शुक्रवार, 22 नवंबर 2024
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  4. Young poet Adnan Kafeel refused to go to 'Sahitya Aaj Tak'

युवा कवि अदनान कफील ने ‘साहित्‍य आजतक’ में जाने से किया इनकार, दो खेमों में बंटा साहित्‍य जगत, सोशल मीडिया में छिड़ी बहस

adnan kafeel
इंदौर, साहित्‍य आज तक को लेकर सोशल मीडिया में बड़ा हंगामा हो गया है। लेखक, साहित्‍यकार और कवि दो धड़ों में बंट गए हैं। दरअसल इस विवाद की शुरूआत हुई युवा कवि अदनान कफील दरवेश के आज तक के साहित्‍य आयोजन में नहीं जाने की घोषणा के बाद। अदनान की इस पोस्‍ट के बाद ट्विटर से लेकर फेसबुक तक बहस शुरू हो गई है।

दरअसल, आज तक साहित्‍य का एक आयोजन करता है, जिसे साहित्‍य आज तक नाम दिया गया है। इस आयोजन में देशभर के कवि और लेखकों को बुलाया जाता है। आयोजन में कविता पाठ के साथ ही कई तरह के विमर्श, परिचर्चा और मुद्दों पर बातचीत होती है।

इस बार इस साहित्‍यिक आयोजन में कवि अदनान कफील दरवेश को भी आमंत्रित किया गया था। लेकिन ऐन मौके पर उन्‍होंने फेसबुक पर घोषणा कर दी कि वे साहित्‍य आजतक में नहीं जा रहे हैं।

फेसबुक पर अदनान ने लिखा...
तुझसे तो कुछ कलाम नहीं लेकिन ऐ नदीम, मेरा सलाम कहियो अगर नामःबर मिले’
दोस्तों (?) मैं 'साहित्योत्सव आज तक' में शिरकत नहीं कर रहा। मेरा सत्र गीत चतुर्वेदी और व्योमेश शुक्ल के साथ होना था। अपने चुटकुलों से मेरा नाम बराय-करम ख़ारिज कर दें। हिंदी के 'शातिर चुड़ुक्के युवा कवियो' और कुण्ठित बुढ़भसो! प्रतिबद्धता का दर्स मुझे आपसे लेने की अभी ज़रूरत नहीं है। जिन पान की पीकों को मैं थूक देता हूं उनकी रौशनाई से भी आप लिखकर सुर्ख़रू हो जाएंगे। आगे बहुत से अंधड़ आएंगे। लेकिन आपकी किश्तियों के हुजूम से दूर बहुत दूर मेरी किश्ती चमकेगी। ख़्वाह कितना भी अंधेरा क्यूं न हो।
बक़ौल ग़ालिब :
‘सौ साल से है पेशा-ए-आबा सिपहगिरी,
इक शायरी ही ज़रिया-ए-इज़्ज़त नहीं मुझे


यह लिखने के बाद कई लोगों ने उनकी इस पोस्‍ट को शेयर कर उनकी तारीफ की। हालांकि कई लोग उनके खिलाफ भी उतर आए और उनसे वहां न जाने की वजह पूछने लगे। लोगों ने यह सवाल भी खडे किए कि अगर अदनान को साहित्‍य उत्‍सव में जाना ही नहीं था तो उन्‍होंने ऐन मौके पर मना क्‍यों किया। आज तक की तरफ से पोस्‍टर बन जाने तक उन्‍होंने इंतजार क्‍यों किया। कई लेखक और साहित्‍यकारों ने उनसे पूछा कि जाहिर है कि पहले आज तक ने आपसे साहित्‍य आज तक में आपको बुलाने के लिए बात की होगी, तब मना क्‍यों नहीं किया गया।

आखिर क्‍या है वजह?
दरअसल, फोरी तौर पर देखा जाए तो अदनान के साहित्‍य आजतक में नहीं जाने का स्‍पष्‍ट कारण नजर नहीं आ रहा है। हालांकि इसके बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि साहित्‍य आजतक में रजनीगंधा के विज्ञापन और उसकी स्‍पॉसंरशिप की वजह से उन्‍होंने मना किया। कोई इसे गोदी मीडिया यानी आजतक चैनल के निष्‍पक्ष पत्रकारिता नहीं करने और सरकार के पक्ष में खबरें दिखाने से जोड रहा है। वजह चाहे जो हो लेकिन इसे लेकर साहित्‍य जगत में एक बड़ा हंगामा हो गया है और साहित्‍य आयोजनों को लेकर एक बहस छिड़ गई है।

किसने क्‍या कहा...?
वाणी प्रकाशन की पूर्व एसोसिएट एडिटर और पाखी की पूर्व असिस्‍टेंट एडिटर शोभा अक्षरा ने अपनी वॉल पर लिखा... रूमी को पढ़ने वाले जानते हैं कि दरवेश का ज़िक्र आते ही फिज़ा में रूहानियत क्यों छा जाती है! अदनान कफ़ील दरवेश की बात को समझने की शुरुआत यहीं से होनी चाहिए। अदनान, कवि हैं। शेर-ओ-शायरी या सुख़न, कविता के ही रूप हैं जिसमें अदनान के हिस्से एक बड़ा हासिल है। अदनान ने आज से होने वाले 'साहित्य, आज तक' कार्यक्रम में न्योते के बावजूद जाने से साफ़ इनकार कर दिया है। इसके जो प्रमुख कारण हो सकते हैं, कवि की दृष्टि में चैनल का पत्रकारिता के प्रति रीढ़विहीन रवैया और दूसरा आयोजन में रजनीगंधा का प्रचार मंच होना। या तीसरा ठोस कोई अन्य तर्क भी हो सकता है। अब पहले संभावित तर्क, चैनल की पत्रकारिता पर सवाल और आरोप के संदर्भ में कवि को अपना मत स्पष्ट करना चाहिए। शायद पोस्टर में दर्ज़ ये लकीरें ही अपनी बात कहने के लिए काफ़ी हैं। पर अदनान ने मंच पर जाकर अपने इस निर्णय की बात को पुरजोर तरीक़े से रखने को क्यों नहीं चुना? यह एक पक्ष का प्रश्न ज़रूर है।

शशि भूषण ने लिखा...
अदनान कफील दरवेश ने भी वही राह चुनी जो आजकल कार्यक्रमों में जाने से इंकार करने की सफल सुगम अधिक चलन वाली राह है : पहले स्वीकार कर लें। फिर चर्चा से चुपचाप रहें। कार्ड वगैरह छप जाने दें। मंच तैयार हो जाने दें। कार्यक्रम शुरू होने से कुछ घंटे पहले जब आयोजक कुछ न कर पाएं एक ढंग की बात बनाकर इनकार कर दें।
इस स्वीकार वाले इनकार के दो लाभ हैं। स्वीकार की प्रसिद्धि जितनी मिलनी होती है मिल जाती है। अंत में इनकार की प्रसिद्धि भी मिल जाती है। आम के आम गुठलियों के दाम। एक पंथ दो काज। कोई कुछ नहीं कर पाता। दुनिया कहती है कुछ भी कहिए इनकार अच्छा है। साहस का काम है। इस संबंध में प्रसिद्ध की सहायक दो कहावत भी हैं- न रूख से रेड़ा रूख, न मामा से कनमा मामा ठीक।

युवा लेखक और कवि संजय शेफर्ड ने फेसबुक पर अपनी प्रतिक्रिया यूं दी, उन्‍होंने लिखा.. मुझे तो यह बहुत ही सकारात्मक पहलू लगता है कि रजनीगंधा किसी साहित्यिक कार्यक्रम के लिए पैसे दे रहा है, यह चाहता है की साहित्यिक गतिविधियां चलती रहें तो इसमें बुरा क्या है? एक पल को चलो मान ही लें की रजनीगंधा जैसी चीज सही नहीं है, इस आर्थिक योगदान के पीछे प्रचार प्रसार और बिजनेस का विस्तार ही ऑब्जेक्टिव है। पर भाई कार्यक्रम का विरोध क्यों? यह तो आपको बातचीत और संवाद का मौका दे रहा है। यह एक ऐसा मंच दे रहा जहां से आप साहित्यिक, सामाजिक, आर्थिक आप जिस तरह के विषय को उठाना चाहें उठा सकते हैं? और पुरजोर तरीके से उठा सकते हैं। फिर इतना हो हल्ला क्यों? भाई इस साहित्यिक झमेले से इतर सीधी सादी बात यह है कि अगर कोई बुरा आदमी भी अच्छा काम करता है तो उसका स्वागत होना चाहिए, विरोध नहीं। खैर, डेमोक्रेसी है, विरोध का हक तो हर किसी के पास है। कोई कर रहा है तो भी उसकी अपनी चॉइस है।

हिंदीनामा के संस्‍थापक अंकुश कुमार ने लिखारजनीगंधा तो प्रतिवर्ष ही साहित्य आज तक को स्पॉन्सर करता है। जो साहित्य आज तक में गए हैं और कई बार हो चुके इस आयोजन में रजनीगंधा के होर्डिंग्स नहीं देख पाए उनके प्रति भारी संवेदनाएं हैं।

लेखिका रश्‍मि भारद्वाज ने लिखा
तुम अपना निर्णय किसी और के दबाव में क्यों ले रहे अदनान, जो तुम्हें उचित लगे, जो तुम्हारी अन्तरात्मा कहे, वह करो।

लेखिका गीताश्री ने लिखा...  
एक दिन पहले? कल आपका सत्र था। आपने एक महीने पहले सहमति दी। परसों और कल में क्या ऐसा हुआ? कारण तो बताए।

वीणा वत्‍सल सिंह ने कहा,
आपकी भावना की कद्र करती हूं।अगर आप साहित्य तक के मंच पर से अपनी यह बात कहते और भी अच्छा होता।लेकिन यह निर्णय भी स्वागत योग्य और प्रेरक है।

सतलज राहत ने लिखा,
तो भाई यही बात स्टेज से कह देते जोरदार तरीके से दूर तक पहुंचती.... क्या आयोजकों ने बिना आपसे बात किए आपको शामिल कर लिया था ??? कोई मेल वगेरह नही आया था आपको??

अतीक किदवई ने उनसे पूछा,
ये सब क्या है? नाम वापस क्यों लेना इसमें जाना बुरा है क्या? बाकी इस मंच का विरोध क्यो हो रहा मुझे नही पता, पर इन कार्यक्रमों से लोगों में लिखने का उत्साह पैदा होता है

डॉ सुनीता ने लिखा, हां, से पहले क्यों निर्णय नहीं लिए थे अदनान!
बड़े आयोजकों का तो कुछ नहीं लेकिन छोटे बेचारे मुफत में मारे जाते हैं। जो भी है। शुभकामनाएं।

कुल मिलाकर अदनान के इस फैसले के बाद साहित्‍य जगत में बहस छिड़ गई है, हालांकि अब तक भी यह साफ नहीं हो पाया कि अदनान ने ये फैसला क्‍यों लिया, लेकिन इस मुद्दे को लेकर साहित्‍य बिरादरी दो खेमों में बंटकर अपनी अपनी सहमति और असहमति जाहिर कर रही है।
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