पतेती उत्सव क्यों मनाया जाता है, पढ़ें महत्व
पतेती उत्सव पारसी लोगों का पर्व है। पारसी न्यू ईयर यानी पारसी नववर्ष के दिन से ही ईरानियन कैलेंडर के नए साल की शुरुआत होती है। पारसी समुदाय के लोग पतेती उत्सव को नववर्ष के रूप में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाते हैं। पारसी समुदाय के लोग जौरास्टर कैलेंडर के नए साल से पूर्व की शाम को मनाते हैं।
पतेती नववर्ष का त्योहार दुनिया के कई हिस्सों में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है जिसमें ईरान, पाकिस्तान, इराक, बहरीन, ताजिकिस्तान, लेबनान तथा भारत में भी यह दिन विशेष तौर पर मनाया जाता है। इस दिन पुरुष पारंपरिक पोशाक, दागली, पहनते हैं और महिलाएं गारा साड़ी पहनती हैं। इस उत्सव के दिन पारसी समुदाय के लोग अच्छे विचार और अच्छे शब्द बोलने तथा अच्छे कर्म करने को सबसे अधिक महत्व देते हैं।
पारसी समुदाय के नववर्ष को पतेती, जमशेदी नवरोज और नवरोज जैसे कई नामों से पहचाना जाना जाता है। पारसी समुदाय के लिए पतेती या पारसी नववर्ष आस्था और उत्साह का संगम है। यह दिन पारसियों के लिए सबसे बड़ा होता है। इस पर्व पर घर की साफ-सफाई कर रंगोली बनाई जाती है, इस दिन लोग घरों में फालूदा, धनसक, रवा और केसर का पुलाव, अकूरी जैसे पारंपरिक व्यंजन बनाते हैं।
इस अवसर पर समाज के सभी लोग पारसी धर्मशाला में इकट्ठा होकर पूजन करते हैं। समाज में वैसे तो कई खास मौके होते हैं, जब सब आपस में मिलकर पूजन करने के साथ खुशियां भी बांटते हैं। पारसी समुदाय के मुख्यतः 3 मौके साल में सबसे खास हैं। एक खौरदाद साल, प्रौफेट जरस्थ्रु का जन्मदिवस और तीसरा 31 मार्च। इराक से कुछ सालों पहले आए अनुयायी 31 मार्च को भी नववर्ष मनाते हैं।
भारत में पारसी समुदाय अपने नए साल को शहंशाही पंचांग के मुताबिक मनाते हैं। इसे पतेती और जमशेदी नवरोज के नाम से भी जाना जाता है। इसलिए यहां नवरोज त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व से जुड़ी पारसी समुदाय की बेहद प्रचलित लोक कथा है। इसके अनुसार ऐसा कहा जाता है कि इस दिन शहंशाह जमशेद ने पारस यानी आज का ईरान की जनता को प्राकृतिक आपदा से बचाया था। उन्होंने इसी दिन से पारसी कैलेंडर की शुरुआत की थी। तब से पारसी समुदाय इस दिन को नवरोज के रूप में मनाते आ रहे हैं।
महाराष्ट्र, गुजरात में पारसी समुदाय के लोग रहते हैं, जो इस त्योहार को बड़ी उत्सुकता के साथ इसे मनाते है। इस दिन गिफ्ट्स, ग्रीटिंग्स और शुभकमानाएं दी जाती है।