HIGHLIGHTS
• भगवान झूलेलाल का जन्मोत्सव पर्व।
• भगवान झूलेलाल कौन हैं, जानें उनकी कहानी।
• भगवान झूलेलाल का अवतरण दिवस।
Jhulelal Jayanti : Jhulelal Jayanti : सिंधी समाज का प्रमुख पर्व चेटी चंड/ चेटीचंड प्रतिवर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष 20 पर्व 10 अप्रैल 2024, दिन बुधवार को मनाया जा रहा है। आइए जानते हैं सिंधी नव वर्ष चेटीचंड पर्व की 5 अनुसनी बातें-
1. हर साल चैत्र शुक्ल द्वितीया तिथि को चेटी चंड और भगवान झूलेलाल की जयंती के रूप में मनाया जाता है। सिंधी समुदाय का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन झूलेलाल महोत्सव ही माना जाता है। इस दिन सिर्फ मन्नत मांगने पर ज्यादा ध्यान केंद्रीत न करते हुए भगवान झूलेलाल द्वारा बतलाए गए मार्ग पर चलने का प्रण लेना ही इस पर्व का उद्देश्य है, क्योंकि भगवान झूलेलाल ने दमनकारी मिर्ख बादशाह का दमन नहीं, केवल मान-मर्दन किया था। यानी उनका कहना था कि सिर्फ बुराई से नफरत करो, बुरे से नहीं।
2. चेटीचंड सिंधी समुदाय का सबसे बड़ा पर्व है। मान्यतानुसार इन दिन भगवान झूलेलाल वरुण देव का अवतरण करके अपने भक्तों के कष्ट दूर करने आते हैं। कहा जाता है कि जो लोग 40 दिनों तक विधि-विधान से भगवान झूलेलाल की पूजा-अर्चना करता है, उनके सभी दुख दूर हो जाते हैं।
3. मान्यतानुसार भगवान झूलेलाल द्वारा बताए गए स्थान पर ही चैत्र सुदी दूज के दिन एक बच्चे ने जन्म लिया और जिसका नाम उदय रखा गया था। उनके चमत्कारों के कारण ही बाद में उन्हें झूलेलाल के नाम से जाना गया।
4. चेटी चंड से पहले सिंधी समुदाय जो चालिया पर्व मनाते हैं, उसमें खास तौर पर मंदिरों में जल रही अखंड ज्योति की विशेष पूजा-अर्चना करके हर शुक्रवार के दिन भगवान का अभिषेक और आरती करने की परंपरा है।
5. सिंधी धर्म के मान्यता के अनुसार चेटीचंड के दिन ही भगवान झूलेलाल का अवतरण हुआ था। अत: यह सिंधी समाज का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण पर्व होने के कारण सिंधी लोग चालीहा उत्सव मनाते हैं यानी 40 दिन तक व्रत-उपवास रखकर उनकी आराधना करते हैं। और इसी कारण भगवान झूलेलाल के जन्म के उपलक्ष्य में ही चेटीचंड पर्व मनाया जाता है।
कैसे मनाते हैं पर्व चेटीचंड पर्व :
- चेटीचंड पर्व की शुरुआत सुबह टिकाणे यानी मंदिरों के दर्शन एवं बुजुर्गों के आशीर्वाद से होती है।
- इन व्रतों के दिनों में महिलाएं प्रतिदिन अपने घर से 4 या 5 मुखी आटे का दीपक लेकर भगवान की पूजा करती हैं।
- जिनकी कोई मनोकामना हो वे महिलाएं अपने घर से चावल, इलायची, मिश्री व लौंग लाकर भगवान झूलेलाल का पूजन करती हैं।
- इतना ही नहीं जिनकी मन्नत या मुराद पूरी हो गई हैं वे लोग बाराणे यानी आटे की लोई में मिश्री, सिंदूर व लौंग तथा आटे के दीये बनाकर पूजा करके उसे जल में प्रवाहित करते हैं। जिसका मतलब यह समझा जाता है कि यह मुराद पूर्ण होने पर ईश्वर के प्रति आभार व्यक्त करने के साथ ही जल के जीवों के भोजन की व्यवस्था करना भी है।
- इस दिन नदी किनारे नवजात शिशुओं का मुंडन करवाया जाता है।
- हालांकि बदलते समय के अनुसार नदियों को प्रदूषित होने से बचाने के लिए अब यह परंपरा टिकाणों पर होने लगी है।
- दिन भर पूजा-अर्चना के बाद शाम होते-होते लोग शोभायात्रा में शामिल होने या अपने-अपने अंदाज से चेटीचंड मनाने निकल पड़े थे। यह सिलसिला देर रात तक जारी रहता है।
- भगवान झूलेलाल की शोभायात्रा में दूर-दराज के निवासी भी आते हैं।
- चेटीचंड या भगवान झूलेलाल के जन्मोत्सव पर्व में जल की आराधना करने का विशेष महत्व है।
- प्रत्येक सिंधी परिवार अपने घर पर 5 दीपक जलाकर और विद्युत सज्जा कर चेटीचंड को दीपावली की तरह ही मनाया जाता हैं।
- खास करके चेटी चंड उत्सव जीवन को सुखी तथा लोक कल्याण भी भावना से यह उत्सव मनाया जाता है।
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