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Last Modified: नई दिल्ली , शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2024 (23:07 IST)

इलाज में डॉक्टर की लापरवाही कब? सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में बताया

इलाज में डॉक्टर की लापरवाही कब? सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में बताया - When is a doctor negligent in treatment Supreme Court told in its decision
Negligence in treatment: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने शुक्रवार को कहा कि चिकित्सक को लापरवाही के लिए तभी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जब उसके पास अपेक्षित योग्यता और कौशल न हो या इलाज के दौरान उचित विशेषज्ञता का इस्तेमाल न किया गया हो।
 
न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने कहा कि जब मरीज का इलाज करते वक्त चिकित्सक की ओर से अपेक्षित सावधानी बरती गई हो तो यह कार्रवाई योग्य लापरवाही का मामला नहीं होगा, बशर्ते इसे गलत न साबित कर दिया जाए। शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) के उस आदेश को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें चिकित्सक को लापरवाह ठहराया गया था। ALSO READ: मुस्लिम पूजा स्थलों के अवैध ध्वस्तीकरण पर यथास्थिति का आदेश देने को लेकर क्या बोला सुप्रीम कोर्ट
 
शिकायतकर्ता के अनुसार, उनके नाबालिग बेटे की बाईं आंख में जन्मजात विकार पाया गया था, जिसे एक छोटी सी सर्जरी की आवश्यकता थी। चंडीगढ़ के पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (PGIMER) में डॉ. नीरज सूद ने 1996 में सर्जरी की थी। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि उनके बेटे में पाई गई शारीरिक विकृति को एक छोटे से ऑपरेशन से ठीक किया जा सकता था, क्योंकि लड़के की आंखों में कोई अन्य दोष नहीं था। ALSO READ: सुप्रीम कोर्ट का बायजू को बड़ा झटका, जानिए कैसे दिवालिएपन की कगार पर पहुंच गई दिग्गज एड टेक कंपनी?
 
सर्जरी के बाद बिगड़ गई थी हालत : चिकित्सक पर प्रक्रिया में गड़बड़ी करने का आरोप लगाया गया, जिससे सर्जरी के बाद लड़के की हालत बिगड़ गई। इसके बाद शिकायतकर्ता ने डॉ. सूद और पीजीआईएमईआर के खिलाफ चिकित्सकीय लापरवाही का आरोप लगाया, जिसे राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने 2005 में खारिज कर दिया था। उपरोक्त निर्णय से व्यथित होकर, शिकायतकर्ताओं ने एनसीडीआरसी के समक्ष अपील दायर की।
 
एनसीडीआरसी ने राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के फैसले को खारिज कर दिया और चिकित्सक तथा अस्पताल को इलाज में लापरवाही के लिए तीन लाख रुपए तथा 50,000 रुपए का मुआवजा देने के लिए ‘संयुक्त रूप से तथा अलग-अलग उत्तरदायी’ माना। डॉ. सूद तथा पीजीआईएमईआर ने एनसीडीआरसी के आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती देते हुए अपील दायर की।
 
शिकायतकर्ता पेश नहीं कर पाए सबूत : शीर्ष अदालत ने पाया कि शिकायतकर्ताओं ने डॉ. सूद या पीजीआईएमईआर की ओर से लापरवाही साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं पेश किया। पीठ ने कहा कि जरूरी नहीं कि सर्जरी के बाद मरीज की हालत में गिरावट अनुचित या अनुपयुक्त सर्जरी के कारण आई।
 
शीर्ष अदालत ने कहा कि सर्जरी या ऐसे उपचार के मामले में यह जरूरी नहीं है कि हर मामले में मरीज की हालत में सुधार हो और सर्जरी मरीज की संतुष्टि के अनुसार सफल हो। यह बहुत संभव है कि कुछ दुर्लभ मामलों में इस तरह की जटिलताएं उत्पन्न हो जाएं, लेकिन इससे चिकित्सा विशेषज्ञ की ओर से कोई कार्रवाई योग्य लापरवाही साबित नहीं होती है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि चूंकि शिकायतकर्ता डॉक्टर या पीजीआईएमईआर की ओर से किसी तरह की लापरवाही साबित करने में विफल रहे हैं, इसलिए वे किसी भी मुआवजे के हकदार नहीं हैं। (भाषा/वेबदुनिया)
Edited by: Vrijendra Singh Jhala 
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