राहुल गांधी से कांग्रेस को मिल सकेगी संजीवनी?
कांग्रेस नेता राहुल गांधी अब सांसद नहीं है और राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता रद्द होने के बाद कांग्रेस जहां जमीनी लड़ाई लड़ रही है वहीं राहुल की भविष्य की राजनीति को लेकर अब कई तरह के सवाल खड़े हो रहे है। इन सवालों के बीच कई तरह के कयास भी लगाए जा रहे है। कयास इस बात के लगाए जा रहे हैं कि क्या राहुल गांधी अगले 8 वर्ष तक चुनाव लड़ पाएंगे या नहीं। वहीं सवाल 2024 लोकसभा चुनाव के लिए विपक्ष की एकजुटता का भी है। ऐसे में सवाल यह भी खड़ा हो रहा है कि राहुल पर फैसला कांग्रेस के लिए एक झटका है या उसे एक नई संजीवनी मिल सकेगी?
कांग्रेस के लिए झटका या संजीवनी?-राहुल गांधी को 2024 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक मजबूत चेहरा बनाने के लिए पिछले राहुल गांधी के नेतृत्व में भारत जोड़ो यात्रा निकाली गई थी। भारत जोड़ो यात्रा को लोगों का रिस्पॉन्स भी मिला था और कांग्रेस अब राहुल गांधी की अगली यात्रा की भी तैयारी कर रही थी। हिमाचल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत से कांग्रेस गदगद थी और पार्टी पूरी ताकत के साथ इस साल होने वाले कर्नाटक, मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गई थी। ऐसे में राहुल गांधी की संसद सदस्यता जाना क्या कांग्रेस की चुनावी तैयारियों के लिए एक झटका है या कांग्रेस के लिए एक संजीवनी है।
कांग्रेस की राजनीति को कई दशकों से करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि मेरे हिसाब से यह फैसला न झटका है न संजीवनी है, पूरा फैसला अप्रत्याशित है। राहुल गांधी की कहीं न कहीं खुद की कमी रही है कि वह संगठन को बनाने और संगठन के लोगों को साथ लेकर नहीं चलते रहे है। राहुल के काम करने का जो तरीका रहा है उससे वह पार्टी से अलग-थलग दिखते रहे है। ऐसे में पार्टी टॉप लीडर्स तो साथ दिखती है लेकिन उस तरह से नहीं है कि जैसा इंदिरा गांधी के साथ पार्टी के जमीनी कार्यकर्ता का इमोशनल टच था और लोग एक साथ चल पड़े थे। कह सकते हैं कि राहुल और पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच एक कम्युनिकेशन गैप रहा है, इसलिए कांग्रेस उठ भी नहीं पा रही है क्यों इमोशनल कनेक्ट नहीं है।
2024 के लिए एक होगा विपक्ष?-2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की प्रचंड जीत का सबसे बड़ा कारण विपक्ष का एकजुट नहीं होना था। ऐसे में अब जब राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द होने के बाद जिस तरह से विपक्षी दलों ने एकजुटता का प्रदर्शन किया है उससे अब यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या राहुल की मुद्दे पर पूरा विपक्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी के खिलाफ एकजुट हो पाएगा।
दरअसल आज विपक्ष की सभी पार्टियों के नेता इस बात पर एकमत है कि सभी को बारी-बारी से निशाना बनाया जा रहा है। विपक्ष के नेताओं को आरोप है कि केंद्रीय एजेंसियों के मदद से उनको टारगेट किया जा रहा है। ऐसे में अब राहुल के मुद्दे पर पूरा विपक्ष एकजुट होता दिख रहा है। संसद सदस्यता रद्द होन के बाद खुद राहुल गांधी ने कहा कि मोदी पैनिक हो गए है और उन्होंने विपक्ष को सबसे बड़ा हथियार दे दिया है। राहुल गांधी ने अपनी सदस्यता रद्द होने को विपक्ष का मोदी के खिलाफ लड़ाई में सबसे बड़ा हथियार भी बताया।
वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि आज पूरा विपक्ष डरा और सहमा है और सभी को अपने-अपने बारे में डर लग रहा है कि आज राहुल के साथ जो हो रहा है वह उनके साथ भी हो सकता है। इसलिए इस बात की काफी संभावना है कि विपक्ष एकजुट हो सकता है। लेकिन यह एकजुटता क्या रूप लेगा,यह कहना भी जरा मुश्किल है, विपक्ष की एकजुटता में सबसे बड़ा मुद्दा लीडरशिप का है। इसके साथ ही राहुल गांधी को अभी विपक्ष की राजनीति का उतना अनुभव भी नहीं रहा है।
वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी महत्वपूर्ण बात कहते हैं कि विपक्ष की एकजुटता पर जो कुछ भी होना होगा वह ठीक चुनाव से पहले होगा,जैसे इमरजेंसी के दौरान जनता पार्टी बनी थी। इसकी सबसे बड़ी वजह आज सभी पर दबाव है कि राहुल गांधी या कांग्रेस के साथ नहीं जाए। इसलिए इतना साफ है कि बहुत पहले से कुछ नहीं होगा जो होगा आखिरी में होगा। रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि देश में सियासी हालात ठीक उसी तरह हो रहा है जैसा सत्तर के दशक में हुआ था।
2024 का चुनाव लड़ पाएंगे राहुल गांधी?-मानहानि केस में कोर्ट से 2 साल की सजा सुनाए मिलने के बाद अब सवाल यह भी है कि क्या राहुल गांधी 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ पाएंगे। जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के तहत दो साल या उससे अधिक समय के लिए कारावास की सजा पाने वाले व्यक्ति को 'दोष सिद्धि की तारीख से' अयोग्य घोषित किया जाता है। इसी के साथ, वो व्यक्ति सजा पूरी होने के बाद जन प्रतिनिधि बनने के लिए छह साल तक आयोग्य ही रहेगा। ऐसे में अगर राहुल गांधी को उपरी कोर्ट से राहत नहीं मिलती है तो वह 8 साल तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे।
ऐसे में सवाल यह भी उठा रहा है कि आखिर राहुल सूरत कोर्ट के उस निर्णय को कब और कहा चुनौती देंगे जिसके फैसले के बाद उनकी संसद सदस्यता खत्म की गई है। ऐसे में सबकी निगाहें राहुल के अगले कदम पर टिक गई है।