आजकल महिलाओं में खासकर युवतियों में पॉली सिस्टिक ओवरीज सिंड्रोम (PCOS) की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसा लाइफस्टाइल में बदलाव के कारण हो सकता है या फिर यह अनुवांशिक समस्या भी हो सकती है। मां बनने की चाह रखने वाली ज्यादातर महिलाएं पीसीओएस के कारण गर्भ धारण करने में असफल होती हैं। लेकिन, ऐसा क्यों होता है, इसके लक्षण क्या हैं और क्या इस तरह की समस्या से ग्रस्त महिलाएं मां बन सकती हैं, यही बता रहे हैं मुंबई-दिल्ली के बड़े अस्पतालों में अपनी सेवाएं देने वाले प्रसिद्ध गायनोकोलॉजिस्ट एवं फर्टिलिटी विशेषज्ञ डॉ. ऋषिकेश पाई।
पीसीओएस क्या है और इसके लक्षण क्या हैं?
डॉ. ऋषिकेश पाई कहते हैं कि पॉली सिस्टिक ओवरीज सिंड्रोम (PCOS) यह महिलांओं में प्रजनन क्षमता की अंतःस्रावी समस्या है। आजकल 5 से 10 फीसदी महिलाएं इस समस्या से परेशान हैं। इन्हें गर्भ धारण करने में कठिनाई आती है। दरअसल, पीसीओएस एक मेडिकल समस्या है, जो महिलाओं में हार्मोन के लेवल को प्रभावित करती है। इससे अनियमित माहवारी, चेहरे और शरीर पर बालों का बढ़ना, वजन बढ़ना, मुहांसे तथा ओवरी में सीस्ट यानी गर्भाशय के अंदर गांठ आना आदि लक्षण दिखाई देते हैं। पीसीओएस में एंड्रोजेन (पुरुष हार्मोन्स) का अतिरिक्त उत्पादन होता है।
पीसीओएस समस्या के कारण क्या हैं?
पाई बताते हैं कि इस समस्या के कारण बदलती जीवनशैली के साथ ही अनुवांशिक भी हैं। एक अध्ययन के अनुसार, पीसीओएस वाली महिलाओं में इंसुलिन प्रतिरोध अधिक होता है। जैसे-जैसे खून में इंसुलिन का स्तर बढ़ता है, गर्भाशय अधिक टेस्टोस्टेरोन छोड़ता है। यह अतिरिक्त टेस्टोस्टेरोन अनियमित मासिक धर्म और अनचाहे बालों का कारण बनता है। कुछ महिलाओं में पीसीओएस, शरीर में अन्य हार्मोन के असंतुलन के कारण होता है।
पीसीओएस और बांझपन?
डॉ. पाई कहते हैं कि पीसीओएस का प्रजनन क्षमता पर सीधा नकारात्मक प्रभाव पडता हैं। गर्भाशय में एस्ट्रोजेन की बढ़ती मात्रा की वजह से महिलाओं में गर्भावस्था के लिए महत्वपूर्ण अंडाणु का उत्पादन नहीं हो पाता। अगर, नियमित रूप से अंडाणु नहीं बनें तो गर्भ धारण करना नामुमकिन है। दरअसल, टेस्टोस्टेरॉन जैसे हार्मोन्स बढ़ जाने से अंडे की गुणवत्ता कम हो जाती है। इंसुलिन बढ़ने से मधुमेह का खतरा भी बढ़ जाता है।
पीसीओएस महिला क्या कभी मां बन सकती है?
हालांकि पीसीओएस के कारण गर्भ धारण करना मुश्किल होता है, लेकिन इसका इलाज प्रजनन विशेषज्ञ द्वारा किया जा सकता है।
क्या है पीसीओएस का इलाज?
डॉ. पाई के अनुसार पीसीओएस का कोई निश्चित इलाज नहीं है, लेकिन उचित देखभाल से इस समस्या को कम किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, वजन घटाने से पीसीओएस के लक्षणों को कुछ हद तक कम किया जा सकता है। साथ ही, एंटी-एंड्रोजन गोलियां लेने से पीसीओएस के लक्षणों में सुधार हो सकता है।
भोजन और व्यायाम : यदि इस तरह की महिलाएं मां बनना चाहती हैं तो तो पीसीओएस उपचार में पहला कदम स्वस्थ आहार और व्यायाम के साथ अपने जीवनशैली में बदलाव लाना भी जरूरी है। आहार में कार्बोहाइड्रेट और ग्लाइसेमिक युक्त भोजन वजन घटाने के लिए हमेशा अच्छे होते हैं।
सप्ताह में तीन बार कम से कम 30 मिनट का व्यायाम शेड्यूल करें। हो सके तो रोजाना नियमित रूप से व्यायाम करें। जीवनशैली में बदलाव करने के बाद भी अगर आपको गर्भाशय की समस्या है तो आप किसी विशेषज्ञ की सलाह पर फर्टिलिटी दवाइयां ले सकती हैं। कुछ चुनिंदा एस्ट्रोजन रिसेप्टर मॉड्यूलेटर दवाइयां प्रजनन के लिए उपलब्ध हैं।
यदि दवा लेने से भी गर्भ धारण नहीं होता है, तो डिंब को छोड़ने के लिए फर्टिलिटी इंजेक्शन की आवश्यकता होती है। हार्मोन, जो फर्टिलिटी इंजेक्शन में समान अनुपात में होते हैं, वे आपके मस्तिष्क को गर्भाशय को ओव्यूलेट करने के लिए संकेत भेजते हैं।
प्रजनन चिकित्सक ट्रांसवेजिनल अल्ट्रासाउंड और रक्त परीक्षण के माध्यम से प्रक्रिया की बारीकी से निगरानी करते हैं। क्योंकि, ये परीक्षण उन्हें एस्ट्राडियोल स्तर (अंडाशय में उत्पादित हार्मोन) को रिकॉर्ड करने में मदद करते हैं। हालांकि, कभी-कभी फर्टिलिटी इंजेक्शन से जोखिम की संभावना भी रहती है। यदि उपरोक्त में से किसी भी उपचार के बाद भी गर्भावस्था नहीं होती है, तो इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) का उपयोग हो सकता है।
पीसीओएस के लिए आईवीएफ उपचार : आईवीएफ में डॉक्टर एक छोटी सी प्रक्रिया के माध्यम से अधिकतम अंडाणु बनाने का इंजेक्शन देकर महिला के गर्भाशय से परिपक्व अंडाणु निकाल लेते हैं। इन अंडाणुओं को लैब में तैयार किया जाता है। इसके बाद अच्छी गुणवत्ता वाले अंडाणुओं को वापस गर्भाशय में छोड़ दिया जाता है। उपचार की इस पद्धति का उपयोग यह निर्धारित करने के लिए किया जाता है कि गर्भावस्था हुई है या नहीं। साथ ही एम्ब्रियो फ्रीजिंग जैसी प्रक्रिया भी आप चुन सकते हैं।