूजा सिंधी समाज अपने ईष्ट के रूप में करता है। हालांकि हिंदू धार्मिक ग्रंथों में झूलेलाल को जल के देवता यानि वरुण देव का अवतार माना जाता है। सिंधी समाज में मान्यता है कि झूलेलाल का अवतरण धर्म की रक्षा के लिये हुआ ...
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भारत वर्ष में इस समुदाय का एक प्रतीक 'कमल मंदिर' है। यह उपासना मंदिर मानवता को संदेश देता है कि मानव भौतिक जगत में रहते हुए भी कमल के फूल की भांति रहे।
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19 दिनों के कड़े उपवास के बाद 20 मार्च को नववर्ष मनाएंगे। दुनिया भर के बहाई धर्म के अनुयायी पूरे इतिहास के दौरान ईश्वर ने मानव जाति के पास ’दिव्य शिक्षकों’ की एक श्रृंखला भेजी है- जो ईश्वर के अवतारों के रूप में जाने जाते हैं, जिनकी शिक्षाओं ने सभ्यता ...
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दुनिया की आबादी लगभग 7 अरब से ज्यादा है जिसमें से 2.2 अरब ईसाई और 1.6 मुसलमान है और लगभग इतने ही बौद्ध। पूरी दुनिया में ईसाई, मुस्लिम, यहूदी और बौद्ध राष्ट्र अस्त्वि में हैं। उक्त धर्मों की छत्र-छाया में कई जगहों पर अल्पसंख्यक अपना अस्तित्व खो चुके ...
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सैयदना ताहेर सैफुद्दीन के इंतकाल होने पर सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन अल-दाइल-अल मुतलक की गद्दी पर 52वें गद्दीनशीन जलवा अफरोज हुए।
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भारत में रहने वाले पारसी समुदाय के लोगों द्वारा अगस्त माह में नववर्ष मनाया जाता है, पारसी नववर्ष को 'नवरोज' कहा जाता है। पारसी समुदाय के लिए पारसी नववर्ष आस्था और उत्साह का संगम है।
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ईरान के प्राचीन धर्म के संस्थापक जरथुस्त्र से जुड़ा एक प्रसंग है। इस प्रसंग के अनुसार प्राचीन फारस के बल्ख राज्य का राजा गुस्तास्प पहली ही मुलाकात में उनके विचारों से इतना प्रभावित हो गया कि
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पारसी समाज में आज भी त्योहार उतने ही पारंपरिक तरीके से मनाए जाते हैं, जैसे कि वर्षों पहले मनाए जाते थे। जो बात पारसी नववर्ष को खास बनाती है, वह यह कि ‘नवरोज’ समानता की पैरवी करता है। इस बार 16 अगस्त 2020 को पारसी नववर्ष मनाया जा रहा है।
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भगवान बुद्ध के एक भारतीय भिक्षु का नाम है बोधिधर्म। बोधिधर्म के माध्यम से ही चीन, जापान और कोरिया में बौद्ध धर्म का विस्तार हुआ था। 520-526 ईस्वीं में चीन जाकर उन्होंने चीन में ध्यान संप्रदाय की नींव रखी थी। यही ध्यान पहले च्यान फिर झेन हो गया।
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'ईश्वर एक है, धर्म एक है, मानवता की एकता हो यह बहाई धर्म का खास संदेश है। प्रतिवर्ष 21 मार्च को बहाई नववर्ष मनाया जाता है।
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प्रतिवर्ष 21 मार्च को पारसी नववर्ष 'नवरोज' मनाया जाता है। असल में पारसियों का केवल एक पंथ-फासली-ही नववर्ष मानता है, मगर सभी पारसी इस त्योहार में सम्मिलित होकर इसे बड़े उल्लास से मनाते हैं, एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं
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अगस्त माह में पारसी समाज का नववर्ष मनाया जाता है। इस वर्ष यह त्योहार 17 अगस्त 2019 को मनाया जा रहा है...
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शनिवार, 17 अगस्त 2019 पारसी नववर्ष मनाया जा रहा है। यूं तो भारत के हर त्योहार में घर सजाने से लेकर मंदिरों में पूजा-पाठ करना और लोगों का एक-दूसरे को बधाई देना शामिल है।
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