नई दिल्ली। बड़ी संख्या में लोग पढ़ाई और नौकरी के सिलसिले में घर से बाहर रहते हैं। इस वजह से वे चुनाव में अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं कर पाते। निर्वाचन आयोग ने रिमोर्ट मतदान के लिए ईवीएम के उपयोग की योजना बनाई है। विपक्षी दलों ने निर्वाचन आयोग की के फैसले को नकार दिया है। हालांकि सरकार ने संसद में साफ कर दिया कि फिलहाल रिमोट वोटिंग सिस्टम को अभी लागू करने का कोई प्रस्ताव नहीं है। अभी तक सिर्फ राजनीतिक दलों को एक अवधारणा नोट सर्कुलेट किया गया है। विपक्षी दलों ने तय किया है कि वे चुनावों में ईवीएम के इस्तेमाल और खासतौर से रिमोट मतदान के लिए ईवीएम के उपयोग पर अपनी चिंताओं का समाधान खोजने के लिए निर्वाचन आयोग से मिलेंगे। जानिए क्या है रिमोट वोटिंग और विपक्ष क्यों है नाराज...
क्या है वोटिंग का नियम : लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 19 के तहत मतदाता को केवल उसी निवार्चन क्षेत्र में वोट डालने का अधिकार है, जहां को वो निवासी है। अगर आप किसी दूसरे शहर या राज्य में शिफ्ट हो गए हैं, तो आपको उस जगह का नया वोट बनवाना होगा और पुरानी वोटर लिस्ट से अपना नाम हटवाना पड़ेगा। इसके लिए एड्रेस प्रूफ, बिजली बिल जैसे दस्तावेजों की जरूरत पड़ती है, जिनकी व्यवस्था कर पाना अधिकतर कामगारों के लिए सरल नहीं होता। मतदाता को मतदान केंद्र पर जाकर ही वोट देना होता है। पोस्टल बैलेट का विकल्प केवल चुनाव ड्यूटी में लगे कर्मचारी, आवश्यक सेवाओं में लगे सरकारी कर्मचारी, 80 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्ग और दिव्यांग मतदाताओं के लिए है।
क्या है रिमोट वोटिंग? चुनाव आयोग की नजर अब ऐसे मतदाताओं पर है जो शहर से बाहर होने की वजह से वोट नहीं डाल पाते। आने वाले चुनावों में आयोग रिमोट वोटिंग के माध्यम से इन मतदाताओं को मतदान के लिए प्रेरित करेगा। उदाहरण के तौर पर अगर कोई मतदाता इंदौर में पैदा हुआ है और किसी कारण से दूसरे राज्य या किसी अन्य जगह रह रहा है। इस स्थिति में वो रिमोट वोटिंग के माध्यम से वोट कर पाएगा।
रिमोट वोटिंग क्यों है जरूरी : भारत में बड़ी संख्या में लोग वोट नहीं देते। 2019 के लोकसभा चुनाव में 91.2 करोड़ वोटर रजिस्टर्ड थे इनमें से करीब 30 करोड़ लोगों ने वोट नहीं दिया। चुनाव आयोग का मानना है कि अमूमन लोग 3 कारणों से वोट नहीं देते। इसमें शहरों में चुनाव के प्रति उदासीनता, युवाओं की कम भागीदारी और लोगों का दूर रहना शामिल है। रिमोट वोटिंग सिस्टम घरों से दूर रह रहे लोगों के लिए काम करेगा।
क्या है REVM : REVM का मतलब रिमोट इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन है। 29 दिसंबर 2022 को चुनाव आयोग ने इसके बारे में मीडिया को बताया था। यह एक ऐसी मशीन है, जिसकी मदद से प्रवासी नागरिक बिना गृह क्षेत्र आए अपना वोट डाल सकते हैं। आरइवीएम स्टेशन पर निवार्चन क्षेत्रों की जानकारी होगी। जैसे ही निर्वाचन क्षेत्र को चुनेंगे सभी उम्मीदवारों की सूची सामने आ जाएगी। इसके जरिए आप जहां हैं, वहीं से अपने मताधिकार का प्रयोग कर पाएंगे।
इन देशों में है रिमोट वोटिंग की व्यवस्था : एस्टोनिया में मतदाताओं को ऑनलाइन वोटिंग का अधिकार है। ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, जर्मनी, पेरू, जैसे देशों ने विकलांगों और बुजुर्गों के साथ साथ कुछ विशेष वर्ग के लोगों को रिमोट वोटिंग की सुविधा दी है। हालांकि, अभी ये नहीं कहा जा सकता कि भारत में लागू की जाने वाली रिमोट वोटिंग व्यवस्था केवल कुछ विशेष वर्गों के लिए होगी या फिर सभी नागरिकों के लिए। रिमोट वोटिंग के लिए भी नागरिकों को अपने नजदीकी पोलिंग बूथ पर जाना पड़ सकता है। आगामी लोकसभा चुनावों के पहले भारत में रिमोट वोटिंग सिस्टम आने की संभावनाएं हैं।
विपक्ष की बैठक : NCP प्रमुख शरद पवार ने गुरुवार को राज्यसभा में विपक्षी दलों के नेताओं की बैठक बुलाई। इसमें तय किया गया कि विपक्षी दलों के नेता चुनावों में EVM के उपयोग और खास तौर से रिमोट मतदान के लिए ईवीएम के उपयोग पर अपनी चिंताओं का समाधान खोजने के लिए चुनाव से मिलेंगे।
कांग्रेस की ओर से दिग्विजय सिंह, राज्यसभा के निर्दलीय सदस्य कपिल सिब्बल, समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता रामगोपाल यादव, शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के सदस्य अनिल देसाई और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) सदस्य के. केशव राव आदि ने बैठक में हिस्सा लिया।
कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि विपक्ष को ईवीएम और रिमोट वोटिंग पर आपत्ति है। हम चुनाव आयोग के पास जाएंगे। शंका का समाधान नहीं हुआ तो अगला कदम उठाएंगे।
क्या बोली भाजपा : भाजपा के मुख्य प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी ने कहा कि विपक्ष का ईवीएम पर सवाल उठाने का मतलब आने वाले चुनावों में अपनी हार को स्वीकार करना है, क्योंकि उन्हें चुनावों में अपनी हार के लिए वोटिंग मशीनों को दोष देना सबसे सुविधाजनक लगता है।
उन्होंने विपक्ष पर ईवीएम को लेकर 'सुविधाजनक राजनीति' करने का भी आरोप लगाया और कहा कि जब विपक्षी दल राज्य के चुनावों में जीतते हैं तो परिणामों से सहमत होते हैं, लेकिन हारने पर मशीनों को दोष देते हैं।
बलूनी ने कहा कि तथ्य यह है कि लोगों ने जातिवाद, वंशवाद, भ्रष्टाचार और तुष्टिकरण की राजनीति के लिए विपक्षी दलों को खारिज कर दिया है और देश के लोगों को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अलावा किसी भी नेता पर भरोसा नहीं है।